Poem on Symptoms of Election in Hindi – चुनाव जैसे-जैसे नजदीक आता है वैसे-वैसे नेताओं का स्वभाव बदलने लगता हैं। इसी बदलाव को इस कविता में लिखा गया है। चुनाव के सिम्प्टम पर इस बेहतरीन कविता को जरूर पढ़े।
Poem on Symptom of Election in Hindi
“Election के Best Symptoms” इस बेहतरीन कविता को संदीप शर्मा ने लिखा है। चुनाव जब आता है तो जनता से बड़े-बड़े वादे किये जाते हैं। जनता को लुभाने के लिए विभिन्न प्रकार के अभिनय किये जाते हैं। चुनाव खत्म होने के बाद जनता कुछ ठगी हुई सी महसूस करती है। फिलहाल इस कविता का आनंद लें।
पंडे स्वयं ही पुजाने लगे है,
मगरमच्छ आँसू बहाने लगे है,
समाचार पत्रों में चाव आ गया है
लगता है फिर से चुनाव आ गया है।
ना भौंके ना काटे
ना डपटे ना डांटे
संतोष का उनमें स्वभाव आ गया है
लगता है फिर से चुनाव आ गया है।
नजर वो हमको आने लगे है,
नजरे भी हमसे मिलाने लगे है,
कि गर्दन में उनकी झुकाव आ गया है
लगता है फिर से चुनाव आ गया है।
अफसर भी दफ्तर में मिलने लगे है,
फाइल के बंडल फिसलने गले है,
ऊपर से कोई दबाव आ गया है,
लगता है फिर से चुनाव आ गया है।
कपड़ों से ढकने नंगे लगे है,
शहरों में होने दंगे लगे हैं,
मदिरा के पैसे दिए जा रहे है,
बूथों पर कब्जे किये जा रहे है,
प्रजातंत्र का सिर चटकने लगा है
पैरों में फिर से ये घाव आ गया है,
लगता है फिर से चुनाव आ गया है।
– संदीप शर्मा (Sandeep Sharma)
चुनाव के नजदीक आते ही नेताओं का स्वभाव बदल जाता है। उसी के साथ-साथ जनता का भी स्वभाव बदलने लगता है। जनता को लुभाने के लिए नेता झूठी प्रेम भरी बातें करते हैं और भाषण में वादों की बरसात होती हैं। खाने-पीने का पूरा प्रबंध किया जाता है। बहुत से नेता पांच साल बाद दिखाई देते हैं। जनता भी धर्म, जात, मजहब के नाम पर बंटी हुई है। जिसका लाभ राजनीतिक दल उठाते है।
साक्षरता बढ़ी हैं लेकिन राजनीतिक जागरूकता का अभाव है इसलिए ईमानदार नेता चुनाव नहीं जीत पाते हैं। वही लोग चुनाव जीत पाते हैं जो किसी विशेष दल से टिकट पाते हैं। टिकट लेने के लिए नेताओं को भी पार्टी को चंदा देना पड़ता हैं। चुनाव में जो खर्च होता है वो अलग। सही नेता को चुने जो देश के विकास में अपना महत्वपूर्ण योगदान दे सके।
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