Ved Prakash Vedant Poem on Poet – इस पोस्ट में वेद प्रकाश वेदान्त की कविता “चमकाओ कलम की धार कवि” दी गयी हैं, जो कवियों पर एक प्रेरक दृष्टिपात हैं. कविता को कविता के यथार्थ स्वरूप में रहने देने का निवेदन एवं फूहड़ता का उच्छेदन करना ही कवि का विचार हैं.
वेद प्रकाश की कविता | Ved Prakash Ki Kavita
चमकाओ कलम की धार कवि
तुमसे ही जन उद्धार कवि
मत लिखो हीर-राँझा की कहानी
इश्क नगर की मुहब्बत रूहानी
मांगू गुजरे लम्हें उधार कवि
चमकाओ कलम की धार कवि…
वो नगमें फिर से लौटाओ
बिसरे गीत ग़जल-रस बरसाओ
पनघट पर बैठी सखियों संग
राधा की सूरत झलकाओं
मत जाओ बेबी शीला पर
अपना अतुल्य दिल हार कवि
हया शर्म से ढके बदन का
यूँ न करो सत्कार कवि
अपने ताकतवर कलम से
दो मत वस्त्र उतार कवि
चमकाओ कलम की धार कवि…
प्रेमरस की गागर छलकाओ
हनी सिंह को मत पास बिठाओ
कलम का आचरण शुद्ध बनाओ
उघरे इश्क़ गली में मत भटकाओ
ऐसा कुछ तुम लिख जाओ
संस्कारों में तौले जाओ
संतुलित शब्द कंठस्थ न हो
ले लो, कबिरा तुलसी से उधार कवि
तुमसे ही सभ्य संस्कृति का
होना है जीर्णोद्धार कवि
चमकाओ कलम की धार कवि…
लिखते हो कविता तो लिख दो
गरीबों की पीड़ा पुकार कवि
नेताही अफ़सरशाही पर
करो अमिट प्रहार कवि
कुंठित समाज की कुंठाओं का
हो न कलम में वास कवि
सज्जन का हृदय लाभान्वित हो
बुझे पाठक की प्यास कवि
चमकाओ कलम की धार कवि…
सत्य की मटकी मत फोड़ो
फूहड़ता का विष मत घोलो
कविता को कविता रहने दो
इसे इश्क-विश्क से मत जोड़ो
तुमसे ही साहित्य की नैया
होनी है उस पार कवि
चमकाओ कलम की धार कवि…
तुमसे ही जन उद्धार कवि
लेखक – वेदप्रकाश वेदान्त
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