Pandurang Vaman Kane Biography in Hindi ( डॉ. पांडुरंग वामन काणे की जीवनी ) – भारत रत्न से सम्मानित डॉ. पांडुरंग वामन काणे एक महान विद्वान्, शिक्षक और लेखक थे. भारत की प्राचीन धर्म संस्कृति को यदि पूरी दुनिया में सम्मान और आदर की दृष्टि से देखा जाता है तो इसका श्रेय भारत के महान विद्वान् पंडित पांडुरंग वामन काणे को जाता हैं.
पांडुरंग वामन काणे का जीवन परिचय | Pandurang Vaman Kane Biography in Hindi
नाम – डॉ. पांडुरंग वामन काणे
अन्य नाम – डॉ. काणे
जन्म – 7 मई, 1880
जन्म स्थान – गाँव – दापोली, जिला – रत्नागिरी, महाराष्ट्र भारत
पिता – वामन राव
व्यवसाय – अध्यापक, शोध कार्य और लेखन
भाषाज्ञान – हिंदी, संस्कृत, अंग्रेजी, उर्दू, फ़ारसी आदि
शिक्षा – एल. एल. बी. और एम. ए. (संस्कृत और अंग्रेजी से )
पुरस्कार – भारत रत्न
राष्ट्रीयता – भारतीय
रचनाएँ – धर्मशास्त्र का इतिहास, संस्कृत काव्यशास्त्र का इतिहास, भारतीय रीति रिवाज़ आदि
सामजिक योगदान – छुआछूत का विरोध, अंतर्जातीय और विधवा विवाह को समर्थन
मृत्यु – 18 अप्रैल, 1972
डॉ. पांडुरंग वामन काणे ( Dr. Pandurang Vaman Kane ) एक महान विद्वान् और धर्मशास्त्री थे जिन्हें संस्कृत, भारतीय संस्कृति और धर्म का विशेष ज्ञान था. इनका जन्म 7 मई, सन् 1880 ई. में दोपाली नामक गाँव में हुआ जोकि महाराष्ट्र के रत्नागिरी जिले में हैं. इनका जन्म एक ब्राह्मण परिवार में हुआ था. इनके पिता श्री वामन राव काणे, वकालत के साथ-साथ पंडिताई का भी कार्य करते थे.
ब्राह्मण परिवार का रहन-सहन इस प्रकार होता हैं कि बच्चों का झुकाव अपने आप ही धर्म के प्रति हो जाता हैं. ब्राह्मण परिवार में धार्मिक कार्यक्रम और धार्मिक अनुष्ठान अक्सर होते रहते हैं.
पांडुरंग वामन काणे की शिक्षा
पांडुरंग वामन काणे ने हाईस्कूल की परीक्षा एस. पी जी स्कूल से पास की और पूरे जिले में 23 वां स्थान प्राप्त किया. इन्होंने स्नातक की परीक्षा पास की और संस्कृति विषय में विशेष योग्यता होने के कारण “भाऊदाजी संस्कृत पुरस्कार” देकर सम्मन्ति किया गया.
डॉ. काणे पढ़ने में कुशाग्र थे इसलिए उनकी शैक्षिक योग्यता के आधार पर उन्होंने “विल्सन कॉलेज” से पढ़ाई के लिए 2साल का फ़ैलोशिप प्राप्त हुआ. पांडुरंग वामन काणे ने इसी कॉलेज से एल.एल.बी. (वकालत) की परीक्षा प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण की. उन्होंने संस्कृत और अंग्रेजी विषय से एम. ए. की परीक्षा प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण की. इसी समय इन्हें “वेदान्त पुरस्कार” द्वारा सम्मानित किया गया.
इन्होंने बाद में टीचर्स ट्रेनिंग की परीक्षा उत्तीर्ण की और इस परीक्षा में पूरे प्रान्त में प्रथम आये और इन्हें जिला सहायक शिक्षा अधिकारी का पद मिला. कुछ समय बाद अपने अध्ययन और शोध कार्यों के कारण इस पद को छोड़ दिया.
पांडुरंग वामन काणे का कार्यक्षेत्र और योगदान
- सर्वप्रथम इन्होंने अध्यापन का कार्य प्रारम्भ किया परन्तु लेखन और शोध के लिए पर्याप्त समय नहीं मिल पाता था जिसके कारण इन्होंने नौकरी छोड़ दी. लेखन और शोध कार्य में अपना पूरा समय देने लगे.
- फिर बाद में इन्होंने कुछ दिनों तक वकालत भी की परन्तु कुछ समय पश्चात उसे भी छोड़ दिया और पूरी तरह लेखन और शोध कार्य में लग गयें.
- इन्होंने अपनी रचनाओं में अपने जीवन का महत्वपूर्ण समय लगा दिया. “धर्मशास्त्र का इतिहास” इनकी प्रमुख रचना हैं. यह पांच भागों में प्रकाशित हुआ हैं. 6500 पृष्ठों का यह ग्रंथ भारतीय धर्मशास्त्र का विश्वकोश है.
पुरस्कार एवं सम्मान
- 1946– इलाहाबाद विश्वविद्यालय ने “मानद डॉक्टरेट” के सम्मान से सम्मानित किया.
- 1948, 1951 और 1954 – प्राच्य विद्याविदों के अन्तराष्ट्रीय सम्मेलन में इन्होंने भारतीय प्रतिनिधि मंडल का नेतृत्व किया.
- 1960 – पुणे विश्वविद्यालय ने डॉक्टरेट की उपाधि से सम्मानित किया.
- 1963 – भारत सरकार द्वारा भारत रत्न से सम्मानित किया गया.
- 1965 – “धर्मशास्त्र का इतिहास” के 5 खंडो में से चौथे खंड को “साहित्य अकादमी पुरस्कार” मिला.
पांडुरंग वामन काणे का मृत्यु
जीवनपर्यन्त एक महान व्यक्तित्व की तरह अपने धर्म ज्ञान को शब्दों का रूप देते रहे ताकि आने वाली पीढ़ियाँ उनके लेखों और विचारों को जान सके. जीवन में भारतीय संस्कृति और सभ्यता को उतार सके. रूढ़िवादी विचारों और अंधविश्वास से दूर रह सके.
महान साहित्यकार, शिक्षा शास्त्री, धर्म शास्त्री डॉ. पांडुरंग वामन काणे की मृत्यु 18 अप्रैल, सन् 1972 को 92 वर्ष की आयु में हुआ.
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