गरीबी पर कविता | Poem on Poverty in Hindi

Poem on Poverty Garibi in Hindi – इस आर्टिकल में वेदप्रकाश ‘वेदान्त’ की “गरीबी पर कविता” दी गई है. वेदान्त जी एक युवा कलमकार है. आप लोगो ने इनकी कुछ रचनाओं को पहले भी पढ़ा होगा.

अमीर इंसान जो सुख की गोद में पल रहा है. वो गरीबी का दर्द कभी नही समझ सकता है. ईश्वर कुछ हृदय और दिमाग को ऐसा बनाते है कि गरीबों को देखकर उनकी आत्मा रो देती है. और कभी-कभी वह शब्दों के रूप में एक कविता बन जाती है. किसी के दर्द को कुछ शब्दों या एक कविता में बता पाना बड़ा ही मुश्किल होता है. लेकिन कवि अपनी कल्पना से उसे संभव बनाने का पूरा प्रयास करते है.

युवा कलमकार वेदप्रकाश ‘वेदान्त’ की अन्य रचनाएँ –

Poem on Poverty in Hindi

निकलों अमीरों कस्बों से बाहर,
बनते हो चहारदीवारी में नाहर,
मलिन बस्तियों में सफ़र तो करो
इंसान हो इंसानियत में बसर तो करो.

मैले कपडों में बच्चों का तन पल रहा
भूख से व्याकुल उसका मन जल रहा
चंद पैसों के लिए वो मीलो चल रहा
संकट में उसका आज और कल पल रहा
आगे बढ़कर देखो उस छप्पर के नीचे
बारिश के पानी से घर भर रहा.

देखो उस खाट पर लेटी है बुढ़िया
तकिये के नीचे रखी नीली पीली है पुड़िया
चारो तरफ़ लूटमार मची है
उसके पास पैसों की बेबसी है
किसी डॉक्टर को दिखाए
तो कैसे दिखाए
इतनी मंहगी फ़ीस भला
कहाँ से जुटाए.

कोई रहम जताने वाला कहाँ हैं
इंसानियत पे चलने वाला कहाँ है
चलो अब और आगे बढ़ो
देखो रघुवा को पढ़ने की
कितनी ललक है
किताबों में तल्लीन
उसकी पलक है
इतनी रात गए
दीपक जलाए बैठा है
मुझको तो दिखता उसमें
कलाम की झलक है.

आओ अब रघुनी की
रसोई तो निहारो
कैसे कट रहा दिन
तनिक मन में विचारों
दो वक्त की रोटी भी
मुश्किल से जुट रही है
इनकी मेहनत से ही
बनता मकान तिहारो.

वो देखो करमू अभी भी जगा है,
मिट्टी की मूरत बनाने में लगा है,
जिस मूरत में हम ईश्वर देखते
उसे सस्ते दामों में लेकर
हमने उसको ठगा है.

देखो उसके घर रोना पिटना पड़ा है,
तंगी में हरिया जहर खाने पे अड़ा है,
उसका इकलौता बेटा बीमार है बहुत
पैसे ने उसके जीवन पर ताला जड़ा है.

गरीबी मिटाने का नारा लगाते बहुत हो,
बस अखबारों में रहम जताते बहुत हो,
ये किस्मत के मारे यहीं के यहीं हैं
नाम कमाने के दिन ही खिलाते बहुत हो.

निकलों अमीरों कस्बों से बाहर,
बनते हो चहारदीवारी में नाहर,
मलिन बस्तियों में सफ़र तो करो
इंसान हो इंसानियत में बसर तो करो.

कवि और लेखक – वेद प्रकाश “वेदान्त”
प्रयागराज, उत्तर प्रदेश


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