विदुर नीति क्या कहती हैं? | Vidur Niti in Hindi

Vidur Niti in Hindi – महात्मा विदुर व्यावहारिक और नीति कुशल थे, वह बड़ी ही सटीक और तर्क सम्मत बात कहते थे. विदुर नीति के नाम से एक अलग ग्रन्थ है पर महात्मा विदुर की कुछ नीतिया इस पोस्ट में दी जा रही हैं. इन नीतियों को जरूर पढ़े.

विदुर नीति | Vidur Niti in Hindi

जो दुःख से पीड़ित, प्रमादी, नास्तिक, आलसी, अजितेन्द्रय और उत्साहरहित हैं, उनके यहाँ लक्ष्मी कभी निवास नहीं करती है.

जो दुर्बुद्धि है और किये हुए उपकार को नहीं मानता, ऐसे व्यक्ति को त्याग देना चाहिए.

जो दुःखी और रोगीजन की सेवा करता है वह पुत्र की वृद्धि और अनंत कल्याण का भोग करता हैं.

वह वृद्धि बहुत नहीं माननी चाहिए जो वृद्धि नाश की ओर ले जाती हैं और उस क्षय का भी आदर करना चाहिए जो उन्नति का कारण बने.

आलस्य, मद, मोह, चपलता, ढीठता, अभिमान ये दोष सदैव ही विद्यार्थियों द्वारा त्यागने योग्य विद्वानों ने मानें हैं.

काष्ठों से अग्नि तृप्त नहीं हो सकती, नदियों से समुंद्र तृप्त नहीं हो सकता और पुरूषों के भोगने से स्त्री तृप्त नहीं हो सकती है.

मृतक के धन को दूसरा ही भोगता है और उसके शरीर को पक्षी या अग्नि भक्षण कर लेते हैं. वह मृतक केवल पुण्य-पाप के साथ ही परलोक जाता है.

प्रारब्ध उल्लंघन करने की शक्ति किसी भी प्राणी में नहीं है. इस कारण मैं तो प्रारब्ध को ही अचल मानता हूँ और पुरूषार्थ को निरर्थक.

जो अधर्म से उपार्जित महान धनराशि को भी त्याग देता है, वह जैसे सांप पुरानी केंचुली को छोड़ता है, उसी प्रकार वह दुःखो से मुक्त होकर सुखपूर्वक शयन करता है.

जिसके दान से जीते हुए मित्र है और युद्ध से जीते हुए शत्रु है और अन्नपान से जीती हुई स्त्रियाँ हैं उसका जीवन सफल है.

नोट – इस पोस्ट के कंटेंट को “पं. शशिमोहन बहल” की किताब ‘हमारे धार्मिक रीति-रिवाज‘ से लिया गया हैं.

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