मोक्षगुंडम विश्वेश्वरैया की जीवनी | Mokshagundam Visvesvaraya in Hindi

Mokshagundam Visvesvaraya Biography in Hindi – ‘भारतरत्न‘ प्राप्त मोक्षगुंडम विश्वेश्वरैया भारत के महान अभियन्ता एवं राजनयिक थे. भारत में 15 सितम्बर इनका जन्मदिन अभियन्ता दिवस के रूप में मनाया जाता है. आज भी मोक्षगुंडम विश्वेश्वरैया को आधुनिक भारत के विश्वकर्मा के रूप में बड़े सम्मान के साथ स्मरण किया जाता है. अपने समय के बहुत बड़े इंजीनियर, वैज्ञानिक और निर्माता के रूप में देश की सेवा में अपना जीवन समर्पित करने वाले डॉ. मोक्षगुंडम विश्वेश्वरैया को भारत ही नहीं, वरन् विश्व की महान् प्रतिभाओं में गिना जाता है.

मोक्षगुंडम विश्वेश्वरैया का जीवन परिचय | Mokshagundam Visvesvaraya Biography in Hindi

नाम – मोक्षगुंडम विश्वेश्वरैया ( Mokshagundam Visvesvaraya )
जन्मतिथि – 15 सितम्बर, 1861
जन्मस्थान – कर्नाटक, भारत
माता का नाम – वेंकाचम्मा
पिता का नाम – श्रीनिवास शास्त्री
मृत्यु – 14 अप्रैल, 1962

विश्वेश्वरैया का जन्म मैसूर (कर्नाटक) के कोलार जिले के चिक्काबल्लापुर तालुक में 15 सितंबर 1861 को एक तेलुगु परिवार में हुआ था. इनके पिता श्रीनिवास शास्त्री संस्कृत के विद्वान थे. इनकी माता का नाम वेंकाचम्मा था. विश्वेश्वरैया ने शुरूआती शिक्षा अपने जन्मस्थान से ही पूरी की. आगे की पढ़ाई के लिए उन्होंने बंगलूर के सेंट्रल कॉलेज में प्रवेश लिया, लेकिन धन के आभाव में उन्हें ट्यूशन देते थे. मोक्षगुंडम विश्वेश्वरैया ने 1881 में B.A. की परीक्षा में प्रथम स्थान प्राप्त किया. इसके बाद मैसूर सरकार की मदद से इंजीनियरिंग की पढ़ाई के लिए पूना के साइंस कॉलेज में दाखिला लिया. एलसीई व एफसीई (वर्तमान समय की बीई उपाधि) की परीक्षा में प्रथम स्थान प्राप्त करके अपनी योग्यता का परिचय दिया. इनकी शिक्षा से प्रभावित होकर महाराष्ट्र सरकार ने इन्हें नासिक में सहायक इंजीनियर के पद पर नियुक्त किया.

खास व्यक्ति | Mokshagundam Visvesvaraya Story in Hindi

उस समय की बात है जब भारत अंग्रेजों का गुलाम था. रेलगाड़ी यात्रियों से खचाखच भरी हुई थी, इनमें अधिकतर अंग्रेज थे. रेलगाड़ी के एक डिब्बे में एक भारतीय मुसाफिर गंभीर मुद्रा में बैठा था. सांवले रंग और मंझले कद का वह यात्री साधारण वेशभूषा में था इसलिए वहां बैठे अंग्रेज उसे मूर्ख और अनपढ़ समझ रहे थे और उसका मजाक उड़ा रहे थे, परन्तु वह व्यक्ति किसी की बात पर ध्यान नहीं दे रहा था. अचानक उस व्यक्ति ने उठकर गाड़ी की जंजीर खींच दी. तेज रफ्तार में दौड़ती वह गाड़ी तत्काल रुक गई. थोड़ी देर में रेलगाड़ी का गार्ड भी आ गया और उसने पूछा, “जंजीर किसने खींची है?” तभी एक व्यक्ति ने उत्तर दिया, “मैंने खींची है.” गार्ड के कारण पूछने पर उस व्यक्ति ने बताया, “मेरा अनुमान है कि यहां से लगभग एक फर्लांग की दूरी पर रेल की पटरी उखड़ी हुई है.” गार्ड ने पूछा, “आपको कैसे पता चला?” वह बोले,”श्रीमान! मैंने अनुभव किया कि गाड़ी की स्वाभाविक गति में अंतर आ गया है. पटरी से गूंजने वाली आवाज की गति से मुझे खतरे का आभास हो रहा है.” गार्ड उस व्यक्ति को साथ लेकर जब कुछ दूरी पर पहुंचा तो यह देखकर दंग रहा गया कि वास्तव में एक जगह से रेल की पटरी के जोड़ खुले हुए हैं और सब नट-बोल्ट अलग बिखरे पड़े हैं. दूसरे यात्री भी वहां आ पहुंचे. जब लोगों को पता चला कि उस व्यक्ति की सूझबूझ के कारण उनकी जान बच गई है तो वे उसकी प्रशंसा करने लगे. गार्ड ने पूछा, “आप कौन हैं?” उस व्यक्ति ने कहा, “मैं एक इंजीनियर हूं और मेरा नाम है डॉ॰ एम. विश्वेश्वरैया.” नाम सुन सब आश्चर्य चकित रह गए. दरअसल उस समय तक देश में डॉ॰ विश्वेश्वरैया की ख्याति फैल चुकी थी. लोग उनसे क्षमा मांगने लगे. डॉ॰ विश्वेश्वरैया का उत्तर था, “आप सब ने मुझे जो कुछ भी कहा होगा, मुझे तो बिल्कुल याद नहीं है.”

मोक्षगुंडम विश्वेश्वरैया का कार्य | Mokshagundam Visvesvaraya’s Work

दक्षिण भारत के मैसूर, कर्र्नाटक को एक विकसित एवं समृद्धशाली क्षेत्र बनाने में एमवी का अभूतपूर्व योगदान है. तकरीबन 55 वर्ष पहले जब देश स्वंतत्र नहीं था, तब कृष्णराजसागर बांध, भद्रावती आयरन एंड स्टील व‌र्क्स, मैसूर संदल ऑयल एंड सोप फैक्टरी, मैसूर विश्वविद्यालय, बैंक ऑफ मैसूर समेत अन्य कई महान उपलब्धियां एमवी ने कड़े प्रयास से ही संभव हो पाई, इसीलिए इन्हें कर्नाटक का भगीरथ भी कहते हैं. जब वह केवल 32 वर्ष के थे, उन्होंने सिंधु नदी से सुक्कुर कस्बे को पानी की पूर्ति भेजने का प्लान तैयार किया जो सभी इंजीनियरों को पसंद आया. सरकार ने सिंचाई व्यवस्था को दुरुस्त करने के उपायों को ढूंढने के लिए समिति बनाई. इसके लिए एमवी ने एक नए ब्लॉक सिस्टम को ईजाद किया. उन्होंने स्टील के दरवाजे बनाए जो कि बांध से पानी के बहाव को रोकने में मदद करता था. उनके इस सिस्टम की प्रशंसा ब्रिटिश अधिकारियों ने मुक्तकंठ से की. आज यह प्रणाली पूरे विश्व में प्रयोग में लाई जा रही है.

विश्वेश्वरैया शिक्षा की महत्ता को भलीभांति समझते थे. लोगों की गरीबी व कठिनाइयों का मुख्य कारण वह अशिक्षा को मानते थे. उन्होंने अपने कार्यकाल में मैसूर राज्य में स्कूलों की संख्या को 4,500 से बढ़ाकर 10,500 कर दिया. इसके साथ ही विद्यार्थियों की संख्या भी 1,40,000 से 3,66,000 तक पहुंच गई. मैसूर में लड़कियों के लिए अलग हॉस्टल तथा पहला फ‌र्स्ट ग्रेड कॉलेज (महारानी कॉलेज) खुलवाने का श्रेय भी विश्वेश्वरैया को ही जाता है.

विश्वेश्वरैया जी के बहुत से ऐसे कार्य है जो अति प्रसंसनीय और प्रेरणादायक हैं. भारत के विकास में किया गया इनका योगदान कभी भी भूला नहीं जा सकता हैं.

सम्मान एवं पुरस्कार | Honor and Awards

  • 1955 में उनकी अभूतपूर्व तथा जनहितकारी उपलब्धियों और कार्यों के लिए उन्हें देश के सर्वोच्च सम्मान “भारत रत्न ( Bharat Ratna )” से सम्मनित किया गया.
  • 100 वर्ष के हुए तो भारत सरकार ने डाक टिकट जारी कर उनके सम्मान को और बढ़ाया.

मोक्षगुंडम विश्वेश्वरैया के बारें में रोचक तथ्य | Other Interesting Facts about Mokshagundam Visvesvaraya

  • 1952 में, विश्वेश्वरैया पटना गंगा नदी पर राजेन्द्र सेतु पुल निर्माण की योजना के संबंध में गए. उस समय इनकी उम्र 92 वर्ष थी. चिलचिलाती धूप थी और साइट पर कार से जाना संभव नहीं था, पर वे साइट पर पैदल ही गए और लोगों को हैरान कर दिया. विश्वेश्वरैया ईमानदारी, त्याग, मेहनत इत्यादि जैसे गुणों के धनी व्यक्ति थे. उनका कहना था, कार्य जो भी हो लेकिन वह इस ढंग से किया गया हो कि वह दूसरों के कार्य से श्रेष्ठ हो.
  • एक व्यक्ति ने उनसे पूछा, “आपके चिर यौवन का रहस्य क्या है?” डॉ॰ विश्वेश्वरैया ने उत्तर दिया, ‘जब बुढ़ापा मेरा दरवाज़ा खटखटाता है तो मैं भीतर से जवाब देता हूं कि विश्वेश्वरैया घर पर नहीं है और वह निराश होकर लौट जाता है. बुढ़ापे से मेरी मुलाकात ही नहीं हो पाती तो वह मुझ पर हावी कैसे हो सकता है?
  • 1920 में, इन्होंने अपनी किताबी “रिकंस्ट्रक्टिंग इंडिया (Reconstructing India)” को प्रकाशित कराया. इसके अलावा 1935 में “प्लान्ड इकॉनामी फॉर इंडिया ( Planned economy for India )” भी लिखी.
  • एक बार कुछ भारतीयों को अमेरिका में एक फैक्ट्री की कार्यप्रणाली देखने के लिएगये थे. फैक्ट्री के एक ऑफीसर ने एक विशेष मशीन की तरफ इशारा करते हुए कहा, “अगर आप इस मशीन के बारे में जानना चाहते हैं, तो आपको इसे 75 फुट ऊंची सीढ़ी पर चढ़कर देखना होगा“. भारतीयों का प्रतिनिधित्व कर रहे सबसे उम्रदराज व्यक्ति ने कहा, “ठीक है, हम अभी चढ़ते हैं”. यह कहकर वह व्यक्ति तेजी से सीढ़ी पर चढ़ने के लिए आगे बढ़ा. ज्यादातर लोग सीढ़ी की ऊंचाई से डर कर पीछे हट गए तथा कुछ उस व्यक्ति के साथ हो लिए. शीघ्र ही मशीन का निरीक्षण करने के बाद वह शख्स नीचे उतर आया. केवल तीन अन्य लोगों ने ही उस कार्य को अंजाम दिया. यह व्यक्ति कोई और नहीं बल्कि डॉ॰ एम.विश्वेश्वरैया थे जो कि सर एमवी के नाम से भी प्रसिद्ध हैं.

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