‘नव अर्श के पांखी’ काव्य संग्रह – अनुपमा श्रीवास्तव ‘अनुश्री’

Best Poem Collection of Anupama Anushri ‘Nav Arsh Ke Pankhi’ – मध्य प्रदेश साहित्य उत्सव- 2018 में श्री कमल किशोर गोयनका, उपाध्यक्ष- केंद्रीय हिंदी संस्थान आगरा, श्री उमेश सिंह निदेशक, साहित्य अकादमी मध्य प्रदेश व वरिष्ठ साहित्यकार ओम निश्चल आदि गणमान्य अतिथियों की उपस्थिति में रविन्द्र भवन भोपाल में “नव अर्श के पांखी” काव्य संग्रह का विमोचन किया गया है. मध्य प्रदेश साहित्य अकादमी ( Madhya Pradesh Sahitya Academy ) द्वारा पांडुलिपि पुरस्कार से पुरस्कृत इस कृति की रचनाकार अनुपमा ‘अनुश्री’ हैं, साहित्यकार, कवयित्री, एंकर – “अनुपमा श्रीवास्तव ‘अनुश्री'” मॉरीशस में अध्यापन और साहित्य लेखन के पश्चात भारत में यह उनका दूसरा काव्य संग्रह प्रकाशित हुआ है. इसके पहले उनका बाल काव्य संग्रह “अवि, तुम्हारे लिए” भी प्रकाशित हो चुका हैं.


पाना है नव अर्श
नया इंसान चाहिए
बेबसी लाचारी की सांझ ढ़ले
नूतन विहान चाहिए।

नव अर्श के पांखी” कृति में, छह भागों में समाहित लगभग 90 कविताएं हैं, जो जीवन के विविध आयामों,पहलुऒं को छूते हुए जीवनदायिनी प्रकृति के उत्कट सौंदर्य, प्रेम की उच्चता और अध्यात्म को स्पर्श करती हुईं, सामाजिक परिदृश्य के कैनवास पर नई रोशनी, नई आशाएं,नये रंगों, नवाचार और नई उड़ान को लक्ष्य करती रचनाएं हैं जो आज की आपाधापी – भागम भाग ,अनिश्चितता ,अवसाद , गला काट प्रतिद्वंदिता , असीमित महत्वाकांक्षाओं के दौर में सकारात्मकता , शांतिपूर्ण सह अस्तित्व, संवेदन युक्त विकास, न्याय पूर्ण सम्यक ,मानवोचित व्यवहार, सद्भावना- संवेदनशीलता , इंसानी जज्बों की अहमियत खु़शनुमा ,पुरसुकून, शांति, सरल- सहज उच्च विचार पूर्ण जिंदगी जीने का उद्घोष करती हैं.

Nav Arsh Ke Pankhi

सामाजिक सरोकार के आवश्यक मुद्दे ,मानवीय मूल्यों की पुनर्स्थापन की जरूरत , सामाजिक विसंगतियों और वर्तमान सामाजिक परिप्रेक्ष्य को सामने रखते हुए कहीं व्यंग्य पूर्ण शैली है, कहीं कटाक्ष, तो कहीं तर्क सम्मतता, भाव गहनता .
नैतिक मूल्य, धर्म -संस्कृति और सभ्यता, देश प्रेम ,नारी अस्मिता की अभिव्यक्ति , पर्यावरण, वहीं आज के जमाने की सोशल साइट्स की चमक दमक, शो ऑफ ,दिखावा और समय का व्यर्थ व्यय, शब्दों के अपव्यय पर भी लेखनी कायम है. रचनाकार की दृष्टि में” मानसिकता पर काम करना- मानसिकता बदलना” सर्वोपरि है. और वर्तमान समय ही वह घड़ी है जहां “सोच बदलो- कर्म बदलेंगे “कहना बहुत जरुरी है.

“नव अर्श के पांखी” काव्य संग्रह से ली कविता “प्रगतिशील”

पीछे नहीं देखना चाहते!
कमान से निकले
तीर की तरह
बस आगे ही आगे
बढ़ते जाना चाहते हैं।

प्रगतिशील , बुद्धि जीवी
कहलाना पसंद करते हैं
धूल,फूल ,बगान नहीं
अंतरिक्ष यान की बात करते हैं।

पीछे देखने से डर जाते हैं
भूत को भूत समझ घबराते हैं
पश्चिम की नकल कर
ख़ुद की पहचान भूल जाते हैं।

कखग आए न आए
बोंजू, गुड मॉर्निंग आ जाए
साडी, कुर्ता न भाये
शार्टस, टाई में इठलाऐं
न मानवीय,न अध्यात्मिक
न आत्मिक,न नैतिक
सिर्फ येन केन प्रकारेण
विकास चाहिऐ आर्थिक।

फास्ट फूड की तरह
सफलताएं
गटक जाना चाहते हैं
पहली सीढ़ी पर क़दम रखे बग़ैर
टाप पर जम जाना चाहते हैं
इस भागदौड़ में थके, बीमार
फिर अस्पतालों की
ऊंचाईयां बढ़ाते हैं।

हमारी अक्षुण्ण संस्कृति, दर्शन
जिनमें छिपे अमूल्य जीवन मूल्य,
पढ़ना,जानना ,मार्गदर्शन भूल
परकटे पंछी की तरह
हवाओं में गोते लगाना चाहते हैं।

@अनुपमा श्रीवास्तव “अनुश्री”

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शुभकामनाएं

अनुपमा श्रीवास्तव अनुश्री ,की कविताओं को पढ़ते-पढ़ते एक अनोखा अहसास अनायास ही अनुभव होने लगता है कि पढ़ने के साथ-साथ भीतर भी कुछ उतर रहा है. कुछ बेहद मीठे ढंग से एक संस्कार जगा जाए, हृदय को तरंगित कर दे, शिराओं में शक्ति दे जाए और मस्तिष्क को कुछ संवेदना जगाने की बात कह दे ,तो वह रचना अपने वर्तमान के साथ सुदूर स्थित भविष्य में भी माननीय हो जाती है. अनुश्री की रचना धर्मिता कुछ इसी प्रकार का संकेत देती है कि एक (कवि) के ह्रदय से निकले और दूसरे (पाठक) के ह्रदय में समा जाए। यह पुस्तक हर पाठक को पढ़ना चाहिए, क्योंकि ” इस पुस्तक में हमारे समय का शब्दगान दर्ज है “.
– डॉ. प्रेम भारती

इस पुस्तक की हथेली पर अपना अबीर रखते हुए अनुश्री से कहना चाहूंगा कि आकाश में अरबों -खरबों नक्षत्र हैं पर प्रत्येक नक्षत्र- सितारे का अपना स्वंम का आभा मंडल है। सत्यम शिवम सुंदरम को अपनी सारस्वत साधना में शामिल करते हुए कलम चलानी है। आलोचकों की परवाह मत करो, संसार में आलोचकों के स्मारक नहीं बनते.
– बाल कवि बैरागी

अनुपमा की कविताओं का फलक बहुत विशाल है जिसमें अनेक तरह के चित्र उकेरे जा सकते हैं ,रंग भरे जा सकते हैं. वर्तमान का कोई विषय अनुश्री ने अछूता नहीं छोड़ा है। प्रकृति, देश प्रेम ,मानवता ,हिंदी, नारी के सभी रूप ,भारतीय संस्कृति, भारतीय सोच से भरी पूरी काव्य रचनाएं हैं. अनुश्री नैसर्गिक कवयित्री हैं जिनकी लेखनी से काव्य धारा झरने की तरह छूटती है और अनेक दिशाओं में फैल जाती है.
– डा. मालती बसंत

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