Bal Gangadhar Tilak Biography in Hindi | बाल गंगाधर तिलक की जीवनी

Bal Gangadhar Tilak Biography in Hindi – बाल गंगाधर तिलक को लोग प्रायः “लोकमान्य” और भारत का “बेताज बादशाह” कहते थे. ये भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के पहले लोकप्रिय नेता हुए. इनका मराठी भाषा में दिया गया नारा – “स्वराज्य हा माझा जन्मसिद्ध हक्क आहे आणि तो मी मिळवणारच ( स्वराज यह मेरा जन्मसिद्ध अधिकार है और मैं इसे लेकर ही रहूँगा )” बहुत प्रसिद्ध हुआ.

बाल गंगाधर तिलक की जीवनी | Bal Gangadhar Tilak Biography in Hindi

नाम – बाल गंगाधर तिलक ( Bal Gangadhar Tilak )
उपनाम – बाल, लोकमान्य
बचपन का नाम – केशव गंगाधर तिलक
जन्मतिथि – 23 जुलाई, 1856
जन्मस्थल – रत्नागिरी जिला, महाराष्ट्र
मृत्यु – 01 अगस्त, 1920
मृत्युस्थल – बम्बई, महाराष्ट्र
माता का नाम – पार्वती बाई गंगाधर ( Paravti Bai Gangadhar )
पिता का नाम – गंगाधर तिलक
कार्यक्षेत्र – लेखक, राजनीतिज्ञ, स्वतंत्रता सेनानी, समाज सुधारक
राजनैतिक दल – भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस

बाल गंगाधर तिलक जी ने रत्नागिरी के एक मराठा ब्राह्मण वंश में जन्म लिया. 1879 में क़ानून में स्नातक बनने के पश्चात् तिलक ने आगरकर के सहयोग से ऐसी संस्थाएं बनाने की सोची जो कम मूल्य में अच्छी शिक्षा दे सके. जनवरी 1900 में पूना नवीन इंग्लिश विद्यालय ( Poona New English School ) स्थापित किया गया. वह दक्कन एजुकेशनल सोसाइटी और फरग्यूसन कालिज पूना की स्थापना से भी सम्बंधित थे.

तिलक प्रथम राष्ट्रवादी नेता थे जिन्होंने जनता से निकट सम्बन्ध स्थापित करने का प्रयत्न किया और इस दृष्टि से वह महात्मा गाँधी के अग्रगामी थे. इस उद्देश्य से उन्होंने अखाड़े, लाठी क्लब तथा गो-हत्या विरोधी सभाएं स्थापित की. शिवाजी और गणपति त्यौहार आरम्भ किये ताकि जनता में राष्ट्र सेवा की भावना जागे. उन्होंने अपने विचारों के प्रसार के लिए दो समाचार पत्र, अंग्रेजी में ‘The Mahratta‘ और मराठी में ‘केसरी‘ आरम्भ किए.

इसी प्रकार तिलक प्रथम कांग्रेसी नेता थे जो देश के लिए अनेक बार जेल गये. 1882 में उन्हें सरकार ने 4 मास का कारावास दिया था, क्योंकि तिलक ने अंग्रेजों के लोल्हापुर के महाराजा के प्रति धृष्टता करने पर कड़े शब्दों में उनकी निंदा की थी. 1897 में उन्हें दो अंग्रेजों की हत्या के लिए चापेकर बंधुओं को उत्तेजित करने के लिए 18 मास के कड़े कारावास का दंड दिया गया. बाल गंगाधर तिलक इस अग्नि-परीक्षा से अधिक शक्तिशाली देशभक्त के रूप में आगे आये.

बाल गंगाधर तिलक ( Bal Gangadhar Tilak ) ने लाला लाजपतराय ( Lala Lajpat Rai ) और विपिनचन्द्र पाल ( Vipin Chandra Pal ) के साथ मिलकर राष्ट्रवादी अथवा उग्रवादी दल का गठन किया. यह दल उदारवादी दल की ‘पुरानी पीढ़ी’ की नरम नीति का विरोधी था. यदि भारतीय राजनीति में उग्रवाद का जन्म प्लेग के फूटने और 1897 में अधिकारियों की कठोर निति के कारण हुआ, जैसा कि एनी बेसेंट का विचार हैं, तो उस परिवर्तन का श्रेय तिलक जी को ही जाता हैं. उनके उग्रवादी विचारों के कारण कांग्रेस का विभाजन हो गया और उन्हें इस विभाजन का मुख्य दोषी माना गया.

तिलक जी पहले व्यक्ति थे जिन्होंने स्वराज्य की मांग स्पष्ट रूप से की. उनके शब्दों में – “स्वराज मेरा जन्मसिद्ध अधिकार है और मैं इसे लेकर रहूँगा ( Swaraj is my birthright, and I shall have it )”  ने देश के कोने-कोने में उत्तेजना की एक नई लहर उत्पन्न कर दी. यह इन्हीं के और इनके सहयोगियों के प्रयत्नों का फल था कि 1906 के कलकत्ता कांग्रेस के अधिवेशन में स्वशासन, बहिष्कार और राष्ट्रीय शिक्षा ( Self Government, Boycott and National Education ) की मांग का प्रस्ताव पारित किया गया. तिलक जी अंग्रेजो के उपनिवेशों में प्रचलित स्वशासन की प्रणाली से संतुष्ट नहीं थे. वह तो स्वराज्य मांगते थे. 1920 के नागपुर अधिवेशन ने स्वराज्य की मांग की और उसकी प्राप्ति के लिए सभी ‘शांतिमय तथा एनी उचित’ उपायों का प्रयोग करने का प्रस्ताव पारित किया.

एंग्लों-इंडियन नौकरशाही उन्हें विद्रोही समझती थी. सर वेलैंटाईन चिरोल ( Sir Valentine Chirol ) उन्हें ‘भारत में अशांति का जन्मदाता’ समझते थे. तिलक ने चिरोल पर मानहानि का मुकदमा चलाया और उस उद्देश्य से इंग्लैंड भी गये. यद्यपि मुकदमा हार गये परन्तु इससे उचित प्रभाव हुआ.

वह उत्तरदायी सहयोग ( Responsive Cooperation ) में विश्वास करते थे. प्रथम विश्वयुद्ध में उन्होंने लोगो को सरकार की मदत करने को कहा. उन्हें आशा थी कि इसके फ़लस्वरूप अंग्रेज भार को स्वशासन ( Home-rule ) दे देंगे. निराश होकर उन्होंने पूना में 1916 में होम रूल लीग ( Home Rule League ) स्थापित की. वह भारत सरकार अधिनियम 1919 से संतुष्ट नहीं थे. 1920 के अगस्त में उनकी मृत्यु हो गई.

तिलक को प्रायः राजनीति में उग्रवादी परन्तु सामजिक सुधारों में नरम दलीय व्यक्ति माना जाता हैं. उन्होंने, सम्मति आयु के विधेयक ( Age of Consent Act ) का विरोध किया, परन्तु यह उन्होंने इसलिए किया कि विदेशियों को हमारे समाज सुधर के लिए क़ानून बनाने का अधिकार नहीं है. उनका विचार था कि समाज सुधार, लोकमत को शिक्षित करने से ही हो जाते हैं.

Other Interesting facts about Bal Gangadhar Tilak | बाल गंगाधर तिलक के बारें में अन्य रोचक जानकारियां

  • बाल गंगाधर तिलक के राजनैतिक गुरू इटली के ‘जोसफ़ मैजनी’ ( Joseph Mazzini ) थे. इस तथ्य को Lucent’s Samanya Gyan से लिया गया हैं.
  • बाल गंगाधर तिलक को ‘हिन्दू राष्ट्रवाद का पिता‘ भी कहा जाता हैं.

Books written by Bal Gangadhar Tilak | बाल गंगाधर तिलक द्वारा लिखी पुस्तकें

  1. वेद काल का निर्णय (The Orion)
  2. आर्यों का मूल निवास स्थान (The Arctic Home in the Vedas)
  3. श्रीमद्भागवतगीता रहस्य अथवा कर्मयोग शास्त्र
  4. वेदों का काल-निर्णय और वेदांग ज्योतिष (Vedic Chronology & Vedang Jyotish)
  5. हिन्दुत्व
  6. श्यामजीकृष्ण वर्मा को लिखे तिलक के पत्र

तिलक जी ने अनेक पुस्तकें लिखीं कित्नु श्रीमद्भागवत गीता की व्याख्या को लेकर मांडले जेल में लिखी गई – “गीता रहस्य” सर्वोत्कृष्ट है जिसका कई भाषाओँ में अनुबाद हुआ हैं.

बाल गंगाधर तिलक पर कविता | Bal Gangadhar Tilak Poem in Hindi

स्वराज मेरा जन्मसिद्ध अधिकार है,
और मैं इसे लेकर रहूँगा.

स्वराज मेरा जन्मसिद्ध अधिकार है,
मुझे कबूल नहीं, ये अंग्रेजी सरकार हैं,
आजादी के लिए मेरा सबकुछ कुर्बान है,
आजादी भारत के हृदय का फरमान है.

स्वराज मेरा जन्मसिद्ध अधिकार है,
और मैं इसे लेकर रहूँगा.

स्वतंत्रता के लिए प्राण न्यौछावर करूंगा,
धीरे-धीरे ही सही प्रयास करता रहूँगा,
आखिरी सांस तक अंग्रेजो से लड़ता रहूँगा.

अंग्रेजी हुकूमत सबके लिए है शाप,
सब मिलकर करो आजादी पाने का प्रयास,
टूट भी जाये आस
फिर भी मत छोड़ना करना प्रयास.

स्वराज मेरा जन्मसिद्ध अधिकार है,
और मैं इसे लेकर रहूँगा.

– दुनियाहैगोल

Bal Gangadhar Tilak Quotes in Hindi | बाल गंगाधर तिलक के अनमोल विचार

स्वराज मेरा जन्मसिद्ध अधिकार है और मैं इसे लेकर रहूँगा.

यदि भगवान छुआछूत को मानता है तो मैं उसे भगवान नहीं कहूँगा.

प्रगति स्वतन्त्रता में निहित है. बिना स्वशासन के न औद्योगिक विकास संभव है, न ही राष्ट्र के लिए शैक्षिक योजनाओं की कोई उपयोगिता है… देश की स्वतंत्रता के लिए प्रयत्न करना सामजिक सुधारों से अधिक महत्वपूर्ण है.

आलसी व्यक्तियों के लिए भगवान अवतार नहीं लेते, वह मेहनती व्यक्तियों के लिए ही अवतरित होते हैं, इसलिए कार्य करना आरम्भ करें.

भारत की ग़रीबी पूरी तरह से वर्तमान शासन की वजह से हैं.

ये सच है कि बारिश की कमी के कारण अकाल पड़ता है लेकिन ये भी सच है कि भारत के लोगों में इस बुराई से लड़ने की शक्ति नहीं हैं.

भारत का तब तक खून बहाया जा रहा हैं जब तक की बस कंकाल ना शेष रह जाए.

प्रातः काल में उदय होने के लिए ही सूरज संध्या काल के अन्धकार में डूब जाता है और अन्धकार में जाए बिना प्रकाश प्राप्त नहीं हो सकता.

महान उपलब्धियाँ कभी भी आसानी से नहीं मिलती और आसानी से मिली उपलब्धियाँ महान नहीं होती.

आपका लक्ष्य किसी जादू से नहीं पूरा होगा, बल्कि आपको ही अपना लक्ष्य प्राप्त करना पड़ेगा.

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