संत कबीर दास की जीवनी | Kabir Das Biography in Hindi

Kabir Das Biography in Hindi ( Kabir Das Ka Jeevan Parichay in Hindi ) – कबीर दास या संत कबीर दास 15वीं सदी एक महान भारतीय रहस्यवादी कवि और संत थे. वे हिदू धर्म और इस्लाम धर्म के आलोचक थे. उन्होंने सामाजिक और धार्मिक अंधविश्वास की निंदा की और सामजिक बुराईयों की सख्त आलोचना की थी. कबीर पंथ ( Kabir Panth ) नामक धार्मिक सम्प्रदाय इनकी शिक्षाओं के अनुयायी हैं.

कबीर दास की जीवनी | Kabir Das Biography in Hindi

नाम – कबीर दास ( Kabir Das )
जन्मतिथि – 1440 ई. (कुछ विद्वानों के अनुसार इनका जन्म सन् 1398 ई माना जाता हैं.)
जन्मस्थान – काशी ( वाराणसी ), उत्तरप्रदेश
गुरू – रामानन्द
माता का नाम – नीमा
पिता का नाम – नीरू
पत्नी का नाम – लोई
पुत्र का नाम – कमाल
पुत्री का नाम – कमाली
प्रमुख शिष्य – दादू और मलूक दास
रचनाएँ – साखी, सबद, रमैनी
भाषा – अवधी, सधुक्कड़ी
शिक्षा – अनपढ़
मृत्यु – 1518 ई. ( कुछ विद्वानों के अनुसार इनका मृत्यु सन् 1494 ई. माना जाता हैं. )
मृत्युस्थान – मगहर, उत्तरप्रदेश

नोट – कई स्थानों पर भिन्न-भिन्न जन्मतिथि और मृत्युतिथि भी दी गयी हैं.

कबीर की जाति तथा जन्म के बारे में लोगों के विचार भिन्न है. ऐसा माना जाता है कि कबीर का जन्म 1440 ई. में एक विधवा स्त्री के गर्भ से हुआ था जिसने लोक लज्जा के कारण उन्हें लहरतारा नामक नदी के किनारे फेक दिया था. नीरू और निमा नामक दो निःसन्तान जुलाहे ने एक पुत्र के रूप में कबीर का पालन, पोषण किया. सभी भक्ति संतों में सर्वाधिक क्रांतिकारी एवं अमूल सुधारवादी कबीर थे. कबीर रामानन्द के शिष्य थे. वे एक धर्म सुधारक के अतिरिक्त समाज-सुधारक भी थे. उन्होंने सन्यास मार्ग नहीं अपनाया बल्कि परिवार के साथ रहते हुए भी धार्मिक एवं सामाजिक कुरीतियों एवं अंधविश्वासों पर कठोर अघात किया. कबीर सुलतान सिकंदर लोदी के समकालीन थे.

कबीर दास की रचनाएँ | Kabri Das Works

कबीर दास जी एक संत थे अतः इनकी भाषा सधुक्कड़ी थी. इनकी रचनाओं में अवधी, ब्रजभाषा, खड़ी बोली, राजस्थानी, हरयाणवी के शब्दों की बहुलता है.

शिष्यों ने उनकी वाणियों का संग्रह “बीजक” नाम के ग्रन्थ में किया. इसके तीन भाग है – प्रथम : साखी, द्वितीय : सबद (पद) और तृतीय : रमैनी.

  • साखी – “साक्षी” शब्द का विकृत रूप “साखी” है और इसे धर्मोपदेश के अर्थ में प्रयुक्त किया गया है. अधिकाँश साखियाँ दोहों में लिखी गई है और उनमे सोरठे का भी प्रयोग मिलता है. कबीर की शिक्षाओं और सिद्धांतों को निरूपण अधिक्तर साखी में हुआ है.
  • सबद – ये संगीतात्मक और गेय (गाने योग्य) पद है. इसमें कबीर के प्रेम और अन्तरंग साधना की अभिव्यक्ति हुई है.
  • रमैनी – चौपाई छंद में लिखी गई है इसमें कबीर दास जी के रहस्यवादी और दार्शनिक विचारों को प्रकट किया गया है.

कबीर दास का दार्शनिक मत | Kabir Das Philosophical Opinion

कबीर हिन्दू और मुसलमान में कोई अंतर नहीं मानते थे. वे कहा करते थे “कबीर हिन्दू और मुसलमान दोनों का पुत्र है” आगे उन्होंने कहा है कि, “यदि तुम कहो कि मैं हिन्दू हूँ तो सत्य नहीं और न मैं मुसलमान हूँ“. मेरे लिए मक्का ही काशी हो जाता है और राम ही रहीम बन जाता है.

कबीर स्वतंत्र विचार के थे, इन्होंने दोनों धर्मों की बुराईयों की खुलकर आलोचना की. कबीर की विचारधारा विशुद्ध अद्वेतवादी थी. कबीर निर्गुण ब्रह्म के उपासक थे तथा एकेश्वरवाद (एक ईश्वर) में विश्वास करते थे. उनकी मान्यता थी कि परमेश्वर एक ही है उसे सिर्फ राम, रहीम, अल्लाह, हरि, खुदा और गोविन्द आदि अलग-अलग नामों से पुकारा जाता है. कबीर आत्मा और परमात्मा को एक मानते हुए भक्त और भगवान में कोई अंतर नहीं किये. परमात्मा तक पहुंचने के लिए कबीर ने गुरू की महत्ता पर बल दिया है. जात-पात, छुआ, छूत, ऊँच-नीच, बाल विवाह, सती प्रथा आदि सामाजिक बुराइयों का विरोध किया

कबीर दास की मृत्यु | Kabir Das Death

कबीर दास की मृत्यु सन् 1518 ई. में मगहर, उत्तरप्रदेश में हुई थी. उनकी मृत्यु के उनके शिष्यों ने कबीरपंथी नामक सम्प्रदाय प्रारम्भ किया. कबीर के शिष्यों में दादू, मलूक दास, पुत्र कमाल, पुत्री कमाली, पद्मनाथ ज्ञानीदास, भागोदास, जागूदास, गोपाल तथा धर्मदास थे. इनमें कमाल ने अहमदाबाद तथा पदमनाथ ने काशी में कबीर के मत का प्रचार किया.

इसे भी पढ़े –

Latest Articles