Poem on Indira Gandhi in Hindi – इंदिरा गांधी भारत की प्रथम महिला प्रधानमंत्री थी. इनका जन्म 19 नवम्बर 1917 में हुआ था और मृत्यु 31 अक्टूबर 1984 को हुआ था. इनके पिता का नाम जवाहरलाल नेहरू और इनकी माता कमला नेहरू थीं.
इस पोस्ट में इंदिरा गांधी पर बेहतरीन कवितायें दी गयी हैं. इन कविताओं को जरूर पढ़े और शेयर करें.
#1- मैं इंदिरा पापा नेहरू | Poem on Indira Gandhi in Hindi
मैं पतंग पापा है डोर
पढ़ा लिखा चढ़ाया आकाश की ओर
खिली कली पकड़ आकाश की छोर
जागो, सुनो, कन्या भ्रूण हत्यारों
पापा सूरज की किरन का शोर
मैं बनू इंदिरा सी, पापा मेरे नेहरू बने
बेटियों के हत्यारों, अब तो पाप से तौबा करो
पापा सच्चे, बेहद अच्छे, नेहरू इंदिरा से वतन भरे
बेटियाँ आगे बेटों से, पापा आओ पाक ऐलान करे
देवियों के देश भारत की जग में ऊँची शान करे.
रजनी विजय सिंगला
#2- इंदिरा की प्राणज्योति | Indira Gandhi Poems in Hindi
छीन-छीन देश की बहार ले गये,
कातिलों ने ‘इंदिरा’ के प्राण ले गये !
एकता का मंत्र हम उच्चारते रहे,
कायरों ने घर में गोली दाग कर गये !
छीन-छीन देश की बहार ले गये,
कातिलों ने ‘इंदिरा’ के प्राण ले गये !
‘भारती’ के भाल की, सदा जो शान थी,
बुजदिलो ने पोंछ पल में बेवा कर गये !
आन-बान-शान की दिव्य मनोहर मूरत को,
गद्दारों ने पल में उसे तोड़कर चले गये !
छीन-छीन देश की बहार ले गये,
कातिलों ने ‘इंदिरा’ के प्राण ले गये !
पूत तो सपूत बहु जाये इस भारती ने,
किन्तु कुछ कपूत यह नीच कर्म कर गये !
माँ के चरणों की पूजा के बदले में,
माँ की प्राणज्योति ही बुझा के चले गये !
छीन-छीन देश की बहार ले गये,
कातिलों ने ‘इंदिरा’ के प्राण ले गये !
देश को तरक्की के शिखर पर चढ़ा जिसने,
विश्व में ‘माँ भारती’ की शान को बढ़ाया था !
देश द्रोहियों ने सम्मान में उसे ही आज,
सीना छलनी कर जमीं पर लोटा गये !
छीन-छीन देश की बहार ले गये,
कातिलों ने ‘इंदिरा’ के प्राण ले गये !
‘इंदिरा’ की प्राणज्योति बुझी ना बुझेगी कभी,
वो तो लाखों प्राणज्योति बन कर के जल रही !
कायरों ने सोचा था, नामो निशां मिटा देंगे,
किन्तु वो तो ‘भारती’ के नाम ही से जुड़ गयी !!
छीन-छीन देश की बहार ले गये,
कातिलों ने ‘इंदिरा’ के प्राण ले गये !
जगदम्बा प्रसाद मिश्र ‘गौरव’
#3- इंदिरा गाँधी पर कविता | Indira Gandhi Kavita
जिसको दुनिया ने लोहे की,
महिला कह कर के पुकारा था
जिसे अटल बिहारी जी ने तब,
दुर्गा कह करके सराहा था
वह आंधी इंदिरा गांधी थी,
जिसमें था पकिस्तान उड़ा
यशपान आज उसका कर लो,
जिसने गौरव दिलवाया था.
तेरह बसंत की आयु में,
वानर सेना इक निर्मित की
आजादी की खातिर इंदिरा,
तन मन से पूर्ण समर्पित थीं.
जो जुटीं तो पीछे ना देखा,
बस आगे कदम बढ़ाया था
यशगान आज उसका कर लो,
जिसने गौरव दिलवाया था.
जिसने परमाणु बम का बल,
इच्छाशक्ति से दिलवाया
हुंकार पोखरण में भरकर,
जब बड़ा धमाका करवाया
कांपा था चीन इरादों से,
इक महिला से घबड़ाया था
यशगान आज उसका कर लो,
जिसने गौरव दिलवाया था.
उन्हें प्रियदर्शनी कहते थे
टैगोर नेह बरसाते थे,
मोरारजी गूंगी गुड़िया कह
जिसको दिन रात चिढ़ाते थे
नेहरू जी की बेटी थी पर
जन जन उन पर इतराया था
यशगान आज उसका कर लो,
जिसने गौरव दिलवाया था.
From – Udtibaat.com