Nagarjun Poems in Hindi ( नागार्जुन की कविता ) – भारत के प्रसिद्ध जन कवि बाबा नागार्जुन की बेहतरीन कवितायें इस पोस्ट में दी गयी हैं इन्हें जरूर पढ़े.
कहा जाता है कि एक बार भारत के प्रथम प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू का जन्म दिन था और एक कविगोष्ठी भी थी जिसमें बाबा नागार्जुन भी बुलाए गये है और उन्होनें इन लाइनों को जवाहर लाल नेहरू के सामने पढ़ा था.
वतन बेचकर पंडित नेहरु फूले नहीं समाते हैं,
फिर भी बापू की समाधि पर झुक-झुक फूल चढ़ाते है.
नागार्जुन की कविता | Nagarjun Poems in Hindi
बाबा नागार्जुन अपनी कविताओं में सत्य को सर्वोपरि रखते थे. आज की कवियों की तरह नहीं कि नेताओं की चाटुकारिता करते थे. युवा कवियों को बाबा नागार्जुन की कविताओं से सीखना चाहिए कि कैसे और क्या लिखा जाता हैं.
जनता मुझसे पूछ रही है क्या बतलाऊ,
जनकवि हूँ मैं, साफ कहूंगा, क्यों हकलाऊं’
इन्दु जी क्या हुआ आपको | Nagarjuna Kavita
इस कविता को बाबा नागर्जुन ने इंदिरा गांधी के शासन काल में लिखा था जब इन्होने देश में इमरजेंसी लगाया था. इमरजेंसी में बाबा नागार्जुन भी जेल गये थे.
क्या हुआ आपको?
क्या हुआ आपको?
सत्ता की मस्ती में
भूल गई बाप को?
इन्दु जी, इन्दु जी, क्या हुआ आपको?
बेटे को तार दिया, बोर दिया बाप को!
क्या हुआ आपको?
क्या हुआ आपको?
आपकी चाल-ढाल देख- देख लोग हैं दंग
हकूमती नशे का वाह-वाह कैसा चढ़ा रंग
सच-सच बताओ भी
क्या हुआ आपको
यों भला भूल गईं बाप को!
छात्रों के लहू का चस्का लगा आपको
काले चिकने माल का मस्का लगा आपको
किसी ने टोका तो ठस्का लगा आपको
अन्ट-शन्ट बक रही जनून में
शासन का नशा घुला ख़ून में
फूल से भी हल्का
समझ लिया आपने हत्या के पाप को
इन्दु जी, क्या हुआ आपको
बेटे को तार दिया, बोर दिया बाप को!
बचपन में गांधी के पास रहीं
तरुणाई में टैगोर के पास रहीं
अब क्यों उलट दिया ‘संगत’ की छाप को?
क्या हुआ आपको, क्या हुआ आपको
बेटे को याद रखा, भूल गई बाप को
इन्दु जी, इन्दु जी, इन्दु जी, इन्दु जी…
रानी महारानी आप
नवाबों की नानी आप
नफ़ाख़ोर सेठों की अपनी सगी माई आप
काले बाज़ार की कीचड़ आप, काई आप
सुन रहीं गिन रहीं
गिन रहीं सुन रहीं
सुन रहीं सुन रहीं
गिन रहीं गिन रहीं
हिटलर के घोड़े की एक-एक टाप को
एक-एक टाप को, एक-एक टाप को
सुन रहीं गिन रहीं
एक-एक टाप को
हिटलर के घोड़े की, हिटलर के घोड़े की
एक-एक टाप को…
छात्रों के ख़ून का नशा चढ़ा आपको
यही हुआ आपको
यही हुआ आपको
नागार्जुन की कविता कालिदास | Nagarjuna Kavita in Hindi
कालिदास! सच-सच बतलाना
इन्दुमती के मृत्युशोक से
अज रोया या तुम रोये थे?
कालिदास! सच-सच बतलाना!
शिवजी की तीसरी आँख से
निकली हुई महाज्वाला में
घृत-मिश्रित सूखी समिधा-सम
कामदेव जब भस्म हो गया
रति का क्रंदन सुन आँसू से
तुमने ही तो दृग धोये थे
कालिदास! सच-सच बतलाना
रति रोयी या तुम रोये थे?
वर्षा ऋतु की स्निग्ध भूमिका
प्रथम दिवस आषाढ़ मास का
देख गगन में श्याम घन-घटा
विधुर यक्ष का मन जब उचटा
खड़े-खड़े तब हाथ जोड़कर
चित्रकूट से सुभग शिखर पर
उस बेचारे ने भेजा था
जिनके ही द्वारा संदेशा
उन पुष्करावर्त मेघों का
साथी बनकर उड़ने वाले
कालिदास! सच-सच बतलाना
पर पीड़ा से पूर-पूर हो
थक-थककर औ’ चूर-चूर हो
अमल-धवल गिरि के शिखरों पर
प्रियवर! तुम कब तक सोये थे?
रोया यक्ष कि तुम रोये थे!
कालिदास! सच-सच बतलाना!
अकाल और उसके बाद | Poem of Nagarjuna in Hindi
कई दिनों तक चूल्हा रोया, चक्की रही उदास
कई दिनों तक कानी कुतिया सोई उनके पास
कई दिनों तक लगी भीत पर छिपकलियों की गश्त
कई दिनों तक चूहों की भी हालत रही शिकस्त।
दाने आए घर के अंदर कई दिनों के बाद
धुआँ उठा आँगन से ऊपर कई दिनों के बाद
चमक उठी घर भर की आँखें कई दिनों के बाद
कौए ने खुजलाई पाँखें कई दिनों के बाद।
शासन की बंदूक | नागार्जुन Poems in Hindi
खड़ी हो गई चाँपकर कंकालों की हूक
नभ में विपुल विराट-सी शासन की बंदूक
उस हिटलरी गुमान पर सभी रहें है थूक
जिसमें कानी हो गई शासन की बंदूक
बढ़ी बधिरता दस गुनी, बने विनोबा मूक
धन्य-धन्य वह, धन्य वह, शासन की बंदूक
सत्य स्वयं घायल हुआ, गई अहिंसा चूक
जहाँ-तहाँ दगने लगी शासन की बंदूक
जली ठूँठ पर बैठकर गई कोकिला कूक
बाल न बाँका कर सकी शासन की बंदूक
नागार्जुन की कविता सत्य | नागार्जुन Poems
सत्य को लकवा मार गया है
वह लंबे काठ की तरह
पड़ा रहता है सारा दिन, सारी रात
वह फटी–फटी आँखों से
टुकुर–टुकुर ताकता रहता है सारा दिन, सारी रात
कोई भी सामने से आए–जाए
सत्य की सूनी निगाहों में जरा भी फर्क नहीं पड़ता
पथराई नज़रों से वह यों ही देखता रहेगा
सारा–सारा दिन, सारी–सारी रात
सत्य को लकवा मार गया है
गले से ऊपरवाली मशीनरी पूरी तरह बेकार हो गई है
सोचना बंद
समझना बंद
याद करना बंद
याद रखना बंद
दिमाग की रगों में ज़रा भी हरकत नहीं होती
सत्य को लकवा मार गया है
कौर अंदर डालकर जबड़ों को झटका देना पड़ता है
तब जाकर खाना गले के अंदर उतरता है
ऊपरवाली मशीनरी पूरी तरह बेकार हो गई है
सत्य को लकवा मार गया है
वह लंबे काठ की तरह पड़ा रहता है
सारा–सारा दिन, सारी–सारी रात
वह आपका हाथ थामे रहेगा देर तक
वह आपकी ओर देखता रहेगा देर तक
वह आपकी बातें सुनता रहेगा देर तक
लेकिन लगेगा नहीं कि उसने आपको पहचान लिया है
जी नहीं, सत्य आपको बिल्कुल नहीं पहचानेगा
पहचान की उसकी क्षमता हमेशा के लिए लुप्त हो चुकी है
जी हाँ, सत्य को लकवा मार गया है
उसे इमर्जेंसी का शाक लगा है
लगता है, अब वह किसी काम का न रहा
जी हाँ, सत्य अब पड़ा रहेगा
लोथ की तरह, स्पंदनशून्य मांसल देह की तरह!
तीनों बन्दर बापू के | नागार्जुन की कविता
बापू के भी ताऊ निकले तीनों बन्दर बापू के!
सरल सूत्र उलझाऊ निकले तीनों बन्दर बापू के!
सचमुच जीवनदानी निकले तीनों बन्दर बापू के!
ग्यानी निकले, ध्यानी निकले तीनों बन्दर बापू के!
जल-थल-गगन-बिहारी निकले तीनों बन्दर बापू के!
लीला के गिरधारी निकले तीनों बन्दर बापू के!
सर्वोदय के नटवरलाल
फैला दुनिया भर में जाल
अभी जियेंगे ये सौ साल
ढाई घर घोड़े की चाल
मत पूछो तुम इनका हाल
सर्वोदय के नटवरलाल
लम्बी उमर मिली है, ख़ुश हैं तीनों बन्दर बापू के!
दिल की कली खिली है, ख़ुश हैं तीनों बन्दर बापू के!
बूढ़े हैं फिर भी जवान हैं ख़ुश हैं तीनों बन्दर बापू के!
परम चतुर हैं, अति सुजान हैं ख़ुश हैं तीनों बन्दर बापू के!
सौवीं बरसी मना रहे हैं ख़ुश हैं तीनों बन्दर बापू के!
बापू को हीबना रहे हैं ख़ुश हैं तीनों बन्दर बापू के!
बच्चे होंगे मालामाल
ख़ूब गलेगी उनकी दाल
औरों की टपकेगी राल
इनकी मगर तनेगी पाल
मत पूछो तुम इनका हाल
सर्वोदय के नटवरलाल
सेठों का हित साध रहे हैं तीनों बन्दर बापू के!
युग पर प्रवचन लाद रहे हैं तीनों बन्दर बापू के!
सत्य अहिंसा फाँक रहे हैं तीनों बन्दर बापू के!
पूँछों से छबि आँक रहे हैं तीनों बन्दर बापू के!
दल से ऊपर, दल के नीचे तीनों बन्दर बापू के!
मुस्काते हैं आँखें मीचे तीनों बन्दर बापू के!
छील रहे गीता की खाल
उपनिषदें हैं इनकी ढाल
उधर सजे मोती के थाल
इधर जमे सतजुगी दलाल
मत पूछो तुम इनका हाल
सर्वोदय के नटवरलाल
मूंड रहे दुनिया-जहान को तीनों बन्दर बापू के!
चिढ़ा रहे हैं आसमान को तीनों बन्दर बापू के!
करें रात-दिन टूर हवाई तीनों बन्दर बापू के!
बदल-बदल कर चखें मलाई तीनों बन्दर बापू के!
गाँधी-छाप झूल डाले हैं तीनों बन्दर बापू के!
असली हैं, सर्कस वाले हैं तीनों बन्दर बापू के!
दिल चटकीला, उजले बाल
नाप चुके हैं गगन विशाल
फूल गए हैं कैसे गाल
मत पूछो तुम इनका हाल
सर्वोदय के नटवरलाल
हमें अँगूठा दिखा रहे हैं तीनों बन्दर बापू के!
कैसी हिकमत सिखा रहे हैं तीनों बन्दर बापू के!
प्रेम-पगे हैं, शहद-सने हैं तीनों बन्दर बापू के!
गुरुओं के भी गुरु बने हैं तीनों बन्दर बापू के!
सौवीं बरसी मना रहे हैं तीनों बन्दर बापू के!
बापू को ही बना रहे हैं तीनों बन्दर बापू के!
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