राजनीतिक व्यंग्य शायरी | भ्रष्ट नेताओं पर शायरी

राजनीतिक व्यंग्य शायरी | भ्रष्ट नेताओं पर शायरी – भारतीय राजनीतिक चेतना का अस्तर बहुत ही गिरा हुआ है. क्योंकि यहाँ नेता जाति-धर्म, अंधविश्वास को अपना हथियार बनाकर चुनाव जीत जाते हैं. शिक्षा और स्वास्थ की व्यवस्था दिनों दिन खराब होती जा रही है. और आम नागरिक का टैक्स बढ़ता जा रहा है.

जो शारीरिक और मानसिक रूप से स्वस्थ न हो. जिसकी शिक्षा अच्छी न हो वो नेताओं के चापलूस ही बनेंगे. और यही चापलूस उन्हें चाहिए. फिर वो क्यों अच्छी शिक्षा और अच्छी स्वास्थ मुहैया कराएं. भारत में एक सर्वे करा लीजिये. हर कोई किसी न किसी पार्टी, विचारधारा, या इकहरी मानसिकता का गुलाम दिखेगा.

कोई ऐसा ढूढ़ने से नहीं मिलेगा कि जो सच को कह सके. भारत की सबसे बड़ी समस्या पांच है. शिक्षा, स्वास्थ, रोजगार, जनसंख्या और भ्रष्टाचार है. आप न्यूज़ उठाकर देख ले. इनके बारे में कोई बात नहीं करता है. अगर आप जागरूक है तो यह मुद्दा उठायें.

राजनीतिक व्यंग्य शायरी

गर्मी के मौसम में भी ओला पड़ने लगा है,
जिसका पेट भरा वो बेवजह लड़ने लगा है.


मेरा पानी उतरा देखकर मेरे किनारे घर मत बसा लेना,
मैं समंदर हूं लौटकर वापस जरूर आऊंगा.


सोचियेगा… काँच पर पारा चढ़ा दो तो आईना बन जाता है,
और किसी को आईना दिखा दो तो उसका पारा चढ़ जाता है.


नेता जी आप एक मूसक है,
अति ही अंत का सूचक है.


ख्वाहिशों का मोहल्ला बहुत बड़ा होता है,
बेहतर यही है कि हम जरूरतों की गली मुड़ जाएँ.


राजनीति की लड़ाई देखकर दिल मेरा बड़ा परेशान है,
सच कहूँ दोस्तों, तो अब मेरा भी फिसलता बड़ा जुबान है.


राजनीति पर व्यंग्य

अपने नेता जी जनता को हंसाने लगे है,
अपनी आशिकी जानवरों से जताने लगे हैं,
इंसानों की हालत जानवरों से भी बदतर है
नेता जी ये बात बताने से कतराने लगे है.


जो बड़े नेताओं की चापलूसी करेंगे,
याद रखना, वही कल को बड़े नेता बनेंगे.


मैं मासूम सी जनता, तुम शातिर नेता प्रिये,
तुमने मेरा काटा, इसमें किसका है दोष प्रिये.


मुफ्त की मिले तो सब खाते हैं,
शरीफों के मुहल्ले से हम भी आते है.


राजनीति पर व्यंग

देश चलता नहीं, मचलता है,
मुद्दा हल नहीं होता, सिर्फ उछलता है,
जंग मैदान में नहीं, सोशल मिडिया पर जारी है,
आज मेरी, तो कल तेरी बारी है.


चुनाव में जनता का जिद और नेता का प्यार,
चुकाना पड़ेगा बाद में ये सूद समेत उधार.


चुनाव के समय रिश्वत तो जनता को भी दिया जाता हैं,
तो सिर्फ़ नेताओं को ही क्यों बदनाम किया जाता है.


ईमानदारी को ताकत बनाकर राजनीति में आया,
मायूस होकर लौटना पड़ा
क्योंकि एक भी ईमानदार पार्टी नहीं पाया.


नेता जी कह रहे है देश बदल रहा है,
या नेता जी जनता से बदला ले रहे है.


एक रोटी चोरी हो जाएँ
तो आप लड़ने को तैयार हो जाते है,
ये नेता आपके घर को लूट रहे है
आप कैसे चुप रह जाते है.


नक्शा लेकर हाथ में बच्चा है हैरान,
नेता रुपी दीमक कैसे खा रहा है हिन्दुस्तान.


नेता पर व्यंग

जनता फरेब खा जमीन पर सो गई,
नेता जी उबालते रहे पत्थर तमाम रात.


नेता विकास का एजेंडा लेकर आते हैं,
और पार्टी के एजेंडे के विकास में लग जाते है.


बेरोजगारी और ट्विटर पर नेताओं की तारीफ़
करने वालों की संख्या दिनों दिन बढ़ रही है.


बादाम भिगोये थे याद्दाश्त बढाने के लिए,
और अब याद नहीं आ रहा रखे कहाँ है.


भारत में चुनाव दो चरणों में होता है,
पहले नेता जी जनता के चरणों में
फिर जनता नेता जी के चरणों में.


अब किसी को भी नजर आती नहीं कोई दरार,
घर की हर दीवार पर चिपके हैं इतने इश्तहार,
रोज अखबारों में पढ़कर यह ख्याल आया हमें,
इस तरफ आती तो हम भी देखते फस्ले-बहार.


इन्साफ जालिमों के हिमायत में जाएगा,
ये हाल है तो तो कौन अदालत में जाएगा.
डॉ. राहत इन्दौरी


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