मैथिलीशरण गुप्त की जीवनी | Maithili Sharan Gupt Biography in Hindi

Maithili Sharan Gupt Biography in Hindi – राष्ट्रकवि मैथिलीशरण गुप्त हिंदी के महत्वपूर्ण कवि हैं. हिन्दी साहित्य के इतिहास में वे खड़ी बोली के प्रथम प्रसिद्ध कवि हैं. उन्हें साहित्य जगत में “दद्दा” नाम से भी सम्बोधित किया जाता था. मथिलीशरण जी की कृति “भारत-भारती” स्वतंत्रता संग्राम के समय में काफी प्रभावशाली साबित हुई थी और इसी कारण महात्मा गांधी ने उन्हें ‘राष्ट्रकवि‘ की पदवी भी दी थी. उनकी जयन्ती 3 अगस्त को हर वर्ष ‘कवि दिवस ( Kavi Diwas )‘ के रूप में मनाया जाता है. पवित्रता, नैतिकता और परम्परागत मानवीय सम्बन्धो की रक्षा गुप्त जी के काव्य के प्रथम गुण हैं. “साकेत” उनकी रचना का सर्वोच्च शिखर हैं. अपनी लेखनी के माध्यम से वह सदा अमर रहेंगे और आने वाली सदियों में नये कवियों के लिए प्रेरणा का स्त्रोत होंगे.

मैथिलीशरण गुप्त का जीवन परिचय | Maithili Sharan Gupt Biography in Hindi

नाम – मैथिलीशरण गुप्त ( Maithili Sharan Gupt )
जन्मतिथि – 3 अगस्त, 1886
जन्मस्थान – चिरगाँव, झांसी, उत्तर प्रदेश, भारत
पिता का नाम – सेठ रामचरण गुप्त
माता का नाम – कौशिल्या बाई
कार्यक्षेत्र – कवि, राजनेता, नाटककार, अनुवादक
राष्ट्रीयता – भारतीय
उल्लेखनीय रचना – पंचवटी, सिद्धराज, साकेत, यशोधरा आदि
पुरस्कार एवं सम्मान – पद्मभूषण
मृत्युतिथि – 12 दिसम्बर, 1964 (78 वर्ष की उम्र में )

हिंदी साहित्य के प्रखर नक्षत्र, माँ भारती के वरद पुत्र मैथिलिशरण गुप्त का जन्म 3 अगस्त, सन् 1886 ई. में पिता सेठ रामचरण गुप्त और माता कौशिल्या बाई की तीसरी संतान के रूप में उत्तर प्रदेश में झांसी के पास चिरगांव में हुआ. माता और पिता दोनों ही परम वैष्णव थे. विद्यालय में खेलकूद में अधिक ध्यान देने के कारण पढ़ाई अधूरी ही रह गई. घर में ही हिंदी, बांग्ला, संस्कृत साहित्य का अध्ययन किया.

मुंशी अजमेरी जी ने उनका मार्गदर्शन किया. 12 वर्ष की अवस्था में ब्रजभाषा में कविता रचना आरम्भ की. आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी के सम्पर्क में भी आये. उनकी कवितायें खड़ीबोली में मासिक ‘सरस्वती’ में प्रकाशित होना प्रारम्भ हो गई.

मैथिलिशरण गुप्त का देश-प्रेम | Maithili Sharan Gupt’s Country-Love

राष्ट्रकवि मैथिलीशरण गुप्त और कानपुर से ‘प्रताप‘ नामक समाचार-पत्र निकालने वाले निर्भीक पत्रकार गणेश शंकर विद्यार्थी के मिलने का केंद्र बिंदु प्रताप प्रेस ही रहा करता था. कलम के वार में दोनों साहित्यकार देश को आजादी दिलाने के प्रयास में लगे थे. दोनों महापुरूष विशाल हृदय की संवेदना वाले थे. उनके हृदय उदार थे.

काव्य के क्षेत्र में उन्होंने अपनी लेखनी से सम्पूर्ण देश में राष्ट्रभक्ति की भावना ( Feeling of Patriotism
) भर दी थी. राष्ट्रप्रेम की इस धारा का प्रवाह बुंदेलखंड क्षेत्र से कविता के माध्यम से हो रहा था. बाद में राष्ट्रकवि मैथिलिशरण गुप्त ने राष्ट्रप्रेम की इस धारा को देशभर में प्रवाहित किया था.

मैथिलिशरण गुप्त की भाषा शैली | Maithili Sharan Gupt Language Style

गुप्त जी ने अपनी कविताओं में ब्रजभाषा तथा परिष्कृत, सरल तथा शुद्ध खड़ीबोली को अपनाया, उन्होंने यह सिद्ध किया कि ब्रजभाषा काव्य-सृजन के लिए समर्थ भाषा है. सभी अलंकारों का इन्होंने स्वाभाविक प्रयोग किया है. लेकिन सादृश्यमूलक अलंकार गुप्त जी को अधिक प्रिय हैं. घनाक्षरी, मालिनी, वसंततिलका, हरिगीतिका व द्रुवविलंबित आदि छंदों में इन्होने ने काव्य रचना की हैं.

गुप्त जी ने विविध शैलियों में काव्य की रचना की. इनके द्वारा प्रयुक्त शैलियाँ है – प्रबंधात्मक शैली, अलंकृत उपदेशात्मक शैली, विवरणात्मक शैली, गीति शैली तथा नाट्य शैली.

मैथिलिशरण गुप्त की रचनाएँ | Maithili Sharan Gupt’s work

  • भारत भारती – इसमें देश के प्रति गर्व और गौरव की भावनाओं पर आधारित कवितायें लिखी हुई हैं. इसी से वे राष्ट्रकवि के रूप में विख्यात हुए.
  • साकेत (महाकाव्य) – ‘मानस’ के पश्चात हिंदी में राम-काव्य का दूसरा ग्रन्थ ‘साकेत’ ही हैं.
  • यशोधरा – इसमें उपेक्षित यशोधरा के चरित्र को काव्य का आधार बनाया गया हैं.
  • द्वापर, जयभारत, विष्णुप्रिया – इनमें हिडिम्बा, नहुष, दुर्योधन आदि के चरित्रों को नवीन रूपों में प्रस्तुत किया गया हैं.
  • गुप्त जी की अन्य पुस्तकें – पंचवटी, चंद्रहास, कुणालगीत, सिद्धराज, मंगल-घट, अनघ तथा मेघनाद वध आदि.

सम्मान एवं पुरस्कार | Honor and Awards

  • सन् 1914 ई. में राष्ट्रीय भावनाओं से ओत-प्रोत “भारत-भारती” का प्रकाशन किया, जिसके बाद गांधी जी ने उन्हें “राष्टकवि” की संज्ञा प्रदान की.
  • सन् 1954 ई. में भारत सरकार ने उन्हें पद्म विभूषण ( Padma Vibhushan ) से सम्मानित किया.
  • राष्ट्रपति डॉ॰ राजेन्द्र प्रसाद ने सन् 1962 ई. में अभिनन्दन ग्रन्थ भेंट किया तथा हिन्दू विश्वविद्यालय के द्वारा डी.लिट. से सम्मानित किये गये.
  • आगरा विश्वविद्यालय से उन्हें डी.लिट. से सम्मानित किया गया.
  • सन् 1952-1964 तक राज्यसभा के सदस्य मनोनीत हुए.

मैथिलिशरण गुप्त का मृत्यु | Maithili Sharan Gupt Death

12 दिसम्बर, सन् 1964 ई. को दिल का दौरा पड़ा और साहित्य का यह जगमगाता तारा अस्त हो गया. उन्होंने 78 वर्ष की आयु में दो महाकाव्य, 19 खंडकाव्य, काव्यगीत, नाटिकाएं आदि लिखी. उनके काव्य में राष्ट्रीय चेतना, धार्मिक भावना और मानवीय उत्थान प्रतिबिंबित हैं. रामधारी सिंह दिनकर जी के अनुसार उनके काव्य के भीतर की प्राचीन संस्कृति एक बार फिर तरूणावस्था को प्राप्त हुई थी.

मैथिलीशरण गुप्त की कविता | Maithili Sharan Gupt Poems

निर्बल का बल – Maithili Sharan Gupt Poems in Hindi

निर्बल का बल राम है।
हृदय ! भय का क्या काम है।।

राम वही कि पतित-पावन जो
परम दया का धाम है,
इस भव – सागर से उद्धारक
तारक जिसका नाम है।
हृदय, भय का क्या काम है।।

तन-बल, मन-बल और किसी को
धन-बल से विश्राम है,
हमें जानकी – जीवन का बल
निशिदिन आठों याम है।
हृदय, भय का क्या काम है।।


असन्तोष – Maithili Sharan Gupt Poems in Hindi

नहीं, मुझे सन्तोष नहीं।
मिथ्या मेरा घोष नहीं।
वह देता जाता है ज्यों ज्यों,
लोभ वृद्धि पाता है त्यों त्यों,
नहीं वृत्ति-घातक मैं,
उस घन का चातक मैं,
जिसमें रस है रोष नहीं।
नहीं, मुझे सन्तोष नहीं।
पाकर वैसा देने वाला—
शान्त रहे क्या लेने वाला ?
मेरा मन न रुकेगा,
उसका मन न चुकेगा,
क्या वह अक्षय-कोष नहीं ?
नहीं, मुझे सन्तोष नहीं।

माँगू क्यों न उसी को अब,
एक साथ पाजाऊँ सब,
पूरा दानी जब हो
कोर-कसर क्यों तब हो ?
मेरा कोई दोष नहीं।
नहीं, मुझे सन्तोष नहीं।

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