Javed Akhtar Poetry in Hindi – जावेद अख़्तर जी भारत के मशहूर कवि, गीतकार, शायर और लेखक हैं. जंजीर, दीवार और शोले की कहानी, पटकथा और संवाद लिखने के लिए प्रसिद्ध हैं. इन्हें फ़िल्मफ़ेयर पुरस्कार, राष्ट्रीय फ़िल्म पुरस्कार और पद्म भूषण से भी सम्मानित किया जा चूका हैं. इन्होने कई फिल्मों में बेहतरीन संगीत भी दिया हैं. इन्होंने इसके साथ-साथ कुछ बेहतरीन कविताओं की भी रचना की हैं. आप इनके कविताओं के संग्रह की किताब “ख़्वाबों के गाँव में” को ऑनलाइन खरीद सकते हैं. इस पोस्ट में इनकी कुछ बेहतरीन कवितायेँ, फिल्मों में लिखे गीत, गजलें आदि दी गयीं हैं.
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जावेद अख़्तर की कविता | Javed Akhtar Poetry in Hindi 1
हर ख़ुशी में कोई कमी सी है।
हँसती आँखों में भी नमी सी है।
दिन भी चुप चाप सर झुकाये था।
रात की नफ़्ज़ भी थमी सी है।
किसको समझायेँ किसकी बात नहीं।
ज़हन और दिल में फिर ठनी सी है।
ख़्वाब था या ग़ुबार था कोई।
गर्द इन पलकों पे जमी सी है।
कह गए हम किससे दिल की बात।
शहर में एक सनसनी सी है।
हसरतें राख हो गईं लेकिन।
आग अब भी कहीं दबी सी है।
प्यार मुझसे जो किया तुमने | Javed Akhtar Poetry in Hindi 2
प्यार मुझसे जो किया तुमने तो क्या पाओगी
मेरे हालात की आंधी में बिखर जाओगी
रंज और दर्द की बस्ती का मैं बाशिन्दा हूँ
ये तो बस मैं हूँ के इस हाल में भी ज़िन्दा हूँ
ख़्वाब क्यूँ देखूँ वो कल जिसपे मैं शर्मिन्दा हूँ
मैं जो शर्मिन्दा हुआ तुम भी तो शरमाओगी
क्यूं मेरे साथ कोई और परेशान रहे
मेरी दुनिया है जो वीरान तो वीरान रहे
ज़िन्दगी का ये सफ़र तुमको तो आसान रहे
हमसफ़र मुझको बनाओगी तो पछताओगी
एक मैं क्या अभी आयेंगे दीवाने कितने
अभी गूंजेगे मुहब्बत के तराने कितने
ज़िन्दगी तुमको सुनायेगी फ़साने कितने
क्यूं समझती हो मुझे भूल नही पाओगी
नोट – फ़िल्मों के लिए लिखे गए गीत / ग़ज़लें
तुमको देखा तो ये ख़याल आया | Javed Akhtar Poetry in Hindi 3
तुमको देखा तो ये ख़याल आया
ज़िन्दगी धूप तुम घना साया
आज फिर दिल ने एक तमन्ना की
आज फिर दिल को हमने समझाया
तुम चले जाओगे तो सोचेंगे
हमने क्या खोया, हमने क्या पाया
हम जिसे गुनगुना नहीं सकते
वक़्त ने ऐसा गीत क्यूँ गाया
नोट – फ़िल्मों के लिए लिखे गए गीत / ग़ज़लें
क्यूँ ज़िन्दगी की राह में | Javed Akhtar Poetry in Hindi 4
क्यूँ ज़िन्दगी की राह में मजबूर हो गए
इतने हुए करीब कि हम दूर हो गए
ऐसा नहीं कि हमको कोई भी खुशी नहीं
लेकिन ये ज़िन्दगी तो कोई ज़िन्दगी नहीं
क्यों इसके फ़ैसले हमें मंज़ूर हो गए
पाया तुम्हें तो हमको लगा तुमको खो दिया
हम दिल पे रोए और ये दिल हम पे रो दिया
पलकों से ख़्वाब क्यों गिरे क्यों चूर हो गए
नोट – फ़िल्मों के लिए लिखे गए गीत / ग़ज़लें
ये बता दे मुझे ज़िन्दगी | Javed Akhtar Poetry in Hindi 5
ये बता दे मुझे ज़िन्दगी
प्यार की राह के हमसफ़र
किस तरह बन गये अजनबी
ये बता दे मुझे ज़िन्दगी
फूल क्यूँ सारे मुरझा गये
किस लिये बुझ गई चाँदनी
ये बता दे मुझे ज़िन्दगी
कल जो बाहों में थी
और निगाहों में थी
अब वो गर्मी कहाँ खो गई
न वो अंदाज़ है
न वो आवाज़ है
अब वो नर्मी कहाँ खो गई
ये बता दे मुझे ज़िन्दगी
बेवफ़ा तुम नहीं
बेवफ़ा हम नहीं
फिर वो जज़्बात क्यों सो गये
प्यार तुम को भी है
प्यार हम को भी है
फ़ासले फिर ये क्या हो गये
ये बता दे मुझे ज़िन्दगी
नोट – फ़िल्मों के लिए लिखे गए गीत / ग़ज़लें
दर्द अपनाता है पराए कौन | Javed Akhtar Poetry in Hindi 6
दर्द अपनाता है पराए कौन
कौन सुनता है और सुनाए कौन
कौन दोहराए वो पुरानी बात
ग़म अभी सोया है जगाए कौन
वो जो अपने हैं क्या वो अपने हैं
कौन दुख झेले आज़माए कौन
अब सुकूँ है तो भूलने में है
लेकिन उस शख़्स को भुलाए कौन
आज फिर दिल है कुछ उदास उदास
देखिये आज याद आए कौन.
जाते जाते वो मुझे | Javed Akhtar Poetry in Hindi 7
जाते जाते वो मुझे अच्छी निशानी दे गया
उम्र भर दोहराऊँगा ऐसी कहानी दे गया
उससे मैं कुछ पा सकूँ ऐसी कहाँ उम्मीद थी
ग़म भी वो शायद बरा-ए-मेहरबानी दे गया
सब हवायें ले गया मेरे समंदर की कोई
और मुझ को एक कश्ती बादबानी दे गया
ख़ैर मैं प्यासा रहा पर उस ने इतना तो किया
मेरी पलकों की कतारों को वो पानी दे गया
मैनें दिल से कहा | Javed Akhtar Poetry in Hindi 8
मैनें दिल से कहा
ऐ दीवाने बता
जब से कोई मिला
तू है खोया हुआ
ये कहानी है क्या
है ये क्या सिलसिला
ऐ दीवाने बता
मैनें दिल से कहा
ऐ दीवाने बता
धड़कनों में छुपी
कैसी आवाज़ है
कैसा ये गीत है
कैसा ये साज़ है
कैसी ये बात है
कैसा ये राज़ है
ऐ दीवाने बता
मेरे दिल ने कहा
जब से कोई मिला
चाँद तारे फ़िज़ा
फूल भौंरे हवा
ये हसीं वादियाँ
नीला ये आसमाँ
सब है जैसे नया
मेरे दिल ने कहा
तमन्ना फिर मचल जाए | Javed Akhtar Poetry in Hindi 9
तमन्ना फिर मचल जाए, अगर तुम मिलने आ जाओ
यह मौसम ही बदल जाए, अगर तुम मिलने आ जाओ
मुझे गम है कि मैने जिन्दगी में कुछ नहीं पाया
ये ग़म दिल से निकल जाए, अगर तुम मिलने आ जाओ
नहीं मिलते हो मुझसे तुम तो सब हमदर्द हैं मेरे
ज़माना मुझसे जल जाए, अगर तुम मिलने आ जाओ
ये दुनिया भर के झगड़े, घर के किस्से, काम की बातें
बला हर एक टल जाए, अगर तुम मिलने आ जाओ
आप भी आइए | Javed Akhtar Poetry in Hindi 10
आप भी आइए हमको भी बुलाते रहिए
दोस्ती ज़ुर्म नहीं दोस्त बनाते रहिए।
ज़हर पी जाइए और बाँटिए अमृत सबको
ज़ख्म भी खाइए और गीत भी गाते रहिए।
वक्त ने लूट लीं लोगों की तमन्नाएँ भी,
ख़्वाब जो देखिए औरों को दिखाते रहिए।
शक्ल तो आपके भी ज़हन में होगी कोई,
कभी बन जाएगी तसवीर बनाते रहिए।
अब अगर आओ तो | Javed Akhtar Poetry in Hindi 11
अब अगर आओ तो जाने के लिए मत आना
सिर्फ एहसान जताने के लिए मत आना
मैंने पलकों पे तमन्नाएँ सजा रखी हैं
दिल में उम्मीद की सौ शम्मे जला रखी हैं
ये हसीं शम्मे बुझाने के लिए मत आना
प्यार की आग में जंजीरें पिघल सकती हैं
चाहने वालों की तक़दीरें बदल सकती हैं
तुम हो बेबस ये बताने के लिए मत आना
अब तुम आना जो तुम्हें मुझसे मुहब्बत है कोई
मुझसे मिलने की अगर तुमको भी चाहत है कोई
तुम कोई रस्म निभाने के लिए मत आना
आज मैंने अपना फिर सौदा किया | Javed Akhtar Poetry in Hindi 12
आज मैंने अपना फिर सौदा किया
और फिर मैं दूर से देखा किया
ज़िन्दगी भर मेरे काम आए असूल
एक एक करके मैं उन्हें बेचा किया
कुछ कमी अपनी वफ़ाओं में भी थी
तुम से क्या कहते कि तुमने क्या किया
हो गई थी दिल को कुछ उम्मीद सी
खैर तुमने जो किया अच्छा किया
क्यों डरें ज़िन्दगी में क्या होगा | Javed Akhtar Poetry in Hindi 13
क्यों डरें ज़िन्दगी में क्या होगा
कुछ ना होगा तो तज़रूबा होगा
हँसती आँखों में झाँक कर देखो
कोई आँसू कहीं छुपा होगा
इन दिनों ना-उम्मीद सा हूँ मैं
शायद उसने भी ये सुना होगा
देखकर तुमको सोचता हूँ मैं
क्या किसी ने तुम्हें छुआ होगा
इक पल गमों का दरिया | Javed Akhtar Poetry in Hindi 14
इक पल गमों का दरिया, इक पल खुशी का दरिया
रूकता नहीं कभी भी, ये ज़िन्दगी का दरिया
आँखें थीं वो किसी की, या ख़्वाब की ज़ंजीरे
आवाज़ थी किसी की, या रागिनी का दरिया
इस दिल की वादियों में, अब खाक उड़ रही है
बहता यहीं था पहले, इक आशिकी का दरिया
किरनों में हैं ये लहरें, या लहरों में हैं किरनें
दरिया की चाँदनी है, या चाँदनी का दरिया
भूख | Javed Akhtar Poetry in Hindi 15
आँख खुल मेरी गई हो गया मैं फिर ज़िन्दा
पेट के अन्धेरो से ज़हन के धुन्धलको तक
एक साँप के जैसा रेंगता खयाल आया
आज तीसरा दिन है
आज तीसरा दिन है
एक अजीब खामोशी से भरा हुआ कमरा कैसा खाली-खाली है
मेज़ जगह पर रखी है कुर्सी जगह पर रखी है फर्श जगह पर रखी है
अपनी जगह पर ये छत अपनी जगह दीवारे
मुझसे बेताल्लुक सब, सब मेरे तमाशाई है
सामने की खिड़्की से तीज़ धूप की किरने आ रही है बिस्तर पर
चुभ रही है चेहरे में इस कदर नुकीली है
जैसे रिश्तेदारो के तंज़ मेरी गुर्बत पर
आँख खुल गई मेरी आज खोखला हूँ मै
सिर्फ खोल बाकी है
आज मेरे बिस्तर पर लेटा है मेरा ढाँचा
अपनी मुर्दा आँखो से देखता है कमरे को एक सर्द सन्नाटा
आज तीसरा दिन है
आज तीसरा दिन है
दोपहर की गर्मी में बेरादा कदमों से एक सड़क पर चलता हूँ
तंग सी सड़क पर है दौनो सिम पर दुकाने
खाली-खाली आँखो से हर दुकान का तख्ता
सिर्फ देख सकता हूँ अब पढ़ नहीं जाता
लोग आते-जाते है पास से गुज़रते है
सब है जैसे बेचेहरा
दूर की सदाए है आ रही है दूर
मिसाल इसकी कहाँ है | Javed Akhtar Poetry in Hindi 16
मिसाल इसकी कहाँ है ज़माने में
कि सारे खोने के ग़म पाये हमने पाने में
वो शक्ल पिघली तो हर शै में ढल गई जैसे
अजीब बात हुई है उसे भुलाने में
जो मुंतज़िर (इन्तजार में ) न मिला वो तो हम हैं शर्मिंदा
कि हमने देर लगा दी पलट के आने में
लतीफ़ ( मज़ेदार ) था वो तख़य्युल (सोच) से, ख़्वाब से नाज़ुक
गँवा दिया उसे हमने ही आज़माने में
समझ लिया था कभी एक सराब (मरीचिका) को दरिया
पर एक सुकून था हमको फ़रेब खाने में
झुका दरख़्त हवा से, तो आँधियों ने कहा
ज़ियादा फ़र्क़ नहीं झुक के टूट जाने में
कभी यूँ भी तो हो | Javed Akhtar Poetry in Hindi 17
कभी यूँ भी तो हो
दरिया का साहिल हो
पूरे चाँद की रात हो
और तुम आओ
कभी यूँ भी तो हो
परियों की महफ़िल हो
कोई तुम्हारी बात हो
और तुम आओ
कभी यूँ भी तो हो
ये नर्म मुलायम ठंडी हवायें
जब घर से तुम्हारे गुज़रें
तुम्हारी ख़ुश्बू चुरायें
मेरे घर ले आयें
कभी यूँ भी तो हो
सूनी हर मंज़िल हो
कोई न मेरे साथ हो
और तुम आओ
कभी यूँ भी तो हो
ये बादल ऐसा टूट के बरसे
मेरे दिल की तरह मिलने को
तुम्हारा दिल भी तरसे
तुम निकलो घर से
कभी यूँ भी तो हो
तनहाई हो, दिल हो
बूँदें हो, बरसात हो
और तुम आओ
कभी यूँ भी तो हो
यही हालात इब्तदा से रहे | Javed Akhtar Poetry in Hindi 18
यही हालात इब्तदा (शुरू) से रहे
लोग हमसे ख़फ़ा-ख़फ़ा-से रहे
बेवफ़ा तुम कभी न थे लेकिन
ये भी सच है कि बेवफ़ा-से रहे
इन चिराग़ों में तेल ही कम था
क्यों गिला फिर हमें हवा से रहे
बहस, शतरंज, शेर, मौसीक़ी (संगीत कला)
तुम नहीं रहे तो ये दिलासे रहे
उसके बंदों को देखकर कहिये
हमको उम्मीद क्या ख़ुदा से रहे
ज़िन्दगी की शराब माँगते हो
हमको देखो कि पी के प्यासे रहे
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