मंथरा और कैकयी पर कविता | Manthra and Kaikeyi Poem in Hindi

Manthra and Kaikeyi Poem Kavita Poetry in Hindi – इस आर्टिकल में “अनुपमा अनुश्री” की “मंथरा और कैकयी पर कविता” दी गई है. इन्हें जरूर पढ़े.

Manthra and Kaikeyi Poem in Hindi

मंथर गति से
चलने वाली मंथरा
तूने ऐसी तीव्रता से
षडयंत्र की
विषवेली बोयी
कि हृदय हठात
क्रंदन कर उठा
कुटिला…
तू तो निमित्त मात्र थी
विधि का विधान तो
विधाता ने था रचा.

जो कैकयी
तेरी बातों पर
ध्यान न धरती
तो खलजन से
भरी हुई धरती
श्रीराम के उपकारों से
कभी न तरती..

राज प्रासादों में कहाँ हुए
जन -गण के काज!
प्रभु ने अपने भक्तों के
पास जाकर ही
रखी है उनकी लाज
ऋषि – मुनि, सज्जन
थे प्रतीक्षारत, व्याकुल
अत्याचार, आतंक से
धँसी जा रही थी धरा
धरा से आकाश तक
सब थे त्रस्त, आकुल
मन में प्रभु आगमन का
था अटूट विश्वास भरा.

जब -जब…
होइ धरम की हानि
बाढ़ई -असुर
अधम -अभिमानी
तब -तब
विविध सरीरा
हरहिं कृपा निधि
सज्जन पीरा
अंततः ..
संताप, शोक,
पाप मिटाने पुण्य धरा
भारत पर प्रभु ने
अवतार धरा
इस धर्म युद्ध में
माध्यम बनी कैकयी
और मंथरा
सरस्वती ने जिनकी
बुद्धि को हरा.

रिपु दमन ने…
पापियों का अंत करने
पुनः धरा पर धर्म
अक्षुण्ण रखने
जन उद्धार हेतुक
तीर प्रत्यंचा पर कसा
जन-जन के विश्वास
को भक्ति के साथ मिला।

हाँ प्रत्यक्ष…
इतिहास साक्षी है
इतनी दुष्ट प्रवृति देख
मंथरा और
कैकयी नाम
फिर किसी मानव ने
कभी न धरा.

अनुपमा अनुश्री


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