Mumbai Dabbawala in Hindi – मुंबई डब्बावाला या मुंबई डब्बेवाले ऐसे लोगों का समूह है जो सरकारी और प्राइवेट काम करने वालों के घर से उनका दोपहर का खाना उनके ऑफिस पहुंचाते हैं. इसमें लगभग 5 हजार लोग काम करते हैं और ये बिना किसी देरी के एकदम सही समय पर लगभग 2 लाख टिफिन को उनके सही स्थान से उठाकर सही स्थान पर पहुंचाते हैं.
यदि आप कोई व्यवसाय करने की सोच रहे हैं या कोई व्यवसाय कर रहे हैं तो इनके कार्य प्रणाली से आपको बहुत कुछ सीखने को मिल सकता हैं. इन बिज़नस मॉडल को भारत के टॉप आईआईटी कॉलेज के साथ-साथ विश्व के प्रसिद्ध यूनिवर्सिटी में बच्चों को पढाया जाता हैं.
मुम्बई डब्बावाला का इतिहास | Mumbai Dabbawala History in Hindi
मुम्बई डब्बावाला या मुंबई डब्बेवाले की शुरुआत सन् 1890 ई. में हुई. लगभग 125 आल पहले, एक पारसी बैंकर अपने कार्यालय में घर का बना खाना चाहता था और उसने पहली बार डब्बावाला को यह जिम्मेदारी दी. कई लोगो को यह विचार पसंद आया और डब्बा डिलीवरी की मांग बढ़ गई. यह शुरूआत में सभी अनौपचारिक और व्यक्तिगत प्रयास था, लेकिन दूरदर्शी महादेव हवाजी बाचे ने मौका देखा और अपनी वर्तमान टीम-डिलीवरी प्रारूप में 100 डब्बोंवालों के साथ दोपहर के भोजन की सेवा शुरू की.
जैसे-जैसे शहर बढ़ता गया, डब्बा डिलवरी की मांग भी बढ़ती गई. उसी समय (शुरूआत में) बनाई गई कोडिंग प्रणाली अभी भी 21वीं सदी में भी कार्य कर रहा हैं. सफ़ेद पोशाक और पारम्परिक गांधी टोपी पहने मुंबई शहर में ये डब्बे वाले लोगो के घर से खाना उनके ऑफिस पहुंचाते हैं.
मुंबई डब्बावाला के नियम | Rules of Mumbai Dabbawala
- काम के दौरान कोई व्यक्ति नशीली पदार्थ का सेवन या नशा नहीं करेगा.
- इसमें कार्य करने वाले व्यक्तियों को सिर पर हमेशा सफेद टोपी पहननी होगी.
- हर व्यक्ति को अपना पहचान पत्र (आई कार्ड) साथ रखना होगा.
- छुट्टी लेने के लिए पूर्व सूचना देनी होगी.
मुंबई डब्बावाला के बारें में रोचक जानकारी | Interesting Facts about Mumbai Dabbawala
- मुंबई डब्बावाला समूह में लगभग पांच हजार लोग काम करते हैं.
- ये पांच हजार लोग लगभग दो लाख लोगो को खाना उनके ऑफिस में पहुंचाते हैं.
- खाने का टिफिन पहुँचाने के लिए साइकिल और लोकल ट्रेन का प्रयोग करते हैं.
- इस कार्य से जुड़े कर्मचारी को हर महीने लगभग 9-10 हजार रूपये मिलता हैं.
- खाने का टिफिन ऑफिस पहुंचाने के लिए हर महीने केवल 600 रूपये देना होता हैं.
- साल में एक महीने का अतिरिक्त वेतन बोनस के तौर पर मिलता हैं.
- मुंबई डब्बावाल समूह को डिब्बा पहुँचाने में महारथ हासिल हैं. डब्बा उठाने और पहुंचाने में कोई गलती नहीं होती हैं. शुरू से अबतक की गलतियों की बात करें तो उंगलीयों पर गिना जा सकता हैं. बड़े-बड़े बिज़नस मैन इस मॉडल को समझ नहीं पाते कि बिना देरी, बिना किसी गडबडी और बिना गलती के कैसे डिलवरी होता हैं.
- Mumbai Dabbawala पर कई बार शोध हो चूका हैं. 2005 में आईआईटी ने इस संस्था पर किये गये शोध में यह बताया कि यह एक उत्तम व्यवस्था का उत्कृष्ट नमूना हैं. देश-विदेश के इंजीनियरिंग और मैनेजमेंट कॉलेज में इसके बारें में बताया और पढ़ाया जाता हैं.
- मुम्बई डब्बावाला का नाम Guinness World Records में भी शामिल हो चूका हैं. बल्य बच्ची नामक डब्बेवाले ने एक साथ 6-7 फ़ीट लम्बे डब्बे के 3 करिअर को उठा कर कई बार डिलिवरी करी जो विश्व में एक कीर्तिमान है.
- मुंबई डब्बावाला के फैन कई बड़े और दिग्गज बिज़नस मैन हैं.
मुंबई के डब्बावाले एक बिज़नसमैन को क्या सीख देते हैं?
बहुत सारे ऐसे बिज़नस है जो नए उद्यमी के लिए आदर्श होते हैं. नयें उद्यमी को इन आदर्श व्यवसायों से बहुत कुछ सीखने को मिलता हैं. Mumbai Dabbawala एक ऐसा बिज़नस मॉडल हैं जिससे नये उद्यमी को बहुत कुछ सीखने को मिलता हैं.
- दृढ निश्चय करना – भारत के मुंबई शहर में 5 हजार से अधिक डब्बे वाले प्रतिदिन लगभग 2 लाख डब्बा (टिफिन) घर से ऑफिस और ऑफिस से घर पहुंचाते हैं. इतनी बड़ी संख्या, मुंबई की ट्रैफिक, लम्बी दूरी आदि समस्याओं के बावजूद टिफिन बिना तकनीकी के आसानी से पहुंचाते हैं. दृढ़निश्चय एक ऐसा हथियार होता हैं जिसकी मदद से कोई भी असम्भव कार्य आसान बन जाता हैं.
- समय का महत्व – मुंबई डब्बे वाले समय को ध्यान में रख कर कार्य करते हैं और इनसे जुड़े लोगों को भी समय का पाबन्द होना पड़ता हैं. ये डब्बा उठाने और पहुंचाने में कभी देरी नहीं करते हैं. यदि डब्बा देने वाले देरी करते हैं तो 3-4 बार देरी होने पर उनका डब्बा उठाना बंद कर देते हैं.
- परिश्रम – एक व्यक्ति औसत 35-40 डिब्बे प्रतिदिन पहुंचाता हैं जिसका वजन लगभग 60 से 80 किलो होता हैं. इतना वजन ढ़ोने में काफी परिश्रम करना पड़ता हैं. एक डब्बा वाला प्रतिदिन लगभग 50 -70 किलोमीटर तक यात्रा करता हैं.
- तकनीकी – खाने के डब्बे पर अल्फ़ा-न्यूमेरिक कोडिंग होता हैं जो पहले बड़े क्षेत्र का नाम, इसके बाद रेलवे स्टेशन से पहुँचने वाले क्षेत्र का नाम, वहाँ का एरिया, बिल्डिंग और फ्लोर की जानकारी होती हैं.
- त्याग (समर्पण) – सभी ग्राहकों को जब तक खाना पहुंच नहीं जाता हैं तब तक ये स्वयं खाना नहीं खाते हैं. डब्बा वाले एकत्रित होकर खाना खाते हैं यदि एक भी डब्बे वाला नहीं आता है तो खाना शुरू नहीं होता हैं.
यह जानकर आश्चर्य होता हैं कि मुंबई डब्बावाले बहुत कम पढ़े लिखे हैं फिर भी काम इस प्रकार करते हैं कि अपने आप में एक मिशाल है. नये उद्यमी और जो लोग व्यवसाय कर रहे हैं उन्हें इनसे सीख लेनी चाहिए.
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