“महादेव”आप पर क्या लिखूं ! कितना लिखूं !
रहोगे आप फिर भी अपरिभाषित चाहे जितना लिखूं !
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मोहिनी मूरत, हृदय में छिपाए बैठे हैं, सुंदर-सी छवि आँखों में बसाए बैठे हैं,
बाँसुरी की मधुर तान सुना दे कान्हा, छोटी-सी आस लगाये बैसे हैं.
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कर्म अच्छे हो तो वही धर्म बन जाता है,
ऐसा इंसान, ईश्वर का भक्त बन जाता है.
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