Mirza Ghalib Shayari in Hindi | मिर्जा ग़ालिब की बेहतरीन शायरी हिंदी अर्थ के साथ

Mirza Ghalib Shayari in Hindi ( Mirza Ghalib Urdu Shayari Meaning in Hindi ) – इस पोस्ट में मिर्ज़ा ग़ालिब की शायरी का हिंदी में अनुवाद हैं. अगर आप मिर्ज़ा ग़ालिब के शायरी को पसंद करते हैं तो इस पोस्ट को जरूर पढ़े.

Mirza Ghalib

Best Ghalib Shayari Meaning in Hindi | ग़ालिब की बेहतरीन शायरी का अर्थ हिंदी में

हमको मालूम है, जन्नत की हक़ीकत, लेकिन,
दिल के ख़ुश रखने को, ग़ालिब ये ख़याल अच्छा हैं

ग़ालिब ! हम स्वर्ग लोक की वास्तविकता को स्वीकारते और समझते हैं. किन्तु, वह तो मृत्यु के बाद ही अनुभव की जा सकती हैं लेकिन सांसारिक लोगों के मनबहलाव और काल्पनिक सुखानुभूति के लिए भी स्वर्ग की अवधारणा कम उपयोगी नहीं हैं.


इश्क़ ने, ग़ालिब को निकम्मा कर दिया
वर्ना हम भी आदमी थे काम के

Ghalib Shayari on Love in Hindi – ग़ालिब ! हमें रूपसियों के प्रेम ने अकर्मण्य बना दिया हैं, अन्यथा हमारी कार्य-क्षमता पर तो हमे गर्व था. दूसरा पहलू इस शेर का यह है कि काव्य रचना के प्रति मेरे समर्पण, काव्य-कला से प्रेम ने मुझे अन्य किसी कार्य के योग्य नहीं रखा. शायरी के इश्क़ ने सांसारिक व्यवहार-कुशलता से दूर कर मुझे किसी अन्य कार्य के लायक नहीं छोड़ा.


उनके देखे से, जो आ जाती है मुँह पर रौनक
वो समझते हैं कि बीमार का हाल अच्छा हैं

वह बीमारी की अवस्था में मेरी कुशल-क्षेम को आये हैं. उन्हीं के विरह में तो मैं रोग-ग्रस्त हुआ हूँ. उनकी छवि के दर्शन मात्र से ही मेरे चेहरे की चमक बढ़ गई है, इससे उन्हें भ्रम हो रहा है कि मेरा रोग अब घट रहा है, मैं स्वस्थ हो रहा हूँ.


न था कुछ तो ख़ुदा था, कुछ न होता, तो ख़ुदा होता
डुबोया मुझको होने ने, न होता मैं तो क्या होता

Mirza Ghalib Shayari Meaning in Hindi – ब्रह्मांड भी जब नहीं था, खुदा का अस्तित्व तब भी था, यदि कुछ भी नहीं होता, खुदा का अस्तित्व तब भी रहता ही. खुदा ने ब्रह्माण्ड का सृजन क्यों किया? खुदा को यदि संसार का खेल खेलने में आनन्द ही आता हैं, तो वह आनन्द तो उसे मेरे अस्तित्व में आयें बिना भी मिल ही जाता. इतने सारे दुःख सहने के लिए खुदा ने मुझे संसार में क्यों भेजा.


कोई उम्मीद बर नहीं आती
कोई सूरत नजर नहीं आती
मौत का एक दिन मु’अइयन है
नींद क्यों रात भर नहीं आती
आगे आती थी हाल-ए-दिल प हँसी
अब किसी बात पर नहीं आती

मेरी कोई आशा पूर्ण नहीं होती. अपनी कठिनाइयों से मुक्ति पाने का कोई भी उपाय मुझे नही सूझता. मृत्यु का दिन और क्षण तो पूर्व-निश्चित है. मृत्यु के भय से, अंत से पूर्व भी हजार बार क्यों मरा जाए. जन्म की भांति मृत्यु भी उत्सव-धर्मी होने का प्रमाण बने तो कैसा रहे. मृत्यु से आक्रांत होकर उसी के बारे में सोच-सोच कर रात-रातभर न सोने के पीछे क्या औचित्य है. पहले तो मैं अपने दिल के भोलेपन और उसकी दुर्दशा पर हँसता भी था, अब तो जीवन-स्थितियों ने जड़वत बना दिय है, अब न किसी बात पर चौंकता हूँ, और न हँसता हूँ.


कहते है, जीते हैं उम्मीद पे लोग
हम को जीने की भी उम्मीद नहीं

आम धारणा है कि आशा ही जीवन है, लेकिन, हमें तो जीवन की भी आशा नहीं हैं.


आईना देख, अपना सा मुँह ले के रह गये,
साहब को, दिल न देने पे कितना गुरूर था.

Ghalib Shayari Meaning in Hindi – उन्हें इस बात का कितना अभिमान था कि उन्होंने न किसी से प्रेम किया और न किसी को अपनी रूप-राशि के उपयोग का अवसर ही दिया. लेकिन, आज जब उन्होंने दर्पण में खुद को देखा तो सारा अभिमान चूर-चूर हो गया, क्योकि रूप-यौवन उनसे विदा ले चुका था.


आह को चाहिए इक ‘उम्र, असर होने तक
कौन जीता है तेरी जुल्फ़ के सर होने तक

आह का प्रभाव पड़ने के लिए एक पूरा जीवन चाहिए . ‘जुल्फ़ के सर होने’ के अनेक अर्थ और भंगिमाएँ हैं, जेसे-जुल्फों ( अलकों ) के खुलने तक, जुल्फों के सुलझने तक, जुल्फ़ को जीत लिए जाने तक. लेकिन, इसका वास्तविक अर्थ प्रेम के क्षेत्र में सफल होना ही हैं. ग़ालिब कहते है – कैसी विडम्बना है कि प्रेम-संताप ससे प्राप्त पीड़ा को प्रभावोत्पादकता के लिए एक पूरा जीवन चाहिए, किन्तु, प्रेम की सफलता के क्षण तक जिया कैसे जा सकता है, क्योंकि प्रेमाकांक्षा की अपूर्णता या अतृप्ति में ही प्रेम की सफलता का मूल-तत्व अंतर्निहित हैं.


पूछते हैं वह, कि ग़ालिब कौन है
कोई बतलाओम कि हम बतलाएँ क्या

मिर्जा ग़ालिब के शायरी का हिंदी अर्थ – वो जिन्होंने ग़ालिब के प्रेम में डूबकर पहरों-पहर उसके नाम की माला-सी जपी हैं, वो जिनकी श्वास-श्वास पर ग़ालिब का नाम लिखा है, वो जिनके दिल में ग़ालिब का निवास है, वही लोग आज यह पूछ रहे हैं कि ग़ालिब कौन है? अत्यंत आश्चर्य हैं.


की वफ़ा हम से, तो गैर उसको जफ़ा कहते हैं
होती आई है, कि अच्छो को बुरा कहते हैं

उसने हमारे प्रति निष्ठा का परिचय दिया, तो प्रेम प्रतिद्वंदियों को लगा कि उनके साथे बेवफ़ाई हुई है. यह तो सदा से ही होता आया है, कि जमाना अच्छो को बुरा कहता रहा है.


क़र्ज की पीते थे मै, लेकिन समझते थे, कि हाँ
रंग लायेगी हमारी फ़ाका मस्ती, एक दिन

ऋण लेकर मदिरा-पान करते जरूर थे, लेकिन, इस चीज की भी समझ हमें थी कि अभावों में भी मस्त रहने की हमारी आदत, एक दिन हमें अवश्य ही उस सम्मानित स्थान तक भी ले जायेगी, जो कि हमारे लिए सर्वथा उपयुक्त है औरय ह आत्म-विश्वास इस कारण था कि विपरीत परिस्थितियों में भी हमने अपनी चेतना के स्तर को सदैव उच्च श्रेणी में रखा. अभावों और विपरीत परिस्थितियों के बावजूद मेरी रचनात्मकता अन्ततः प्रतिष्ठित हो ही गई!!


उग रहा है दर-ओ-दीवार से सब्जा ‘ग़ालिब’
हम बयाबाँ में हैं और घर में बहार आई हैं

ग़ालिब! प्रमिका का दिल जो मेरा घर है, मैं उसमें रहता हूँ. मेरे उस घर में प्रेम के अंकुर हरीतिमा के रूप में परवान चढ़ रहे है. मेरा शरीर तो बियाबान (जंगल) में हैं, किन्तु मेरे घर, मेरी प्रेमिका के दिल में बसंत ऋतु का आगमन हो गया है. उसके दिल में मेरे मेरे प्रेम के फूल खिल रहें हैं.


उम्र भर देखा किये, मरने की राह
मर गये पर, देखिये, दिखलाएँ क्या

निरंतर उपेक्षा, अपमान, तिरस्कार और अवहेलना के साथ जीते हुए, प्रेम के अभाव और लोगों के बनावटी व्यवहार को सहते हुए जीवन के प्रति वितृष्णा इस हद तक बढ़ गई थी कि मृत्यु की प्रतीक्षा में ही जीवन बीत गया. अब जब अन्ततः मृत्यु को प्राप्त कर लिया है, अब देखते हैं, लोग मुझे कैसे याद करते हैं. हो सकता है, जीवन भर जिन्होंने मेरी उपेक्षा की, वे पश्चाताप से भर जाएँ. जिन्होंने जीते जी मेरे साथ बनावटी व्यवहार किया, उनके भीतर मेरे प्रति निश्छल स्नेह जाग उठे. वे जिन्होंने मेरे प्रेम को ठुकराया और मुझसे घृणा की, मेरी मृत्यु की सूचना उन्हें द्रवित कर दे और उनकी आँखे छलक उठे! जिस प्रतिष्ठा को मेरा जीवन तरसता रहा, हो सकता है मेरी मृत्यु उसे पा ले.


है बसकि, हर इक उनके इशारे में निशाँ और
करते हैं मुहब्बत, तो गुजरता है गुमाँ और

वह संकेतों से जताते कुछ और हैं, और उनमे अंतर्निहित अर्थ कुछ और होता है, इसी तरह वह प्रेम भी करते हैं, तो उसका अर्थ प्रेम नहीं कुछ और होता है. कुछ और यानी कभी-कभी एकदम उलट भी. उनकी प्रेम में प्रगाढ़ता का अर्थ गंभीर क़िस्म की दुश्मनी भी हो सकता हैं. उनके व्यवहार को समझने में तरह-तरह की भ्रांतियाँ होती हैं, वह कभी भी भीतर-बाहर एक जैसे नहीं होते हैं.


तुम शहर में हो, तो हमें क्या गम, जब उठेंगे
ले आएंगे बाज़ार से, आकर दिल-ओ-जाँ और

इस नगर में जब तुम जैसे प्रेम के व्यापारी हैं, तब हमें अपने दिल की और प्राणों की क्या चिंता? ये अगर कहीं खो भी गए तो आपके बाज़ार में आकर नए ख़रीद लेंगे. अतः आज जब दिल लेना या देना बाज़ार से किसी चीज के खरीदने जितना सरल हो गया है, तब प्रेम में निर्वाह और एक-निष्ठता का लोप होना स्वाभाविक हैं.


दिल-ए-नादाँ, तुझे हुआ क्या है
आख़िर इस दर्द की दवा क्या हैं

बावरे मन !!! तुझे क्या हो गया है. तू ही बता तेरी इस पीड़ा का उपचार क्या हैं?


हर एक बात पे कहते हो तुम, कि तू क्या हैं
तुम्हीं कहो कि ये अन्दाज़-ए-गुफ्तुगू क्या हैं

तुम्हारा मुझे इस तरह बार-बार ‘तू क्या हैं, तू क्या है’ कहकर मेरा अपमान करने का कारण क्या हैं. तुम ही मुझे बताओं कि सुसंस्कृत और शिष्ट लोग क्या इस तरह वार्तालाप करते हैं.


रगों में दौड़ते फिरने के, हम नहीं क़ाइल
जब आँख ही से न टपका, तो फिर लहू क्या हैं

शरीर में तो स्वाभाविक रूप से ही शिराओं में रक्त प्रवाहित रहता हैं, यह एक सामान्य बात है. हमारी मान्यता है कि प्रेयसी के वियोग में जब ता रक्त का प्रवाह आँखों में न उतर आये आँखों से टपकना-सा न महसूस हो तो उसकी क्या सार्थकता हैं? सब लोग इस तरह रोना नहीं जानते. हम खून के आँसू रोने के अभ्यस्त हैं, इसलिए हमें स्वयं पर गर्व हैं.


इश्क़ पर ज़ोर नहीं, है ये वह आतश, ‘ग़ालिब’
कि लगाये न लगे और बुझाये न बने

Shayari of Ghalib on Ishq – संभवतः संसार में प्रेम ही एक ऐसी भावना सर्वविदित सत्य हैं, जिसे आज तक पूर्णतः परिभाषित नहीं किया जा सका है. मेरी दृष्टि में प्रेम ही सर्वोपरि है, बाकी सब कुछ नगण्य! कौन, कब, किससे प्रेम करने लगेगा, इस विषय में कुछ भी सुनिश्चित नहीं किया जा सकता. ग़ालिब का कथन है कि इश्क़ (प्रेम) पर किसी का भी नियंत्रण नहीं हो सकता, यह एक ऐसी अग्नि है, जिसे प्रज्ज्वलित करना तो कठिन है ही, पर एक बार इस अग्नि के प्रज्ज्वलित हो जाने के बाद फिर इसे बुझा पान, इससे भी कठिन है.


हज़ारों ख्वाहिशें ऐसी, कि हर ख्वाहिश प दम निकले
बहुत निकले मेरे अरमान, लेकिन, फिर भी कम निकले

ऐसी हजारों अभिलाषाएँ मेरे मन में हैं, जिनमें एक भी पूर्ण हो जाए, तो जीवन को सफल मानकर मृत्यु का वरण करने में तनिक भी संकोच न करूँ. मेरी बहुत-सी मनोकामनाएँ पूर्ण हुई, किन्तु अपेक्षा से बहुत कम. अनेक कामनाएँ अभी भी अतृप्त और अपूर्ण हैं. अपूर्ण कामनाएँ इतनी मोहक हैं कि इनमें से हर एक पर पूरा जीवन निछावर किया जा सकता हैं.


नोट– इस पोस्ट में दिए मिर्ज़ा ग़ालिब के शायरी का हिंदी अर्थ “दीवान-ए-ग़ालिब” किताब से लिया गया हैं. इसका सम्पादन एवं व्याख्या “आचार्य सारथी रूमी” ने किया हैं.

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