Rahul Sankrityayan Biography in Hindi ( राहुल संकृत्यायन का जीवन परिचय ) – राहुल संकृत्यायन हिंदी यात्रा सहित्य का जनक माना जाता है क्योंकि इनके साहित्य अधिकत्तर यात्रा वृत्तांत से ही सम्बन्धित हैं और इन्होंने अपने पूरे जीवन 45 वर्ष तक घर से दूर रहकर यात्रा में ही बिताया था. इन्होंने कुछ क्षेत्रों को छोड़कर पूरे भारत में यात्रा की थी.
राहुल संकृत्यायन की जीवनी | Rahul Sankrityayan Biography in Hindi
प्रसिद्ध नाम – राहुल संकृत्यायन
बचपन का नाम – केदारनाथ पाण्डेय
जन्मतिथि – 9 अप्रैल, 1893
जन्मस्थल – पन्दहा (पन्द्रहा), आजमगढ़, उत्तरप्रदेश, भारत
माता – कुलवंती
पिता – गोवर्धन पाण्डेय
सम्मान एवं पुरस्कार – पद्म भूषण
मृत्युतिथि – 14 अप्रैल, सन् 1963 ई.
मृत्युस्थान – दार्जिलिंग, भारत
राहुल संकृत्यायन का जन्म 9 अप्रैल, 1893 ई. को रविवार के दिन अपने नाना पंडित रामशरण पाठक के यहाँ पन्दहा ग्राम, जिला आजमगढ़ में हुआ था. इनके पिता पंडित गोवर्धन पांडे एक कट्टर धर्मनिष्ठ ब्राह्मण थे. वे पन्दहा से दस मील दूर कनैला ग्राम में रहते थे. राहुल जी का बचपन का नाम केदारनाथ पाण्डे था. ‘सांस्कृत‘ इनका गोत्र था. इसी के आधार पर संकृत्यायन कहलाये. बौद्ध धर्म में आस्था होने पर अपना नाम बदल कर महात्मा बुद्ध के पुत्र के नाम पर ‘राहुल‘ रख लिया.
राहुल संकृत्यायन की शिक्षा | Rahul Sankrityayan Education
इनकी प्रारम्भिक शिक्षा रानी की सराय और फिर निजामाबाद में हुई, जहाँ से इन्होंने सन् 1907 ई. में उर्दू में मिडिल पास किया. इसके उपरान्त इन्होंने संस्कृत की उच्च शिक्षा वाराणसी में प्राप्त की. यहीं इनमें पालि-साहित्य के प्रति अनुराग उत्पन्न हुआ. इनके पिता की इच्छा थी आगे भी पढ़े, पर इनका मन कहीं और था. इन्हें घर का बंधन अच्छा न लगा. घूमना चाहते थे. इनकी इस प्रवृति के कई कारण थे. इनके नाना पंडित रामशरण पाठक सेना में सिपाही थे और उस जीवन में दक्षिण भारत की खूब यात्रा की थी. इस विगत जीवन की कहानियाँ वे बालक केदार को सुनाया करते थे, जिसने इनके मन में यात्रा-प्रेम को अंकुरित कर दिया. इसके बाद इन्होंने कक्षा 3 की उर्दू पाठ्य-पुस्तक ( मौलवी इस्माइल की उर्दू की चौथी किताब ) पढ़ी थी, जिसमें एक शेर इस प्रकार था –
सैर कर दुनिया की गाफ़िल जिन्दगानी फिर कहाँ?
जिन्दगी गर कुछ रही तो नौजवानी फिर कहाँ?
राहुल संकृत्यायन के घुमक्कड़ी जीवन का परिचय
इस शेर के संदेश ने बालक केदार के मन पर गहरा प्रभाव डाला. इसके द्वारा इनके घुमक्कड़ी जीवन का सूत्रपात हुआ और आगे चलकर इन्होंने बाकायदा घुमक्कड़ो के निर्देशन के लिए ‘घुमक्कड़ शास्त्र‘ ही लिख डाला. राहुल जी के यात्रा-विवरण अत्यंत रोचक, रोमांचक, शिक्षाप्रद, उत्साहवर्धक और ज्ञान प्रेरक हैं. इन्होंने पांच-पांच बार तिब्बत, लंका और सोवियत भूमि की यात्रा की थी. छः माह यूरोप में रहे थे. एशिया को इन्होंने जैसे छान ही डाला था. कोरिया, मंचूरिया, ईरान, अफगानिस्तान, जापान, नेपाल, केदारनाथ-बदरीनाथ, कुमायूँ-गढ़वाल, केरल-कर्नाटक, कश्मीर-लद्दाख आदि के पर्यटन को इनकी दिग्विजय कहने में कोई अत्युक्ति न होगी. कुल मिलाकर राहुल जी की पाठशाला और विश्वविद्यालय यहीं घुमक्कड़ी जीवन था.
हिंदी के महान उपासक राहुल जी ने हिंदी भाषा और साहित्य की बहुमुखी सेवा की हैं. इनका अध्ययन जितना विशाल था, साहित्य-सृजन भी उतना ही विराट था. ये छत्तीस एशियाई और यूरोपीय भाषाओ के ज्ञाता थे और लगभग 150 ग्रंथो का प्रणयन करके इन्होंने राष्ट्रभाषा के विकास में महत्वपूर्ण योगदान किया. अपने ‘जीवन-यात्रा’ में राहुल जी ने स्वीकार किया है कि उनका साहित्य जीवन सन् 1927 ई. से प्रारम्भ होता है. वास्तविक बात तो यह है कि इन्होंने किशोरावस्था पार करने के बाद ही लिखना शुरू कर दिया था. इन्होंने धर्म, भाषा, यात्रा, दर्शन, इतिहास, पुराण, राजनीति आदि विषयों पर अधिकार के साथ लिखा है. हिंदी-भाषा और साहित्य के क्षेत्र में इन्होंने ‘अपभ्रंश काव्य साहित्य‘, ‘दक्खिनी हिंदी साहित्य‘ अदि श्रेष्ठ रचनाएँ प्रस्तुत की थी. इनकी रचनाओं में एक ओर प्राचीनता के प्रति मोह और इतिहास के प्रति गौरव का भाव विद्यमान है, तो दूसरी ओर इनकी अनेक रचनाएँ स्थानीय रंग लेकर मनमोहक चित्र उपस्थित करती हैं.
राहुल संकृत्यायन को सबसे अधिक सफलता यात्रा-साहित्य लिखने में मिली है. जीवन-यात्रा लिखने के प्रयोजन को ये इन शब्दों में प्रकट करते हैं, “अपनी लेखनी द्वारा मैंने उस जगत की भिन्न-भिन्न गतियों और विचित्रताओं को अंकित करने की कोशिश की है, जिसका अनुमान हमारी तीसरी पीढ़ी बहुत मुश्किल से करेगी.” सचमुच जीवन-यात्रा में स्वयं राहुल जी के बारे में कम मगर दूसरों के बारेम में, परिवेश के बारे में अधिक जानकारी मिलती हैं.
राहुल संकृत्यायन की मुख्य रचनाएं
- आत्मकथा – मेरी जीवन यात्रा
- कहानियाँ – बोल्गा से गंगा, बहुरंगी मधुपुरी, सतमी के बच्चे, कैनला की कथा.
- उपन्यास – सिंह सेनापति, जय यौधेय, बाईसवीं सदी, जीने के लिए, भागो नहीं, दुनिया को बदलो, मधुर स्वप्न , राजस्थान निवास, विस्मृत यात्री, दिवोदास
- यात्रा साहित्य – लंका, तिब्बत यात्रा, जापान, ईरान और रूस में पच्चीस मास, किन्नर देश की ओर, चेन में क्या देखा, मेरी लद्दाख यात्रा, मेरी तिब्बत यात्रा, तिब्बत में सवा वर्ष आदि.
- दर्शन – दर्शन दिग्दर्शन
- इतिहास – मध्य एशिया का इतिहास
- कोष – शासन शब्द कोश, राष्ट्रभाषा कोश, तिब्बती हिंदी कोश
- विज्ञान – विश्व की रूपरेखा
- जीवनी – नये भारत के नये नेता, सरदार पृथ्वीसिंह, अतीत से वर्तमान, लेनिन, कार्ल मार्क्स, बचपन की स्मृतियाँ, वीर चन्द्रसिंह गढ़वाली, सिंहल घुमक्कड़ जयवर्धन, कप्तान लाल, महामानव बुद्ध
“अथातो घुमक्कड़-जिज्ञासा” का एक छोटा अंश
आधुनिक विज्ञान में चार्ल्स डारविन का स्थान बहुत ऊँचा है. उसने प्राणियों की उत्पत्ति और मानव-वंश के विकास पर ही अद्वितीय खोज नहीं की, बल्कि कहना चाहिए कि सभी विज्ञानों को डारविन के प्रकाश में दिशा बदलनी पड़ी. लेकिन, क्या डारविन अपने महान अविष्कारों को कर सकता था, यदि उसने घुमक्कड़ी का व्रत न लिया होता?
पुरस्कार एंव सम्मान | Awards and Honors
- 1958 – साहित्य अकादमी पुरस्कार
- 1963 – पद्मभूषण पुरस्कार
राहुल संकृत्यायन की भाषाशैली | Rahul Sankrityayan Language Style
राहुल जी की भाषा-शैली में कोई बनावट या साहित्य रचना का प्रयास नहीं हैं. सामान्यतः संस्कृतनिष्ठ परन्तु सरल और परिष्कृत भाषा को ही इन्होंने अपनाया हैं. न तो संस्कृत के क्लिष्ट या समासयुक्त शब्दों को इन्होने प्रश्रय दिया हैं और न ही लम्बे वाक्यों को. संस्कृत के प्रकाण्ड विद्वान् होते हुए भी ये जनसाधारण की भाषा लिखने के पक्षपाती थे. इनकी शैली का रूप विषय और परिस्थिति के अनुसार बदलता रहता हैं. इनकी शेली के वर्णात्मक, विवेचनात्मक, व्यंग्यात्मक, उद्बोधन एवं उद्धरण आदि रूप देखने को मिलते हैं.
राहुल संकृत्यायन की मृत्यु | Rahul Sankrityayan Death
अपने जीवन के आखिरी समय में राहुल जी दार्जिलिंग में रहते थे. डायबिटीज और हाईब्लड प्रेशर जैसे गंभीर बीमारियों के कारण इनका स्वस्थ कुछ ज्यादा ही खराब हो गया और 14 अप्रैल, सन् 1963 ई. को भारत के इस पर्यटनप्रिय साहित्यकार का निधन हो गया.
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