Bhakti Margi Chaupaiyan By Saurabh Mishra Hind – यह भक्तिमार्गी चौपाइयां सब रस कवि “सौरभ मिश्रा हिन्द” जी की कृत है, जिसमें ब्रज, अवधी, बघेली, हिंदी व संस्कृत के साधारण शब्दो का मिश्रण है।
भक्तिमार्गी चौपाइयां | Bhaktimargi Chaupaiyan
काल पहिल अऊ भाग्य अधिका, मिलतु नाहि कबहु कुछीका ।
असम्भव सम्भ होतु उही काला, होतु जबहि ईश्वरही कृपाला ।।
अर्थ – समय से पहले और भाग्य से अधिक कभी भी कुछ भी नही मिलता ।
किन्तु जब ईश्वर की कृपा होती है तो उस समय असम्भव भी सम्भव हो जाता है ।।

ओहि न रूप नाहि कछु नामा, प्रिय अप्रीय न कछु नाहि कछु धामा ।
जे जन जस जाहि प्रेमहि ध्यावा, जगइ ईश उहीन बसावा ।।
अर्थ – उसका ( ईश्वर का ) ना तो कोई रूप है और ना ही कोई नाम है, उसे कुछ भी ना तो प्रिय है और ना ही अप्रीय और ना ही उसका कोई धाम है । जो भी मनुष्य जिस प्रकार से भी जहा भी प्रेम से ध्यान करता है जगत का ईश्वर वही वास करने लगता है ।।
करत उहइ उहइ करावा, उही बिन केउ भक्तिउ नहि पावा ।
कणइ कणइ उ करतु निवासा, प्रेम चक्षु दिखतु उ भक्त हृदवासा ।।
अर्थ – किसी भी कार्य को वही ( ईश्वर ही ) करता है, वही करवाता है, उसके बिना चाहे तो कोई उसकी भक्ति भी नही प्राप्त कर सकता है । वो कण-कण में वास करता है किन्तु वह भक्त के हृदय में वास करने वाला सिर्फ प्रेम की नजरों से ही देखा जा सकता है ।।

धरमही जेहि सबही कछु जाना, अपनेनु धरम मरन कल्याना ।
जे जन दुखेउ स्वधरम रक्षाई, धरमउ रक्षन उहिनु कराई ।।
अर्थ – जो धर्म को ही सब कुछ जानते ( मानते ) हैं, जो अपने धर्म मे ही मरने को भी कल्याणकारी समझते हैं, जो लोग दुख के समय में भी अपने धर्म की रक्षा करते हैं यानी कि दुख के समय मे भी अपने धर्म को नही छोड़ते , धर्म भी किसी न किसी प्रकार से उनकी रक्षा करता है ।।
सकल जनेन केरु होय कलाई, क्षणउ भर केउ दुख नही पाई ।
जगहि ईश सबेनु कृपा बनावा, सकल जगत कल्याणही पावा ।।
अर्थ – सभी लोगो का भला हो, क्षण मात्र के लिए भी कोई दुख नही पाए ।
हे जगत के ईश्वर सभी पर अपनी कृपा बनाओ ताकि सारा संसार कल्याण को प्राप्त हो ।।
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