Maha Shivratri Vrat Katha in Hindi – एक बार पार्वती ने भगवान शिव से पूछा, ऐसा कौन सा श्रेष्ठ तथा सरल व्रत –पूजन हैं, जिससे मृत्यु लोक के प्राणी आपकी कृपा सहज ही प्राप्त कर लेते हैं? उत्तर में शिवजी ने पार्वती को शिवरात्रि के व्रत का विधान बताकर यह कथा सुनाई –
महाशिवरात्रि व्रत कथा
एक गाँव में एक शिकारी रहता था. पशुओं की हत्या करके वह अपने परिवार को पालता था. उसने एक साहूकार से ऋण (उधार पैसे लेना) लिया था और उसका ऋण समय पर न चुका सका. क्रोधवश साहूकार ने शिकारी को शिवमठ में बंदी बना लिया. संयोग से उस दिन शिवरात्रि थी. शिकारी ध्यानपूर्वक शिव सम्बन्धी सारी धार्मिक बाते सुनता रहा. चतुर्दशी को उसने शिवरात्रि को कथा भी सुनी. संध्या होते ही साहूकार ने उसे अपने पास बुलाया और ऋण चुकाने के विषय में बात की. शिकारी अगले दिन सारा ऋण लौटा देने का वचन देकर बंधन से छूट गया. अपनी दिनचर्या के अनुसार, वह जंगल में शिकार के लिए निकला, लेकिन बंदीगृह में रहने के कारण भूख-प्यास से व्याकुल था. शिकार करने के लिए वह एक तालाब के किनारे बेल वृक्ष पर पड़ाव बनाने लगा. बेल-वृक्ष के नीचे शिवलिंग था जो बेल के पत्तो से ढका हुआ था. शिकारी को उसका पता न चला.
पड़ाव बनाते समय उसने जो टहनियाँ तोड़ी, वे संयोग से शिवलिंग पर गिरी. इस प्रकार दिनभर भूखे-प्यासे शिकारी का व्रत भी हो गया और शिवलिंग पर बेल की पत्ती भी चढ़ गई.
एक पहर रात्रि बीत जाने पर एक गर्भिणी मृगी तालाब पर पानी पीने पहुँची. शिकारी ने धनुष पर तीर चढ़ाकर ज्यों ही प्रत्यंचा खींची, मृगी बोली, मैं गर्भिणी हूँ. शीघ्र ही प्रसव करूंगी. तुम एक साथ दो जीवों की हत्या करोगे, जो ठीक नही हैं. मैं अपने बच्चे को जन्म देकर शीघ्र ही तुम्हारे सामने प्रस्तुत हो जाउंगी, तब तुम मुझे मार लेना. शिकारी ने प्रत्यंचा ढीली कर डी और मृगी झाड़ियो में चली गयी.
कुछ ही देर बाद एक और मृगी उधर से निकली. शिकारी बहुत प्रसन्न हो गया. समीप आने पर उसने धनुष पर बाण चढ़ाया. तब उसे देखकर मृगी ने कहा मैं इन बच्चो को इनके पिता के हवाले करके लौट आउंगी. इस समय मुझे मत मारो.
शिकारी हँसा और बोला, सामने आये शिकार को छोड़ दूँ, मैं इतना मूर्ख नही हूँ. इससे पहले भी मैं एक बार अपना शिकार खो चुका हूँ. मेरे बच्चे भूख-प्यास से तड़प रहे होंगे. उत्तर में मृगी ने फिर कहा, जैसे तुम्हे अपने बच्चो के ममता सता रही हैं, ठीक वैसे ही मुझे भी, इसलिए सिर्फ बच्चो के नाम पर मैं थोड़ी देर के लिए जीवनदान माँग रही हूँ. हे शिकारी! मेरा विश्वास करो मैं इन्हे इनके पिता के पास छोड़कर तुरंत लौटने का वचन देती हूँ. मृगी का दीन-हीन स्वर सुनकर शिकारी को उस पर दया आ गयी. उसने उस मृगी को भी जाने दिया. शिकार के आभाव में शिकारी पेड़ पर से ही बेलपत्र तोड़-तोड़कर शिवलिंग पर फेकने लगा.
उसी समय एक मृग उसी रास्ते पर आया शिकारी ने सोच लिया कि इसका शिकार, वह अवश्य करेगा.
शिकारी के तनी प्रत्यंचा देखकर मृग विनीत स्वर में बोला, हे शिकारी भाई ! यदि तुमने मुझसे पूर्व आने वाली दो मृगियो तथा छोटे-छोटे बच्चो को मार दिया हैं तो मुझे भी मारने में विलम्ब मत करो, ताकि उनके वियोग में मुझे एक क्षण भी दुःख न सहना पड़े. मैं उन मृगियो का पति हूँ. यदि तुमने उन्हें जीवनदान दिया हैं तो मुझे भी कुछ क्षण जीवनदान देने की कृपा करो. मैं उनसे मिलने के बाद तुम्हारे पास आ जाऊंगा. मृग की बात सुनते ही शिकारी के सामने पूरी रात का घटना-चक्र घूम गया. उसने सारी कथा मृग को सुना दी.
तब मृग ने कहा, मेरी दोनों पत्नियाँ जिस प्रकार वचन दे कर गयी हैं, मेरे मृत्यु से अपने धर्म का पालन नही कर पाएंगी. अतः जैसे उनपर विश्वास करके छोड़ा हैं वैसे ही मुझे भी जाने दो. मैं उन सब के साथ तुम्हारे सामने शीघ्र ही आऊंगा.
उपवास, रात्रि जागरण तथा शिवलिंग पर बेलपत्र चढाने से शिकारी का हिंसक हृदय निर्मल हो गया था. उसमे भगवद शक्ति का वास हो गया था. धनुष और बाण उसके हाथ से सहज ही छूट गये. भगवान शिव की कृपा से उसका हिंसक हृदय करुणा के भावो से भर गया था. वह अपने कर्मो को याद करके पश्चाताप को अग्नि में जलने लगा.
थोड़ी ही देर बाद मृग सपरिवार शिकारी के समक्ष आ गया, ताकि वह उनका शिकार कर सके, किन्तु जंगली पशुओ की ऐसी सत्यता, सात्विकता एवं सामूहिक प्रेम भावना देखकर शिकारी को बड़ी ग्लानि हुई. उसके नेत्रों से आसुं गिरने लगे. उस मृग के परिवार को न मारकर शिकारी ने अपने कठोर हृदय को जीव हिंसा से हटा, हमेशा के लिए कोमल एवं दयालु बन गया.
इससे भगवान शिव प्रशन्न होकर, उस शिकारी को आशीर्वाद देते हैं और शक्ति देते हैं जिससे वह अपना कर्ज चुका सके और अपने परिवार का लालन –पालन कर सके बिना किसी जीव के हत्या किये.
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