बच्चों की कल्पना शक्ति को कैसे विकसित करें ( How to Develop Childrens Imagination in Hindi ) – बच्चे का मानसिक और शारीरिक विकास शुरूआत के कुछ वर्षों में बड़ी तेजी से होता है. ऐसे समय में बच्चों को संतुलित आहार और ऐसे मानसिक कार्य देना आवश्यक है जो बालक के कल्पना शक्ति को अच्छे से विकसित करने में मदत करें.
कल्पना की परिभाषा | Definition of Imagination in Hindi
कल्पना अनुभव पर आधारित होती है. कल्पना में हमेशा नयापन होता है. कई बार पुराने अनुभवों को नया रूप देकर सजाया जाता है. एक बालक जो कुछ देखता, सुनता और सीखता है उसके आधार पर उसके कल्पना का विकास शुरू हो जाता है. वुडवर्थ ने कल्पना को मानसिक प्रहस्थन ( Manipulation ) की संज्ञा दी है. कल्पना को परिभाषित करते हुए आसान शब्दों में कहा जा सकता है कि – “पूर्व अनुभव से प्राप्त विचार में बदलाव करके नयापन लाना ही कल्पना कहलाता है. “
बालक के बुद्धि का विकास धीरे-धीरे होता है. वो अपने आस-पास की चीजों को देखता है. उनके बारें में सुनता फिर एक निश्चित अवधि के बाद समझना प्रारम्भ करता है. दो वर्ष की अवस्था तक बच्चो की कल्पना का विकास बहुत ही मंद गति से होता है. दो वर्ष के बाद बच्चों के कल्पना में पंख लगने शुरू होते है. ऐसे समय में ही माता-पिता, परिवार और समाज में होने वाली क्रियाओं को सीखने लगता है.
बच्चों की कल्पना को कैसे विकसित करें | How to Develop Children’s Imagination
बच्चों में कल्पना का विकास एक निश्चित समय के बाद होता है. उस समय वह जो देखता, सीखता, सुनता, महसूस करता है उसके आधार पर उसकी कल्पना होती है. बच्चों के कल्पना विकास में इनका महत्वपूर्ण योगदान होता है.
1- भाषा ( Language )
भाषा का ज्ञान होने पर बालक लोगो की भावनाओं को समझना प्रारम्भ कर देता है. जिससे उसके दिमाग में आने वाले प्रश्नों का उत्तर मिलने लगता है. बालक के भाषा ज्ञान बढ़ने के साथ-साथ कल्पना के विकास की क्षमता भी बढ़ने लगती है. इसलिए बच्चों में शब्द ज्ञान बढ़ाना चाहिए. आस-पास की वस्तुओ के नाम बताना चाहिए. लगभग 5-6 वर्ष की अवस्था के बच्चे कल्पना के आधार पर दूसरों का नकल करना प्रारम्भ कर देते है.
जब बच्चे टीवी पर कुछ देखते है तो उसे वह सत्य मानते है और उस किरदार को जीने की कल्पना करते है जो उन्हें अच्छा लगता है. एक गाने का विडियो देखकर कुछ बच्चे नाचना सीखते है तो कुछ बच्चे गाना सीखते. अपनी रुचि, कल्पना और सूझबूझ के आधार अपर यह निर्णय लेते है.
2- कहानियाँ ( Stories )
बालकों के कल्पना के विकास को कहानियाँ भी महत्वपूर्ण रूप से प्रभावित करती है. कहानियों के माध्यम से नये-नये शब्दों का ज्ञान बढ़ता है. साथ-साथ कहानियों से कल्पना का विकास होता है.
रवीन्द्रनाथ ठाकुर जब अपनी दादी से कहानी सुनते थे तब उन्हें खाने-पीने की सुध भूल जाती थी. उन्होंने कहा है कि “सत्य के दर्शन तो केवल काल्पनिक जगत में ही हो सकता है.” बहुत से बच्चे कहानी को बड़ा मन लगाकर सुनते है. अब बच्चे उन कहानियों को कार्टून या किसी विडियो के रूप में देखते है. दुःख, सुख, साहस, वीरता, सफलता, असफलता, हास्य, जादूगर, राक्षस, राजा, रानी, परियों की कहानियाँ बच्चों की कल्पना शक्ति के विकास में सहायक होते है.
मेरा यह व्यक्तिगत अनुभव है कि गणित शहर के बच्चों से अच्छा गाँव के बच्चों का होता है. इसका मुख्य कारण यह है कि उनके घर में कोई न कोई उन्हें कहानी सुनाता है. गणित बिलकुल कहानी की तरह होता है अगर आपको सूत्र याद है. बच्चे के सामने बैठकर कहानी सुनाने से कल्पना का विकास तीव्र होता है. जबकि टीवी पर दिखाएँ जाने वाले कहानी का प्रभाव कम होता है.
3- अभिनय या कार्यभूमिका ( Drama or Role Playing )
बालकों के कल्पना विकास को अभिनय भी महत्वपूर्ण ढंग से प्रभावित करता है. अभिनय के पात्र से बालक साहस, वीरता, नैतिकता, हास्य आदि सीखकर पात्रों के समान अपने जीवन को ढालता है. इससे बालक का अनुभव और कल्पना शक्ति बढ़ती है. अभिनय को प्रत्यक्ष देखकर भी बालक की कल्पना शक्ति बढ़ती है. दूसरे अभिनय करके बालक स्वयं अनेक नये अनुभव सीखता है. बालक गुड्डे-गुडिया, चोर-सिपाही, और डॉक्टर-मरीज जैसे खेल खेलते है तब इनमें जो उनकी कार्य भूमिकाएं होती हैं उनके करने से बालकों की कल्पना-शक्ति का विकास होता है.
4- कविताएँ ( Poetries )
बालको को सुनाई जाने वाली ज्यादातर कविताएँ कल्पना पर आधारित होती है. बच्चे कविताओं को सुनना पसंद करते है इसलिए कवितायें बच्चों को आसानी से याद हो जाती है. कविताओं में बालक चाँद से बात करता है और बच्चे को खुश करने के लिए चाँद विभिन्न प्रकार के कार्य करता है. इससे बालक के कल्पना का विकास होता है.
5- साहित्य और चित्रकारी ( Literature and Drawings )
बालकों के कल्पना को साहित्य और चित्रकारी भी प्रभावित करते है. एक लेखक अपनी भावनाओं को सुंदर तरीके से प्रस्तुत करता है जो पाठको को पसंद आता है. उसी प्रकार बालक भी अपनी भावनाओं को बड़े ही मनोहारी रूप में प्रस्तुत करता है. जिसे सुनकर मन प्रसन्न हो जाता है. भावनाओ की अभिव्यक्ति में स्मरण शक्ति और कल्पना शक्ति की महत्वपूर्ण भूमिका होती है.
बालक जब एक चित्र को देखकर उसी तरह का चित्र बानने का प्रयास करता है तो उसके मन हजारों कल्पनाएँ आती है जिसका अंदाजा लगाना मुश्किल है. बालक शुरूआत एक ही चित्र कई बार बनाता है और कई बार मिटाता है क्योंकि उसकी कल्पना के अनुरूप वह चित्र बन नही पाता है. अब आप अंदाजा लगा सकते है कि बालक की कल्पना कितनी सुंदर होगी जिसे वह कागज पर अंकित नही कर पा रहा है.
चित्रकारी से बालक खुद की कमियों को देखना सीखने लगता है. थोड़ा खराब होने पर वह उस चित्र को बार-बार बनाता है. उसमें धैर्य रुपी गुण का भी विकास होता है.
6- संगीत या वाद्य यंत्र
वाद्य यंत्र या संगीत सुनना लगभग सबको ही पसंद आता है. लेकिन बहुत कम लोग ऐसे होते है जो इसे सीखते है. इसे सीखने से कल्पना शक्ति का विकास होता है. संगीत या वाद्य यंत्र सुनने में जितना अच्छा और आसान लगता है उसे अच्छे से सीखने में उतनी ही मुश्किलें आती है. उन मुश्किलों का हल एक बालक अपनी कल्पना शक्ति के आधार करता है. इसलिए उसकी कल्पना शक्ति और अधिक बढ़ जाती है.
7- जनमाध्यम ( Mass Media )
सिनेमा, टेलीविजन, मोबाइल, रेडियों जैसे माध्यम बालकों के लिए अनेक कार्यक्रम देते है जिनसे बालक की कल्पना शक्ति विकसित होती है. बच्चों के लिए विशेष रूप से बनाई गई कार्टून फ़िल्में “कल्पना के विकास” का अति महत्वपूर्ण योगदान देती है.
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