कैलाश मानसरोवर यात्रा की पूरी जानकारी | Kailash Mansarovar History in Hindi

Kailash Mansarovar Yatra Mystery History in Hindi – हिमालय की पर्वतीय यात्राओं में मानसरोवर-कैलाश की यात्रा ही सबसे कठिन हैं. इस यात्रा में यात्री को लगभग तीन सप्ताह तिब्बत में ही रहना पड़ता हैं. केवल इसी यात्रा में हिमालय को पूरा पार किया जाता हैं. दूसरी यात्राओं में तो हिमालय के केवल एक पृष्ठांक के ही दर्शन होते है.

मानसरोवर कैलाश ( Mansarovar Kailash ), अमरनाथ, गंगोत्री, स्वर्गारोहण जैसे क्षेत्रों की यात्रा में, जहाँ यात्री को समुंद्र-स्तर से बारह हजार फुट ऊपर या उससे अधिक ऊँचाई पर जाना पड़ता हैं. वहाँ यात्री यदि ऑक्सीजन मास्क साथ ले जाए, तो हवा पतली होने एवं हवा में ऑक्सीजन की कमी होने से होने वाले स्वासकष्ट से वह बच जाएगा.

मानसरोवर माहात्म्य | Manasarovar Mahatmy

श्री मद्भागवत में कैलाश को भगवान शंकर का निवास तथा अतीव रमणीय बतलाया गया हैं. कैलाश पर मनुष्यों का निवास संभव नहीं हैं. मानसरोवर की परिक्रमा का भारी महत्व कहा गया है.

तिब्बती लोग तीन या तेरह परिक्रमा का महत्व मानते हैं और अनेक यात्री दंडप्रणिपात करके परिक्रमा पूरी करते हैं. धारणा है कि एक परिक्रमा करने से एक जन्म का, दस परिक्रमायें करने से एक कल्प का पाप नष्ट हो जाता हैं. जो 108 परिक्रमायें पूरी करते हैं, उन्हें जन्म-मरण से मुक्ति मिल जाती हैं.

धार्मिक पृष्ठभूमि

मानसरोवर का यह तीर्थ ‘मानसखंड’ भी कहलाता हैं. पौराणिक कथाओं के अनुसार शिव व ब्रह्मा आदि देवगण, मरीच आदि ऋषि तथा रावण व भस्मासुर आदि ने यहाँ तप किया था. पांडवो के दिग्विजय प्रयास के बाद अर्जुन ने इस क्षेत्र पर विजय प्राप्त की थी. इस प्रदेश की यात्रा व्यास, भीम, श्रीकृष्णा, दत्तात्रेय इत्यादि ने भी की थी. आदि शंकराचार्य ने इसी स्थान के आस-पास अपनी देह का त्याग किया था.

जैन धर्म के प्रथम तीर्थकर ऋषभदेवजी ने भी यहीं निर्वाण प्राप्त किया था. कैलाश पर्वतमाला कश्मीर से लेकर भूटान तक फैली हुई हैं. इसके उत्तरी शिखर का नाम कैलाश के मध्य यह स्थित हैं. यह सदैव बर्फ़ से आच्छादित रहता हैं.जैन तीर्थों में इसे सिद्धक्षेत्र माना गया हैं.

आवश्यक सामग्री

  1. सूती व ऊनी (गर्म) कपड़े.
  2. सिर पर ऊनी टोपी (मंकी कैप).
  3. जगुलुबन्द, जिससे सिर और कान बांधे जा सकें.
  4. ऊनी व सूरी दस्ताने वो मोज़े.
  5. छाता, बरसाती कोट व टोपी.
  6. ऐसे जूते जो बर्फ़ व पत्थरों पर काम दे सकें.
  7. बल्लम के समान सिर के बराबर की लाठी, जिसके नीचे लोहा हो.
  8. दो मोटे कम्बल.
  9. एक वाटरप्रूफ कपड़ा जिसमें सामान भीगे नहीं.
  10. थोड़ी खटाई, इमली या सूखे आलूबुखारे, जो जी मिचलाने पर खाए जा सकें.
  11. कुछ आवश्यक दवाइयाँ, वैसलीन तथा चोट पर लगाने वाला मलहम इत्यादि.
  12. मोमबत्ती, टॉर्च, अतिरिक्त सैल तथा लालटेन.
  13. भोजन बनाने के हल्के बर्तन व स्टोव इत्यादि.

सावधानी

  1. यात्रा में रूई के गद्दे व रजाई न ले जाएँ. ये आसानी से सूखते नहीं हैं.
  2. सामान अधिक न ले जाएँ.
  3. पीने के पानी का बर्तन साथ रखें. पर्वतीय जल हानिकारक है. खाली पेट पानी न पियें.
  4. बिना कुछ खाएं यात्रा न करें.
  5. किसी अपरिचित फल, फूल या पत्ते को सूंघना, छूना या खाना कष्ट दे सकता हैं.

कैलाश मानसरोवर यात्रा मार्ग | Kailash Mansarovar Yatra Marg

यात्रा का समय व स्थान चीन सरकार निश्चित करती हैं. यात्रा करने से पहले चीन सरकार की अनुमति लेनी पड़ती हैं. यात्रा पर पूरे दल को जाने की अनुमति मिलती है. चीन सरकार ही यात्रियों की सुविधाओं का ध्यान रखती है.

यात्रा आरम्भ करने से पहले टनकपुर रेलवे स्टेशन पहुंचकर बस द्वारा पिथौरागढ़ जाया जाता हैं जो कि 180 किलोमीटर है. यहाँ से अस्ककोट तक भी सड़क मार्ग है. अल्मोड़ा से यदि यात्रा करें तो अस्ककोट तक की दूरी 135 किलोमीटर है. अस्ककोट से अगला पड़ाव बलवाकोट 22 किलोमीटर है. 18 किलोमीटर आगे धारचूला नामक स्थान है. यहाँ पर एक डाक-बंगला है. यहीं पर कुली-सवारी आदि भी बदलनी पड़ती हैं.

धारचूला ( Dharchula ) से 22 किलोमीटर पर खेला ( khela ) नामक स्थान है. यहाँ से 5000 फुट तक सीधी चढ़ाई है. यह चढ़ाई बहुत कठिन है. इस चढ़ाई के बाद टिथिला ( Tithila ) नामक स्थान है. टिथिला से 8000 फुट की ऊँचाई पर गालाघर पड़ाव पड़ता है. गालाघर ( Gallagher ) से निरपानी ( Nirpani ) नामक स्थान अत्यंत दुर्गम है. मार्ग में दो पड़ाव आते है. मालपा और बुधी. यहाँ पर यात्री कुछ अधिक विश्राम करते है. इसके बाद का पड़ाव 16 किलोमीटर दूर एक और रास्ते में खोजर ( khojar ) नामक तीर्थ है.

गरव्यांग से चढ़ाई शुरू होती हैं. लिपुलेख तक की ऊँचाई 1670 फुट हैं. यहाँ से हिमालय और तिब्बत के ऊँचे प्रदेशो का दृश्य बड़ा ही मनोहारी है. तकलाकोट से लगभग 15000 फुट ऊँचाई चढ़ने के बाद बालढांक नामक एक पड़ाव आता हैं. यहाँ से दो रास्ते है. एक रक्षताल को जाता हैं तथा दूसरा गुरल्ला दर्रे को पार करते हुए मानसरोवर तक जाता हैं.

मानसरोवर झील ( Mansarovar Lake ) की परिक्रमा का घेरा लगभग 80 किलोमीटर है. दूसरी ओर रक्षताल है. इन दोनों सरोवर का जल जमता नहीं हैं. इनके नीचे गर्म पानी की सोते हैं.

मानसरोवर झील से 18 किलोमीटर नीचे उतरकर तारचीन नामक स्थान हैं. यहीं से कैलाश पर्वत की परिक्रमा आरम्भ होती हैं. कैलाश की परिक्रमा में लगभग तीन दिन का समय लग जाता हैं.

मानसरोवर तीन बड़ी नदियों सतलुज, सरयू तथा ब्रह्मापुत्र का उद्गम स्थल है.

मानसरोवर दर्शन | Mansarovar Darshan

पूरे हिमालय को पार करके, तिब्बती पठार में लगभग दस मील जाने पर पर्वतों से घिरे दो महान सरोवर मिलते है. वे मनुष्य के दोनों नेत्रों के समान स्थित हैं और उनके मध्य में नासिका के समान ऊपर उठी पर्वतीय भूमि है, जो दोनों को पृथक करती है. इनमें एक राक्षसताल है तथा दूसरा मानसरोवर.

राक्षसताल | Rakshasatal

राक्षसताल विस्तार में बहुत बड़ा हैं.वो गोल या चौकोर नहीं हैं.इसकी कई भुजाएं मीलों तक टेढ़ी-मेढ़ी होकर पर्वतों में चली गई हैं.कहा जाता है कि किसी समय राक्षसताल रावण ने यहीं खड़े होकर देवाधिदेव भगवान शंकर की आराधना की थी.

मानसरोवर | Mansarovar

मानसरोवर का आकार लगभग गोल या अंडाकार है.उसका बाहरी घेरा लगभग 22मील हैं. मानसरोवर 51 शक्तिपीठों में से एक हैं. यहाँ पर सती की दाहिनी हथेली इसी में गिरी थी. इसका जल अत्यंत स्वच्छ और अद्भुतनीलापन लिए हुए हैं.

मानसरोवर में हंस बहुत हैं.राजहंस भी और सामान्य हंस भी हैं.सामान्य हँसों की भी दो जातियाँ हैं. एक मटमैले सफ़ेद रंग के तथा दुसरे बादामी रंग के. ये आकार में बतखों से बहुत मिलते हैं, परन्तु इनकी चोंचे बतखों से बहुत पतली हैं. पेट का भाग भी पतला है और ये पर्याप्त ऊँचाई पर दूर तक उड़ते हैं.

मानसरोवर में मोती होते है या नहीं, इसका पता नहीं, परन्तु तट पर उनके होने का कोई चिन्ह नहीं है. कमल उसमें सर्वथा नहीं हैं. एक जाति के सिवार अवश्य है. किसी समय मानसरोवर का जल राक्षसताल में जाता था. जलधारा का वह स्थान तो अब ही हैं, परन्तु वह भाग अब ऊँचा हो गया हैं. प्रत्यक्ष में मानसरोवर से कोई नदीं या छोटा झरना भीं नहीं निकलता, परन्तु मानसरोवर पर्याप्त उच्च प्रदेश में हैं.

मानसरोवर के आस-पास कहीं कोई वृक्ष नहीं हैं. कोई पुष्प नहीं हैं. इस क्षेत्र में छोटी घास और अधिक-से-अधिक सवा फुट तक ऊँची उठने वाली एक कंटीली झाड़ी को छोड़कर और कोई पौधा नहीं हैं. मानसरोवर का जल सामान्य शीतल है. इसमें मजे से स्नान किया जा सकता हैं. इस तट पर रंग-बिरंगे पत्थर और कभी-कभी स्फटित के छोटे टुकड़े भी पाए जाते हैं.

कैलाश दर्शन | Kailash Darshan

मानसरोवर से कैलाश की दूरी लगभग 35 किलोमीटर हैं. इसके दर्शन मानसरोवर पहुँचने से पहले ही होने लगते हैं. तिब्बत के लोगों में कैलाश के प्रति अपार श्रद्धा हैं. अनेक तिब्बत निवासी पूरे कैलाश की परिक्रमा दंडवत प्रनियात करते हुए पूरी करते हैं. कैलाश पर्वत शिवलिंग के आकार का हैं. यह आस-पास के सभी शिखरों से ऊँचा हैं. यह कसौटी के ठोस काले पत्थरों का हैं. यह ऊपर से नीचे तक दूध जैसी उज्ज्वल बर्फ़ से ढका रहता है.

कैलाश के शिखर के चारों कोनों में ऐसी मंदिराकृत प्राकृतिक रूप से बनी हैं, जैसे बहुत से मंदिरो के शिखरों पर चारों ओर बनी होती हैं. कैलाश एक असामान्य पर्वत है. यह समस्त हिम-शिखरों से सर्वथा भिन्न तथा दिव्य है.

परिक्रमा | Parikrama

कैलाश की परिक्रमा लगभग 50 किलोमीटर की हैं, जिसे यात्री प्रायः तीन दिनों में पूरा करते हैं. यह परिक्रमा कैलाश शिखर के चारो ओर के कमलाकार शिखरों के साथ होती हैं. कैलाश शिखर अस्पृश्य है. यात्रा मार्ग से लगभग ढाई किलोमीटर की सीधी चढ़ाई करके ही इसे स्पर्श किया जा सकता है. यह चढ़ाई पर्वतारोहण की विशिष्ट तैयारी के बिना संभव नहीं हैं.
कैलाश शिखर की ऊँचाई समुद्र-स्तर से 22 हजार फुट ऊँची बताई जाती है. कैलाश के दर्शन एवं परिक्रमा करने पर अद्भुत शांति एवं पवित्रता का अनुभव होता है.

परिक्रमा मार्ग | Parikrama Marg

  1. तारचिन से लंडीफू (नंदी गुफा) : चार मील मार्ग से, परन्तु मार्ग से एक मील तथा सीधी चढ़ाई करके उतर आना पड़ता हैं.
  2. डेरफू : आठ मील. यहाँ से सिंध नदी का उदगम एक मील और ऊपर हैं.
  3. गौरीकुंड : तीन मेल. कड़ी चढ़ाई, बर्फ़, समुद्र-स्तर से 11000 फुट ऊँचाई पर.
  4. जंडलफू : 11 मील. दो मील कड़ी उतराई.
  5. दरचिन : 6 मील.

विशेष बात | vishesh Baat

जिनका शरीर बहुत मोटा हैं, जिन्हें श्वास का रोग या हृदय रोग है या संग्रहणी जैसा कोई रोग हैं, वे यह यात्रा नहीं कर सकते. छोटे बालक व वृद्ध यह यात्रा नही कर सकते हैं.

नोट – इस पोस्ट का पूरा कंटेंट महंत ओमनाथ शर्मा की किताब ‘हमारे पूज्य तीर्थ-स्थल’ से लिया गया हैं.

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