International Day for the Elimination of Violence Against Women – हर साल 25 नवंबर को “महिलाओं के खिलाफ हिंसा के उन्मूलन के लिए अंतर्राष्ट्रीय दिवस – (International Day for the Elimination of Violence Against Women)” के रूप में मनाया जाता है. इस आर्टिकल में बेहतरीन कविता दी गयी है. इस कविता को जरूर पढ़े.
Best Poem on Women in Hindi
सोच रहा हूँ क्या लिखूँ
राधा लिखूँ या मीरा लिखूँ
या चौबीस कैरट का हीरा लिखूँ
मेरे घर की शहनाई लिखूँ
ये लक्ष्मी है तो कमाई लिखूँ
अपने में ही एक नेचर लिखूँ
या मेरी पहली टीचर लिखूँ
सिर का अपनी बोझ लिखूँ
या एक अकेली फ़ौज लिखूँ
घर का आधार लिखूँ
या चपल तेज तलवार लिखूँ
मेरे घर का शान लिखूँ
या ईश्वर का सम्मान लिखूँ
बाबुल का घर छोड़
तुम्हारे घर में आने रहती है
डोली जिसकी उठती है
फिर अर्थी में ही जाती है
पाई-पाई जोड़कर
वो तुम्हारे घर को बनाती है
हाथ उठाते उसपर
तुमको शर्म नहीं आती है
भूख उसे भी है
पर खाना उसने खाया नहीं
पता लगाओ देखो शायद
पति दफ्तर से आया नहीं
हर दिन की देरी
उसके लिए समस्या भारी है
इसी समर्पण सहित
तपस्या उसकी जारी है
भाग्य मनाओ फिर भी
तुमको छोड़ वो नहीं जाती है
हाथ उठाते जिसपर
तुमको शर्म नहीं आती है
कभी नशे में, कभी सनक तो
कभी बहे जज्बातों में
सहते सहते छाले पड़ गये
मेहँदी वाले हाथों में
इतने सबके बाद भी
वो विश्वास नहीं खोया है
रोया तो है बहुत मगर
वो काजल नहीं धोया है
इक तुम्हारी चाहत में
हर दुःख को वहीँ भुलाती है
हाथ उठाते जिसपर
शर्म तुम्हे नहीं आती है
तुमको उसकी फ़िक्र नहीं है
जिन्दा है पर जिक्र नहीं है
खुदगर्जी में ऐसे चूर हुए
आँगन की तुलसी से दूर हुए
नए जमाने में भी वो
जो गीत पुराना गाती है
हाथ उठाते जिसपर
शर्म तुम्हें नहीं आती है
एक तुम्हारा दंश यही है
बेटी है वो वंश नहीं है
जैसे की तुम्हारा अंश नहीं है?
उसपर तुम्हारा अधिकार पूरा है
लेकिन तुम्हारा “He” उस “She” के बिना अधूरा है
लेकिन तुमने ये ठान लिया है
भरा खजाना पराया धन मान लिया है
वो जो तुम्हारा अपना है
आँखों का सपना है
पुण्य तुम्हारा नष्ट हुआ है
बेटी हुई तो तुम्हें कष्ट हुआ है
इतना सबके बाद भी तुमको बाप वही बनाती है
हाथ उठाते जिसपर तुमको शर्म नहीं आती है
लेकिन वो भी कब तक सहेगी
अँधेरे में रौशनी कब तक रहेगी
अब तुम्हारा न होना उसके लिए कोई कमी नहीं है
अब उन आँखों में वो नमी नहीं है
दिल में उसके एक तमन्ना बाकी है
अभी कहानी का एक पन्ना बाकी है
वो लक्ष्मी है तुम भगवान तो बनो
वो सीता है तुम राम तो बनो
हर जुल्म पर जो बोल उठे
ऐसी आवाम तो बनो
किसी की चीख किसी की कराह लिखूँ
एक मुस्कुराते हुए चेहरे की सिसकती हुई आह लिखूँ
क्योंकि ये सब कुछ उसके अंदर है
वो औरत नहीं, समंदर है.
नोट – यह कविता “RJ Raunac No-Po” यूट्यूब चैनल से लिया गया है.
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