Makar Sankranti Poem Kavita Poetry in Hindi – इस आर्टिकल में मकर संक्रांति पर कविता दी गई है. त्यौहार जीवन में खुशियाँ और उत्साह लेकर आता है. हमें जिंदादिली के साथ जीना सिखाता है. हमारे दिन को विशेष बनाता है. मकर संक्रांति के शुभ अवसर पर इन बेहतरीन कविताओं को जरूर पढ़े.
मकर संक्रांति भारत का एक प्रमुख हिन्दू त्यौहार है. पौष मास में जब भगवान सूर्य “मकर राशि” में जाते है तभी इस त्यौहार को मनाया जाता है. अंग्रेजी कैलेंडर के अनुसार यह 14 या 15 जनवरी को पड़ता है. भारत के विभिन्न क्षेत्रों में मकर संक्रांति को विभिन्न नामों से जाना जाता है और मनाने के तरीके में भी अंतर होता है. मकर संक्रांति के बाद लोग शुभ कार्यों को करना ज्यादा पसंद करते है. ठण्ड भी धीरे-धीरे कम होने लगती है.
Makar Sankranti Poem in Hindi
शिक्षित बनों और जागो
छोड़ो रूढ़िवादी भ्रान्ति,
सफलता कर रही इंतज़ार तुम्हारा
घर से निकलकर, कर दो क्रांति
जीवन में संघर्ष करने वाला ही
पायेगा आगे चलकर सुख शांति
शुभ आशीष देने आ गया है
हमारा प्यारा मकर संक्रांति
बदलाव की बह रही है बयार
तेज रखो ज्ञान रुपी हथियार
रिश्तें बनाओ ऐसे कि बढ़े प्यार,
ईमानदार बनो ताकि बढे व्यापार,
जीवन संघर्ष के लिए रहो तैयार,
मकर संक्रांति की शुभकामनाएं देता हूँ
आपके जीवन में खुशिया लाये यह त्यौहार।
मकर संक्रांति पर कविता
अद्भुत लग रही है
आज सूरज की लाली,
सजी है तिल और गुड़ से
आज पूजा की थाली,
आसमान भी आज पतंगो
के रंग से है रंगीन
मुबारक हो आपको ये
मकर संक्रांति का दिन.
Poem on Makar Sankranti in Hindi
आओ मिलकर मकर संक्रांति मनाएं
तिल का लड्डू खूब खाये और खिलाएं
घर में खुशियाँ ही खुशियाँ फैलाएं
अपने ख़्वाबों से ऊँचा पतंग हम उड़ाएं
आओ मिलकर हम सब नाचे गाएं
ताकि फ़िजा भी मदमस्त हो जाएं
आओ मिलकर मकर संक्रांति मनाएं
तिल का लड्डू खूब खाये और खिलाएं।
आज के दिन सुबह-सुबह नहाएं
सूर्य की आराधना में सिर झुकाएं
घी-खिचड़ी खाकर ठण्ड को भगाएं
आओ मिलकर मकर संक्रांति मनाएं
तिल का लड्डू खूब खाये और खिलाएं।।
Makar Sankranti Poetry in Hindi
जन पर्व मकर संक्रांति आज
उमड़ा नहान को जन समाज
गंगा तट पर सब छोड़ काज।
नारी नर कई कोस पैदल
आरहे चले लो, दल के दल,
गंगा दर्शन को पुण्योज्वल!
लड़के, बच्चे, बूढ़े, जवान,
रोगी, भोगी, छोटे, महान,
क्षेत्रपति, महाजन औ’ किसान।
दादा, नानी, चाचा, ताई,
मौसा, फूफी, मामा, माई,
मिल ससुर, बहू, भावज, भाई।
गा रहीं स्त्रियाँ मंगल कीर्तन,
भर रहे तान नव युवक मगन,
हँसते, बतलाते बालक गण।
अतलस, सिंगी, केला औ’ सन
गोटे गोखुरू टँगे,–स्त्री जन
पहनीं, छींटें, फुलवर, साटन।
बहु काले, लाल, हरे, नीले,
बैगनीं, गुलाबी, पट पीले,
रँग रँग के हलके, चटकीले।
सिर पर है चँदवा शीशफूल,
कानों में झुमके रहे झूल,
बिरिया, गलचुमनी, कर्णफूल।
माँथे के टीके पर जन मन,
नासा में नथिया, फुलिया, कन,
बेसर, बुलाक, झुलनी, लटकन।
गल में कटवा, कंठा, हँसली,
उर में हुमेल, कल चंपकली।
जुगनी, चौकी, मूँगे नक़ली।
बाँहों में बहु बहुँटे, जोशन,
बाजूबँद, पट्टी, बाँक सुषम,
गहने ही गँवारिनों के धन!
कँगने, पहुँची, मृदु पहुँचों पर
पिछला, मँझुवा, अगला क्रमतर,
चूड़ियाँ, फूल की मठियाँ वर।
हथफूल पीठ पर कर के धर,
उँगलियाँ मुँदरियों से सब भर,
आरसी अँगूठे में देकर—
वे कटि में चल करधनी पहन,
पाँवों में पायज़ेब, झाँझन,
बहु छड़े, कड़े, बिछिया शोभन,–
यों सोने चाँदी से झंकृत,
जातीं वे पीतल गिलट खचित,
बहु भाँति गोदना से चित्रित।
ये शत, सहस्र नर नारी जन
लगते प्रहृष्ट सब, मुक्त, प्रमन,
हैं आज न नित्य कर्म बंधन!
विश्वास मूढ़, निःसंशय मन,
करने आये ये पुण्यार्जन,
युग युग से मार्ग भ्रष्ट जनगण।
इनमें विश्वास अगाध, अटल,
इनको चाहिए प्रकाश नवल,
भर सके नया जो इनमें बल!
ये छोटी बस्ती में कुछ क्षण
भर गये आज जीवन स्पंदन,—
प्रिय लगता जनगण सम्मेलन।
– सुमित्रानंदन पंत
पतंग पर कविता | Poem on Kite in Hindi
ऐसी एक पतंग बनाएं
जो हमको भी सैर कराए
कितना अच्छा लगे अगर
उड़े पतंग हमें लेकर
पेड़ों से ऊपर पहुंचे
धरती से अंबर पहुंचे
इस छत से उस छत जाएं
आसमान में लहराएं
खाती जाए हिचकोले
उड़न खटोले-सी डोले
डोर थामकर डटे रहें
साथ मित्र के सटे रहें
विजय पताका फहराएं
हम भी सैर कर आएं।
Makar Sankranti Par Kavita
मकर संक्रांति आई है,
खुशियों का सौगात लाई है
कही लोहड़ी, कही पोंगल
कही पीहू, कही भोगाली बिहु
कही माघी, कहीं खिचड़ी कहलाई
पर सबके घर खुशियाँ लाई
गुड़ तिल का लड्डू और चावल की लाई
घर-घर से देखो कितनी बढियाँ खुशबू आई
आकाश में हर तरफ है पतंग छाई
मकर संक्रांति सबके चेहरे पर मुस्कान लाई
मकर संक्रांति की कविता | Makar Sankranti Ki Kavita
कुहरे की चादर सिमटने लगी।
प्रभा से तमस भाव छॅंटने लगी।
मौसम सुहाना अब हो गया,
सूरज की किरणें चमकने लगी॥
वातावरण का देखो यह हाल है।
आकाश होने लगा लाल है।
पूरब में सूरज का अंदाज कुछ,
दिन की अवधि अब बढ़ने लगी॥
कम्बल रजाई धरो दूर अब।
काँटों सी सर्दी हुई दूर अब।
गर्मी गुलाबी के दिन आ गए,
बागों में चिड़ियाँ चहकने लगी।
धनु राशि से अब मकर राशि में।
सूरज चला आता इस आस में।
नव चेतना प्राणियों में जगे,
अंधेरे की ताकत घटने लगी।
ब्रह्मा कमण्डल से गंगा निकल।
भगीरथ महाराज के पीछे चल।
कपिल मुनि के आश्रम से होते हुए,
सागर मिलन को मचलने लगी।
भास्कर स्वयं शनि से मिलने गए।
पिता पुत्र के घर टहलने गए।
मकर राशि के स्वामी शनिदेव जी,
दिल में जमी पीर गलने लगी।
इस संक्रांति के दिन महायोग है।
धनु और मकर राशि संयोग है।
संक्रांति, खिचड़ी या पोंगल कहें,
लोहड़ी में प्रकृति थिरकने लगी।
– फूलचंद्र विश्वकर्मा
मकर संक्रांति पर सुंदर कविता | Poem on Makar Sankranti
सूरज करे प्रवेश है, मकर राशि में आज।
गंगा में डुबकी लगे, जा कर प्रयागराज।।
सूर्य देवता दे रहें, सबको ही आशीष।
अर्घ्य दे रहें हैं सभी, नहिं मन में है टीस।।
नील गगन में उड़ रहे, डोरी संग पतंग।
रंग-बिरंगी हैं सभी, मन में भरे उमंग।।
रवि किरण ये दूर करे, तन के सारे रोग।
भोर काल की धूप में, करते हैं जो योग।।
तिल-गुड़ खाकर दे रहे, सभी बधाई आज।
भारत के त्यौहार पर, हमें खूब है नाज।।
पावन दिन है आज का, कहें सभी संक्रांति।
दान-पुण्य करने लगे, भूले मन के भ्रांति।।
देती हूं सबको यहां, खूब बधाई आज।
ज्यों पतंग ऊपर उड़े, स्वपन बने परवाज।।
– वन्दना नामदेव
Makar Sankranti Wishes Image
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