Makhan Lal Chaturvedi Biography in Hindi – माखनलाल चतुर्वेदी को एक लेखक, कवि, स्वतंत्रता सेनानी, कर्तव्यनिष्ठ पत्रकार और वरिष्ठ साहित्यकार के रूप में जाना जाता हैं. गुलाम हिन्दुस्तान में पंडित माखनलाल की आवाज हर देशवासी के दिल की धड़कन बन गई थी और जिनके एक आवाहन पर नौजवान सर पर कुर्बानी का कफ़न बाँध कर निकल पड़ते थे.
जब हिन्दुस्तान अग्रेजी हुकूमत की जुल्मों से कराह रहा था. उन दिनों ना तो महात्मा गांधी जी दक्षिणी अफ्रीका से संकट मोचन बन कर भारत आये थे और ना ही कही कोई आशा की किरण नजर आती थी. अपने अपने स्तर पर कुछ चुनिन्दा देशभक्त आजादी की मसाल थामें हुए थे.
ऐसे माहौल में मध्य भारत के एक छोटे से गाँव बावई में एक गरीब शिक्षक के घर जन्म लेता हैं एक ऐसा सपूत जो आगे चलकर गोरी सत्ता को संकट में डाल देता हैं. इस बालक को आगे चलकर “भारत की आत्मा” कहा गया.
माखनलाल चतुर्वेदी का जीवन परिचय | Makhan Lal Chaturvedi Ka Jeevan Parichay
नाम – माखनलाल चतुर्वेदी
व्यवसाय – लेखक, अध्यापक, पत्रकार
जन्मतिथि – 4 अप्रैल, सन् 1889 ई.
जन्मस्थान – गाँव – बाबई, जिला – होशंगाबाद, मध्यप्रदेश, भारत
माता का नाम –
पिता का नाम – नन्द लाल
पत्नी का नाम – ग्यारसी बाई
भाषा ज्ञान – संस्कृत, गुजराती, अंग्रेजी, फ़ारसी, मराठी, उर्दू
लेख – ‘कृष्णार्जुन युद्ध’, ‘हिमकिरीटिनी’, ‘साहित्य देवता’, ‘हिमतरंगिनी’, ‘माता’, ‘युगचरण’, ‘समर्पण’, ‘वेणु लो गूँजे धरा’, ‘अमीर इरादे’, ‘गरीब इरादे’ आदि.
पुरस्कार – साहित्यिक अकादमी अवार्ड, पद्म भूषण पुरस्कार
मृत्युतिथि – 30 जनवरी, 1968
पूर्वज राजस्थान के जयपुर के राणीला गाँव से आकर मध्यप्रदेश के होशंगाबाद जिले के बाबई गाँव में बस गये थे. जिस स्कूल में पिता नन्द लाल ने तामील हासिल की थी. उसी स्कूल में प्राथमिक शिक्षा के लिए माखन लाल का दाखिला कराया गया.आर्थिक तंगी के चलते प्राइमरी पास करने के बाद नौकरी जरूरी हो गई. दादा तो मंदिर में पुजारी बनाना चाहते थे लेकिन माखनलाल चतुर्वेदी शिक्षक बनना चाहते थे. लिहाजा प्राइमरी ट्रेनिंग परीक्षा पास की और शिक्षक की नौकरी करने खंडवा जा पहुंचे. सुनकर ताज्जुब होता है कि एक प्राइमरी पास किशोर एक स्कूल में अध्यापक के लिए चुन लिया गया. माखन लाल संस्कृत, गुजराती, अंग्रेजी, फ़ारसी, मराठी, उर्दू आदि भाषाओँ के जानकार थे, क्या आज के किसी बच्चे से यह उम्मीद कर सकते हैं.
माखन लाल चतुर्वेदी का वैवाहिक जीवन | Marriage life of Makhanlal Chaturvedi
नौकरी मिलने से पहले ही इनके पिता 14 साल के माखनलाल का विवाह 9 साल की ग्यारसी बाई से करवा दिया. करीब 10-11 साल साथ निभाने के बाद ग्यारसी बाई उनकी जिन्दगी से हमेशा के लिए चली गई. उनकी एक बेटी भी हुई थी जो जन्म के कुछ ही साल बाद चल बसी थी. उस समय माखन लाल चतुर्वेदी सिर्फ 25 वर्ष के थे. इसके बाद सारी उम्र उन्होंनें अकेले सफर तय किया. शब्दों से रिश्ता बनाया और आजादी की लड़ाई में कूद पड़े. यह 1914 का साल था.
क्यों माखनलाल चतुर्वेदी जी अन्य नामों से अपने लेख प्रकाशित करवाते थे?
उन्होनें सन् 1912 में शक्ति पूजा नामक लेख लिखा जो सुबोध सिन्धु में प्रकाशित हुआ. लेख के तेवर इतने तीखें थे कि अंग्रेजी सरकार ने राजद्रोह का मुकदमा चलाया. इस मुकदमें से वो बरी तो हो गये. फिर दोस्तों ने सलाह दी कि थोड़ा संभल कर लिखा करों अगर जेल चले गये तो क्रांतिकारियों की मदत और ऐसे लेख कौन लिखेगा. माखनलाल ने दोस्तों के इस राय पर अमल किया.
इसके बाद उन्होनें कई अन्य नामों से लेख प्रकाशित करने लगे जैसे श्री गोपाल, भारत सन्तान, कुछ नहीं, भारतीय, सुधर प्रिय, पशुपति, नीति प्रमी, एक विद्यार्थी, एक निर्धन विद्यार्थी, एक भारतीय प्रजा, एक नवयुवक, तरूण भारत, एक उच्च शिक्षित, एक प्रांतीय वाणी, एक भारत वासी, श्रीयुत नवनीत, श्री विश्वव्याप्त, श्री चंचरीक, वनवासी, वनमाली और एक भारतीय आत्मा. इनमे से “एक भारतीय आत्मा” तो उनका दूसरा नाम ही बन गया. बाद में महात्मा गांधी ने उनके इस नाम पर वकायदा मोहर लगा दिया.
माखनलाल चतुर्वेदी का पत्रकारिता के क्षेत्र में योगदान
शक्तिपूजा माखनलाल चतुर्वेदी ( Makhanlal Chaturvedi ) का पहला लेख नहीं था, जब वो खंडवा पहुंचे ही थे तब पता चला कि विख्यात पत्रकार और सम्पादक माधव राव सप्रे की पत्रिका केसरी ने राष्टीय निबन्ध प्रतियोगिता का आयोजन किया हैं. जिसका विषय था “राष्टीय आन्दोलन और बहिष्कार”. माखन लाल जी ने निबन्ध भेजा और प्रथम पुरस्कार मिला और सप्रे जी को माखन लाल जी गुरू मान बैठे. इस एकलव्य से गुरु की मुलाक़ात तीन साल बाद हो पाई.
- 1909 ई. में नौवजवानों के लिए पत्रिका लिखना प्रारम्भ कर दिया. इस पत्रिका का नाम “भारतीय विद्यार्थी” था. खास बात ये होती थी पत्रिका हाथ से लिखी होती थी.
- 7 अप्रैल, 1913 से प्रभा नामक मासिक पत्रिका का सम्पादन माखनलाल चतुर्वेदी अपने नये दोस्तों कालूराम गंगराणे के साथ शुरू कर दिया.
- 13 सितम्बर, 1913 को जब प्रभा पत्रिका चल निकली तब माखनलाल चतुर्वेदी ने अपनी नौकरी छोड़ी.
- 1-2 साल तक सब ठीक चलता रहा फिर आर्थिक संकट के कारण “प्रभा” पत्रिका को बंद करना पड़ा.
- इसी बीच उस समय के तेजस्वी पत्रकार और कानपुर से निकलने वाले प्रताप के सम्पादक गणेश शंकर विद्यार्थी से सम्पर्क हुआ. विद्यार्थी जी प्रभा की पत्रकारिता से बहुत प्रभावित थे. जब प्रभा बंद हुई तो उन्होंनें माखन जी को कानपुर बुला लिया और फिर वहाँ से प्रभा का प्रकाशन शुरू हो गया और विद्यार्थी जी को प्रताप के लिए एक मजबूत सम्पादकीय सहयोगी मिल गया.
- इसी बीच पंडित माधवराव सप्रे ने जबलपुर से कर्मवीर निकालने का फैसला किया और उन्होंनें विद्यार्थी जी से अनुरोध किया कि वो माखन लाल जी को कर्मवीर के सम्पादन के लिए भेज दे. 17 जनवरी, 1920 से भारत का यह क्रांतिकारी अखबार शुरू हो गया.
- नवम्बर 1922 में माखनलाल चतुर्वेदी ने कर्मवीर से इस्तीफ़ा दे दिया और खंडवा जा पहुंचे.
- 4 अप्रैल, 1925 से एक बार फिर खंडवा से “कर्मवीर” का सम्पादन शुरू कर दिया.
- माखनलाल के सम्पादन में कर्मवीर का अंतिम अंक 11 जुलाई, 1959 को प्रकाशित हुआ.
माखनलाल चतुर्वेदी का स्वतंत्रता संग्राम में योगदान
माखनलाल चतुर्वेदी जब 17 साल के थे तब वे क्रांतिकारियों के सम्पर्क में आयें. गरम दल के मुखिया बाल गंगाधर तिलक से प्रभावित होकर बनारस गये. उस समय के सबसे बड़े क्रांतिकारी गणेश सखाराम देवोसकर से दीक्षा लेकर क्रांतिकारी दल में शामिल हो गये.
27 साल की उम्र में उन्हें गांधी जी से लखनऊ में मिलने का मौका मिला. इसके बाद उन्होंनें कानपुर में प्रताप के कार्यलय में गांधी जी का साक्षात्कार भी लिया. शुरूआत में गाँधी जी के अहिंसा के विचारों का समर्थन नहीं करते थे परन्तु बाद में उनके विचारों से प्रभावित हुए और अहिंसक आन्दोलन से जुड़ गये.
12 मार्च, 1921 में विलासपुर की एक सभा में जोरदार भाषण दिया. राजद्रोह के आरोप में जेल भेज दिए गये. उनकी गिरफ्तारी के विरोध में दूर-दूर तक आन्दोलन हुए. गाँधी जी और गणेश शंकर विद्यार्थी ने अपना सख्त विरोध दिखाया. मुकदमे की सुनवाई के दौरान माखनलाल जी ने कोर्ट में कहा – “मैंने कोई अपराध नहीं किया. देश के प्रति अपने कर्तव्य का पालन किया है. मैं किसी ब्रिटिश कोर्ट से न्याय नहीं चाहता. मातृभूमि को परतन्त्रता से मुक्ति कराने से अच्छी कोई सेवा नहीं हैं.“
जेल से छूटे. अगले साल 18 जुलाई, 1922 को नागपुर में “झंडा सत्याग्रह” का नेतृत्व किया और फिर जेल गये. जवाहर लाल नेहरू और पुरूषोत्तम दास टंडन जैसे नेता उनके पीछे चल रहे थे. गाँधी जे के नमक सत्याग्रह और सविनय अवज्ञा सत्याग्रह में भाग लिया और फिर दो साल के लिए जेल गये.
माखनलाल चतुर्वेदी की रचना | Makhanlal Chaturvedi Ki Rachna
- हिम तरंगिणी, हिमकिरीटिनी, समर्पण, युग चरण, माता, मरण ज्वार, बीजुरी काजल आँज रही, ‘वेणु लो गूंजे धरा’ आदि उनकी प्रमुख और प्रसिद्ध प्रकाशित काव्य कृतियाँ हैं.
- साहित्य के देवता, कृष्णार्जुन युद्ध, समय के पांव, अमीर इरादे :गरीब इरादे आदि इनके प्रमुख और प्रसिद्ध प्रकाशित गद्यात्मक कृतियाँ हैं.
- ‘हिमतरंगिनी‘ – 1949 ई.- साहित्य अकादमी पुरस्कार से पुरस्कृत.

माखनलाल चतुर्वेदी : पुरस्कार एवं सम्मान | Makhanlal Chaturvedi Awards
- 1955 – साहित्य अकादमी पुरस्कार
- 1959 – सागर यूनिवर्सिटी से डी. लिट् की उपाधि
- 1963 – पद्म भूषण पुरस्कार ( साहित्यिक योगदान के लिए )
माखनलाल चतुर्वेदी की मृत्यु | Makhanlal Chaturvedi Death
30 जनवरी, सन् 1968 ई. में हिंदी साहित्य ने एक अपने अनमोल रत्न को खो दिया. जब पंडित माखनलाल चतुर्वेदी के मृत्यु हुई उस समय उनकी उम्र 79 साल थी. हिंदी साहित्य में उनका योगदान और देश के प्रति प्रेम आज भी सराहनीय और सम्मानीय हैं.
नोट – इस पोस्ट में अधित्तम जानकारी नीचे दिए विडियो और विकिपीडिया से लिया गया हैं.
Pandit Makhan Lal Chaturvedi Biography Video | पंडित माखन लाल चतुर्वेदी बायोग्राफी विडियो
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