Lord Swaminarayan Life Story in Hindi – भगवान स्वामीनारायण हिन्दू धर्म के “स्वामीनारायण सम्प्रदाय” के प्रवर्तक हैं, इन्हें सहजानन्द स्वामी के नाम से भी जाना जाता हैं. “शिक्षापत्री” स्वामी नारायण सम्प्रदाय का मुख्य और पवित्र ग्रन्थ हैं. इस ग्रन्थ में 212 श्लोक संस्कृत भाषा में है और यह ग्रन्थ भगवान स्वामीनारायण के द्वारा रचित हैं. इन्हें अवतारी पुरूष और ईश्वर का स्वरूप माना जाता हैं, इनके अवतार के संकेत कई पुराणों में भी मिलते हैं.
भगवान स्वामी नारायण की जीवनी | Swaminarayan Biography in Hindi
नाम – स्वामीनारायण
अन्य नाम – सहजानंद स्वामी, नीलकंठ या नीलकंठ ब्रह्मचारी
बचपन का नाम – घनश्याम
जन्मतिथि – 03 अप्रैल, 1781
जन्मस्थान – छपिया नाम गाँव में ( अयोध्या से 14 किमी. दूर)
पिता का नाम – धर्मदेव
माता का नाम – भक्तिदेवी
भाई – रामप्रताप
मृत्युतिथि – 1830
भगवान श्री स्वामीनारायण का जन्म 03 अप्रैल, सन् 1781 ई. में हुआ. इनके जन्म के पूर्व इनके माता-पिता (भक्तिदेवी और धर्मदेव) काशीपूरी की यात्रा पर गये थे जहाँ स्वामी रामानन्द जी का शिष्यत्व ग्रहण कर, ईश्वर की पूजा आराधना किये, भागवत कथामृत सुने और कई अन्य धार्मिक कार्य किये. यात्रा खत्म होने के बाद अपने गाँव छपिया लौटने के बाद वह शुभ दिन आ गया और भगवान श्री स्वामीनारायण का जन्म उनके घर में हुआ और इनका नाम घनश्याम रखा गया.
सामुद्रिक शास्त्र के अनुसार शिशु के शरीर और दोनों पैरों में असाधारण चिह्न दिखाई दिए जिसे देखकर ज्योतिषियों ने प्रतिभावान, दयावान, कल्याणकारी और अवतारी होने की भविष्यवाणी की. एक दिन इनके पिता धर्मदेव ने बालक घनश्याम की अभिरूचि और प्रतिभा का परिक्षण किया. उनहोंने एक जगह एक स्वर्ण मुद्रा, एक चाकू और एक गीता की पुस्तक को रख दिया. उस समय घनश्याम की आयु बहुत ही कम थी और उनके पिता ने पुत्र को समीप बुलाया वो उन वस्तुओं में से एक चुनने के लिए कहते कि उससे पहले ही घनश्याम ने गीता की पुस्तक को अपने हाथ में उठा लिया जिसे देखकर उनके पिता आश्चर्यचकित हो गये.
भगवान स्वामीनारायण की शिक्षा | Lord Swaminarayan Education
दस वर्ष की आयु में ही बालक घनश्याम ने अपने पिता से वेद, उपनिषद्, गीता, रामायण और महाभारत आदि का अध्ययन पूर्ण कर लिया. इनकी जितनी अच्छी विद्याग्रहण करने की शक्ति थी उससे भी अच्छी इनकी अभिव्यक्ति की शक्ति थी जिसे देखकर बड़े-बड़े विद्वान् आश्चर्यचकित हो जाते थे. बालक घनश्याम ने कम उम्र में ही मल्लविद्या में कुशलता प्राप्त कर ली थी.
बालक घनश्याम के 11-12 वर्ष की उम्र में ही इनके माता-पिता का देहान्त हो गया और 11 वर्ष, 7 माह, 1 दिन की उम्र (सन् 1792) में घर से निकल पड़े. अँधेरी रात, आकाश में बिजलियाँ जोरो से चमक रही थी और उतनी ही जोर से वर्षा भी हो रही थी. घर से निकल जाने के बाद, घनश्याम ने अपनी पहचान बदल डाली और अब वो नीलकंठ ब्रह्मचारी के नाम से प्रसिद्ध होने लगे.
भगवान स्वामी नारायण की कथा | Lord Swami Narayan Katha
यह कथा भगवान श्री स्वामीनारायण के आत्मज्ञान और साहस को दर्शाता हैं. चलते-चलते बालप्रभु श्रीनगर पहुँचे और वहाँ पहुँचने पर शाम हो चुकी थी. समीप गाँव में जाना उचित नहीं समझे. गाँव के बाहर मठ के सामने एक पेड़ की नीचे अपना आसन लगाकर ध्यान में बैठ गये. मठ के समीप एक बहुत बड़ा जंगल था जहाँ एक शेर रहता था जिसके डर की वजह से कोई रात में बाहर नहीं निकलता था. गाँव और मठ के सभी लोग डरते थे.
भगवान स्वामीनारायण (बालप्रभु) अपने ध्यान में थे कि अचानक शेर के दहाड़ने की आवाज आने लगी. मठ के महंथ ने खिड़की खोलकर बाहर देखा तो उनकी नजर पेड़ के नीचे बैठे बालप्रभु पर गई. और सोचने लगे अगर शेर आ गया तो इस बालक का क्या होगा? महंथ जी ने बाहर चारों तरफ देखा और फिर दौड़कर बालप्रभु को हिलाया और कहा यहाँ एक शेर रहता है जो यहीं आस-पास ही घूमता है आप मठ के अंदर चलिए. महंथ जी के बार-बार आग्रह किया और मृत्यु का नाम लेकर भयभीत करने की भी कोशिश की परन्तु वे मठ के अंदर नहीं गये. बाल प्रभु थोड़ा मुस्कुराएँ और बोले मृत्यु से मैं नहीं डरता किसी भी परिस्थिति में. आप मठ के अंदर जाकर विश्राम करिए. बालक की नम्र भाव से कही ऐसी साहसिक बाते सुनकर वे बहुत प्रभवित हुए और उन्हें लगा यह हठी बालक अंदर मठ में नही आएगा. इसलिए मठाधीश महराज मठ के अंदर आ गये.
थोड़ी देर बाद, शेर की दहाड़ने की आवाज आई. मठाधीश जी डरते हुए खिड़की से बाहर देखने लगे. उन्होंने देखा कि शेर कुछ देर तक बालक को देख कर गुर्राता रहा और फिर पालतू कुत्ते की तरह उनके समीप बैठ गया. बालप्रभु ने शेर के शिर पर हाथ फेरा और शेर कुछ घंटे उनके समीप बैठा रहा. यह सब देखकर मठाधीश आश्चर्यचकित थे और समझ गये कि यह बालक निश्चित ही ईश्वर का अवतार हैं. भोर होने पर जब बालप्रभु स्नान के लिए खड़े हुए तो शेर भी उनके साथ चल दिया और कुछ दूर चलने के बाद शेर जंगल की झाड़ियों में अदृश्य हो गया.
महंथजी अपने शिष्यों के साथ बाल ब्रह्मचारी से मिलने को आतुर दौड़ पड़े और बालप्रभु के चरणों में गिरकर बोले- आप कौन है प्रभु? अब आप हमारे ही मठ में रहने की कृपा करें. राजाकी कृपा से मठ के पास सैकड़ो बीघा जमीर हैं और लाखों रूपये वार्षिक आय हैं. बालप्रभु नीलकंठ ने सहज भाव से इतना ही कहा – “सम्पत्ति की अपेक्षा होती तो संसार छोड़कर क्यों निकलता“.
भगवान स्वामीनारायण की मृत्यु | Lord Swaminarayan Death
मृत्यु एक सत्य हैं जिसका जन्म हुआ है उसका मृत्यु भी निश्चित हैं. प्रकृति के इस ख़ूबसूरत नियम का ज्ञानी जन स्वागत करते हैं. सन् 1930 ई. में भगवान स्वामीनारायण ने नश्वर शरीर का त्याग कर दिया पर उनकी सोच और दी शिक्षा का प्रचार प्रसार उनके अनुयायी पूरे विश्व में कर रहे हैं. भगवान स्वामी नारायण के बताएं मार्ग पर चलकर आज भी लोग ज्ञान और अध्यात्म के आनन्द में सरावोर होकर विश्व कल्याण में अपना योगदान दे रहे हैं.
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