Adi Shankaracharya Biography in Hindi – आदिशंकराचार्य जी भगवान शिव के अवतार थे, इन्होंने हिन्दू धर्म को समृद्धि और शक्तिशाली बनाने के लिए जीवन पर्यन्त कार्य किया. भारतवर्ष में चार मठों की स्थापना की थी जो अभी तक बहुत प्रसिद्ध और पवित्र माने जाते हैं और जिनके प्रबन्धक तथा गद्दी के अधिकारी “शंकराचार्य” कहे जाते हैं. वे चारों स्थान ये हैं –
- श्रृंगेरी पीठ
- गोवर्धन पीठ
- शारदा पीठ
- ज्योतिष्ठ पीठ
आदि शंकराचार्य की जीवनी | Adi Shankaracharya Biography in Hindi
नाम – शंकराचार्य या आदि शंकराचार्य ( Shankaracharya or Adi Shankaracharya )
जन्मतिथि – 788 ई. में
जन्मस्थान – कलादी (केरल)
पिता – शिव गुरू
माता – आर्यम्बा या आरयामा
धर्म – हिन्दू
भाषा – संस्कृत, हिंदी
प्रथम गुरू – गोविन्द भागवत्पाद
उपाधि – परमहंस
सम्मान – शिवावतार, आदिगुरु, श्रीमज्जगदगुरु, धर्मचक्रप्रवर्तक
दार्शनिक मत – अद्वैतवाद
मृत्यु – 820 ई.
मृत्यु स्थान – बद्रीनाथ
आदि शंकराचार्य का प्रारम्भिक जीवन | Early Life of Adi Shankaracharya
शंकराचार्य का जन्म 788 ई. में केरल प्रान्त के अल्वर नदी के तटवर्ती ग्राम कलादी में हुआ था. उनके पिता का नाम शिवगुरू तथा माता का नाम सुभद्रा ( आर्यम्बा) था. बाल्यकाल में ही उनके पिता का देहांत हो गया अतः माता ने उनका पालन पोषण किया. उन्होंने अपने पुत्र की शिक्षा-दीक्षा की ओर विशेष ध्यान दिया. शंकराचार्य बचपन से ही प्रतिभा के धनी थे. तीन वर्ष की आयु में ही अपने मातृभाषा मलयालम पर पूरी तरह नियंत्रण पा लिया. पाँच वर्ष की आयु में उनका उपनयन संस्कार हुआ तथा उन्हें गुरूकुल में अध्ययन हेतु भेजा गया.
गुरूकुल से अध्ययन समाप्त कर वे घर लौट आये तथा शिक्षा केने का कार्य करने लगे. समय के साथ-साथ शंकराचार्य के असाधारण प्रतिभा की चर्चा दूर-दूर तक फैलने लगी उनके विद्वता की चर्चा सुनकर केरल नरेश राजशेखर ने अपने मंत्री को सोने की अशर्फियों के उपहार के साथ राजदरबार में आमंत्रित करने के लिए भेजा. किन्तु शंकराचार्य ने उस आमन्त्रण को अस्वीकार कर दिया. बाद में राजशेखर उनका दर्शन करने स्वयं उनके पास गया. आठ वर्ष की अवस्था में ही अपनी माता की अनुमति लेकर शंकराचार्य ने सन्यास ग्रहण कर लिया.
शंकराचार्य का गृह त्याग | Adi Shankaracharya’s Home Sacrifice
सन्यास ग्रहण करने के बाद शंकराचार्य मध्य भारत में नर्मदा नदी के तट पर आये जहाँ उनकी भेंट गोविन्द भागवत्पाद से हुयी जिसे शंकराचार्य ने अपना प्रथम गुरू बनाया तथा सन्यास की दीक्षा ली. गुरू ने उन्हें परमहंस की उपाधि प्रदान की. दीक्षा ग्रहण करने के बाद अपने गुरू के आज्ञानुसार सर्वप्रथम काशी (वाराणसी) चले आयें, जहाँ वे दार्शनिक सिद्धांतों का अध्ययन किये तथा अपने ज्ञान के प्रचार कार्य में लीन हो गये. शंकराचार्य ने भारतीय संस्कृति परम्पराओं तथा वैदिक दर्शन के ठोस सिद्धांतों पर आधारित हिन्दूवाद के पुर्नजागरण के लिए अभियान शुरू किया.
बौद्ध और जैन धर्म का सामना करने के लिए बुद्ध संघ की तरह ही सन्यासियों के लिए तपस्वी वर्ग का पुनर्गठन किया. हिन्दू धर्म को सुव्यवस्थित करने के लिए शंकराचार्य ने स्मृति सम्प्रदाय की स्थापना की जिसमें पंचदेवोपासना का विधान हैं. शंकराचार्य ने अपने समय के प्रख्यात विद्वानों – कुमारिल भट्ट, मंडन मिश्र व उनकी पत्नी भारती को शास्तार्थ में पराजित कर वेदान्त दर्शन की सर्वोच्चता स्थापित की. वेदान्त दर्शन का प्रचार और भारतीय संस्कृतिक एकता को प्रदर्शित करने के लिए उन्होंने चारों दिशाओं में चार मठ स्थापित किये. उत्तर में वद्री नाथ, दक्षिण में श्रृंगेरी, पूर्व में पूरी तथा पश्चिम में द्वारका.
शंकराचार्य के मठ या पीठ के नाम | Shankaracharya’s Math or Peeth Names
- श्रृंगेरी पीठ ( Sringeri Peeth ) – श्रृंगेरी रामेश्वर अर्थात् दक्षिण भारत में स्थित चार मठों में एक मठ है. इसे वेदान्त मठ भी कहा जाता हैं. सर्वप्रथम इसी मठ की स्थापना हुई थी.
- गोवर्धन पीठ ( Govardhana Peeth) – यह दूसरा मत था जिसे जगन्नाथपुरी (पूर्वी भारत ) में स्थापित किया गया.
- शारदा पीठ ( Sharada Peeth ) – इसे कलिका मठ भी कहा जाता है. यह तीसरा मठ है जिसे द्वारकाधीश (पश्चिम भारत) में स्थापित किया गया.
- ज्योतिष्ठ पीठ ( Jyotishth Peeth ) – ज्योतिष्ठ पीठ जिसे बदरिकाश्रम भी कहा जाता है. इस मठ को बद्रीनाथ (उत्तर भारत) में स्थापित किया गया.
शंकराचार्य का दार्शनिक मत | Shankaracharya’s Philosophical Opinion
शंकराचार्य ज्ञानमार्गी थे. जगत को मिथ्या तथा ब्रह्मा (ईश्वर) को सत्य मानते थे. ब्रह्मा प्राप्ति के लिए उन्होंने ज्ञान मार्ग पर बल दिया है. उनका दर्शन अद्वेतवाद के नाम से प्रसिद्ध है. अपने दर्शन के प्रचार के लिए उन्होंने कई ग्रंथों की रचना की जिसमें – ब्रह्मासुत्रभाष्य, गीताभाष्य, उपदेश साहसी, प्रपंच सारतन्त्र तथा मरीषापच्चम प्रमुख हैं. शंकराचार्य शैव और बौद्ध दर्शन से भी प्रभावित थे. बौद्ध धर्म के महायान शाखा से प्रभावित होने के कारण उन्हें प्रच्छन्न बौद्ध कहा गया है.
शंकराचार्य के चार शिष्य : 1. पद्मपाद (सनन्दन), 2. हस्तामलक 3. मंडन मिश्र 4. तोटक (तोटकाचार्य). माना जाता है कि उनके ये शिष्य चारों वर्णों से थे.
शंकराचार्य की मृत्यु | Shankaracharya Death
हिन्दू धर्म के महान दार्शनिक और ज्ञाता ने अपने इस नश्वर शरीर को 820 ई. में त्याग किया. इनकी मृत्यु बदरीनाथ में हुई.
शंकराचार्य जयंती 2019 में कब है | Shankaracharya Jayanti 2019 Date
यहाँ नीचे अगले पांच वर्षों की शंकराचार्य जी की जयंती की दिनांक के बारें में जानकारी दे रहे हैं. वर्ष 2019 में 9 मई, वृहस्पति को हैं.
वर्ष – जयंती दिनांक
2019 – 9, मई, वृहस्पतिवार
2020 – 28, अप्रैल, मंगलवार
2021 – 17, मई, सोमवार
2022 – 6, मई, शुक्रवार
2023 – 25, अप्रैल, मंगलवार
2024 – 12 मई, रविवार
नोट – इसमें दिए हुए अधिकत्तर कंटेंट “एस. के. पाण्डे” की किताब “मध्यकालीन बहरत ( Medieval History )” से लिया गया हैं.
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