सत्तर बरस बिताकर सीखी लोकतंत्र ने बात,
महामहिम में गुण मत ढूँढो,पूछो केवल जात?
दिल ना-उमीद तो नहीं नाकाम ही तो है,
लम्बी है ग़म की शाम मगर शाम ही तो है.
जो मौत से ना डरता था बच्चों से डर गया,
एक रात खाली हाथ जब मजदूर घर गया.
ये वक्त बहुत ही नाजुक हैं, हम पर हमले दर हमले हैं,
दुश्मन का दर्द यही तो हैं, हम हर हमले पर संभले हैं.
भर दो फिर आग उन बुझते चरागों में,
जलाकर रख दे उन नफ़रत के अशियार्नो को.
देखी नही जाती दुनिया से शायर की ख़ुशी…
कि अक्सर शायरों के दर्द ही मशहूर होते हैं.
आसमां पे हैं ख़ुदा और जमीं पे हम,
आज कल वो इस तरफ देखता हैं कम.