Poem on Father in Hindi | पिता पर कविता

Poem on Father in Hindi ( Pita Par Kavita – पिता पर कविता ) – एक बच्चे के जीवन में माता-पिता का बड़ा ही महत्व होता हैं. माँ के त्याग और प्रेम को दर्शाती शायरी और कविताएँ आपने बहुत सी सुनी होंगी. आज सुनिए पिता के प्रेम और त्याग को दर्शाती एक बेहतरीन कविता. इस कविता को पढ़ने के बाद या विडियो देखने के बाद आप अपने आँसू रोक नहीं पायेंगे.

Poem on Father in Hindi | पिता पर कविता

पिता पर लिखी यह कविता दिल को छू जाती हैं, यदि यह कविता अच्छी लगे तो पेज को जरूर लाइक करें.

इस नज्म का मैं कोई नाम रख नहीं पाया,
योंकि बाप को एक लफ़्ज में बता नहीं पाया.

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(Video Courtesy: YouTube/Tafreeh Peshkash )

नन्हीं सी आँखें और मुड़ी हुई उँगलियाँ थी,
ये बात तब की है जब दुनिया मेरे लिए सोई हुई थी
नंगे से शरीर पर नया कपड़ा पहनाता था
ईद-वीईद की समझ नहीं थी फिर भी मेरे साथ मनाता था,
घर में खाने वांदे (कमी) थे फिर भी ऍफ़डी में पैसा जोड़ रहा था,
उसके खुद के सपने अधूरे थे पर वो मेरे लिए सपने बुन रहा था.
ये बात तब की है जब दुनिया मेरे लिए सोई हुई थी

वक्त कटा, साल बना,
पर तब भी सब अनजान था
फिर भी मैं उसकी जान था
बिस्तर को गीला करना हो
या फिर रातों को रोना
एक बाप ही था जिससे छीना मैंने उसका सोना था

सुबह फ़जर तक गोद में खिलाता,
झूले में हिलाता
फिर दिन में कमाता शाम में चला आता
कभी ख़ुद से परेशान, तो कभी दुनिया का सताया था
एक बाप ही था जिसने मुझे रोते हुए हँसाया था

अल्फाजों से तो गूंगा था मैं
पर वो मेरे इशारे समझ रहा था
मैं ख़ुद इस बात से हैरान हूँ आज
कि कल वो मुझे किस तरह पढ़ रहा था
अब्बा तो छोड़ो यार
अभी तो ‘आ’भी निकला ना था
पर वह मेरी हर फ़रमाइशों को पूरा कर रहा था
और मैं भी उसके लाड प्यार मैं अब ढलने लगा था…
घर से अब वो निकल ना जाए
उसके कदमों पर अब मैं नजरें रखने लगा था…
मुद्दें तो हजार थे बाजार में उसके पास..
पर कब ढल जाएगा सूरज उसको इसका इंतजार था
और मैं भी दरवाजे की चौखट को ताकता रहता था
जब होती थी दस्तक
तो वॉकर (Walker) से झांकता रहता था
देखकर उसकी शक्ल मैं दूर से चिल्लाता था
जो भी इशारे मुझे आते थे….
उससे उसे अपने करीब बुलाता था…
वह भी छोड़-छाड़ के सब कुछ
मुझे अपने सीने से लगाता था
कभी हवा में उछालता था…
कभी करतब दिखाता था
मेरी एक मुस्कान के लिए
कभी हाथी कभी घोड़ा बन जाता था
और सो सकूं रात भर सुकून से
इसलिए पूरी रात एक करवट मे गुजारता था

पर वो बचपन शायद सो चुका था
और मैं जवानी की दहलीज पर कदम रखने लगा था
उसकी कुर्बानी को उसका फ़र्ज समझने लगा था
चाहे वो बिना पंखे के खुद सोना हो
और मुझे हवा में सुलाना
या ईद का वो पुराना कपड़ा ख़ुद पहनना हो
और मुझे नए कपड़े पहनाना
या तपते हुए बुखार में वो ठंडे माथे पे रखी हुई पट्टियाँ हो
या मेरी हर जिद के आगे गुझ जाना
वो बचपन था वो गुजर गया
वो रिश्ता था वो सुकुड गया
और मैं उस कुर्बानी के बोझ को उठा नहीं पाया
इसलिए वो शहर में कहीं दूर छोड़ आया

नया शहर था, नये शहर की हवा मुझपे चढ़ने लगी थी
अपने बाप की हर नसीहत एक बचपना लगने लगी थी
काम जो मिल गया था पैसा जो आने लगा था
क्या जरूरत है बाप की ये सोच मुझमें पलने लगी थी
और उधर मेरा बाप बैचेन था मेरी याद में
कि कुछ रोज तो घर आजा बेटा बस यहीं था उसकी फरियाद में
और मैं उससे हिसाब लेने लगा था
जो दुनिया का कर्जदार बन चुका था
क्या जरूरत है तुम्हे अब्बू इतने पैसे की
अब मैं ये सवाल करने लगा था

अब घड़ी का काँटा फिर पलट चुका था
कल किसी का बेटा था और आज किसी का बाप बन चुका था
और हसरतों का स्वेटर मैं भी बुनने लगा था
कल क्या करेगा मेरा बेटा मैं भी यहीं सोचने लगा था
अब दुनिया में ना उससे कोई आगे था ना कोई अपना था सब पराया था
बस वही एक सपना था
तब मुझमें एक जज्बात उमड़ने लगा था
जिस जज्बात से मैं हमेशा अंजान था
कि कल क्या गुज़री होगी मेरे बाप पे
अब मुझे ये समझ आने लगा था

बेलौस (बिना शर्त) मोहब्बत की मूरत होता है बाप
जो लफ्ज़ों में ना बुना जाएँ
जो कलमों से ना लिखा जाए वो होता है बाप
जो रोते हुए को हँसा दे
और खुद को माजूर (असमर्थ)बनाकर तुम्हें खड़ा कर दे वो होता हैं बाप

कि एक रोज एक रोज एक रोज
तुम्हें एहसास जरूर होगा
कि मशरूफ़ तुम थे
उम्रदराज वो होगा
जिसके ऊँगली का सहारा पकड़ के चला करते थे
और आज वही छड़ी का तलबगार होगा
जिसके सदके में जी रहे हो आज
कल वो ना रहे तो क्या होगा
पर अभी वक्त बचा है कुछ ख़ास तुम्हारे पास
तब तक जब तक बाप का साया तुम्हारे साथ होगा
और जन्नत के तलबगार हो तो सीने से लगा लेना
क्योंकि वहीं कल जन्नत का सरदार होगा
सब गिले शिकवे मिटा के चिपक जाना उसको
क्योंकि आज तो बाप है पर वो कल तुम्हारे साथ ना होगा

इस नज्म का मैं कोई नाम रख नहीं पाया,
क्योंकि बाप को एक लफ़्ज में बता नहीं पाया.

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