नागार्जुन का जीवन परिचय | Nagarjuna Biography in Hindi

Baba Nagarjuna Biography in Hindi – श्री वैद्यनाथ मिश्र ( नागार्जुन ) का जन्म बिहार के मधुबनी जिले के सतलखा ग्राम में सन् 1911 ई.में हुआ था. इनका आरम्भिक जीवन अभावों का जीवन था. जीवन के अभाव ने ही आगे चलकर इनके संघर्षशील व्यक्तित्व का निर्माण किया। व्यक्तिगत दुःख ने इन्हें मानवता के दुःख को समझने की क्षमता प्रदान की. इनके जीवन की यही रागिनी इनकी रचनाओं में मुखर हुई है.

नागार्जुन का जीवन परिचय | Nagarjuna Biography in Hindi

नाम – श्री बैद्यनाथ मिश्र
प्रसिद्ध नाम – नागार्जुन
जन्मतिथि – 30 जून, 1911
जन्मस्थान – ग्राम : सतलखा, जिला : मधुबनी, बिहार, भारत
माता का नाम – उमा देवी
पिता का नाम – गोकुल मिश्र
पत्नी का नाम – अपरजिता देवी
भाषा ज्ञान – हिंदी, मैथिली, संस्कृत एवं बांग्ला
व्यवसाय – लेखन ( कवि, लेखक )
उपलब्धि – साहित्य अकादेमी पुरस्कार और साहित्य अकादेमी फ़ेलोशिप
मृत्यु – 5 नवंबर, 1998

नागार्जुन का साहित्य परिचय

इनके हृदय में सदैव दलित वर्ग के प्रति संवेदना रही है. अपनी कविताओं में ये अत्याचार-पीड़ित, त्रस्त व्यक्तियों के प्रति सहानुभूति प्रदर्शित करके ही संतुष्ट नहीं हो गए, बल्कि उनको अनीति और अन्याय का विरोध करने की प्रेरणा भी दी. सम-सामयिक, राजनीति तथा सामजिक समस्याओं पर इन्होंने काफी लिखा है. व्यंग करने में इन्हें संकोच नहीं। तीखी और सीधी चोट करनेवाले ये अपने समय के प्रमुख व्यंगकार थे. इसकी रचनाओं पर उत्तर प्रदेश का “भारत-भारती”, मध्य प्रदेश का “कबीर” तथा बिहार का “राजेंद्र प्रसाद” सम्मान प्राप्त हुआ.

नागार्जुन जीवन के, धरती के, जनता के तथा श्रम के गीत गाने वाले ऐसे कवि है, जिनकी कविताओं को किसी वाद की सीमा में नहीं बाँधा जा सकता। अपने स्वतंत्र व्यक्तित्व की भाँति इन्होंने अपनी कविता को भी स्वतंत्र रखा है.

राजनीति से प्रश्न करती बाबा नागार्जुन की रचनाएँ

राजनीति से प्रश्न करती बाबा नागार्जुन की रचनाएँ
Rajneeti Se Prashn Karti Baba Nagarjuna Ki Rachanayen

गांधी जी का नाम बेचकर,
बतलाओ कब तक खाओगे?
यम को दुर्गंध लगेगी,
नरक भला कैसे जाओगे?

कांग्रेसी नेताओं के द्वारा गाँधी जी के नाम का दुरूपयोग करने पर यह व्यंग बाबा नागार्जुन ने कहा था.


Nagarjuna Best Line on Politics

अंदर संकट, बाहर संकट, संकट चारों ओर
जीभ कटी है, भारतमाता मचा न पाती शोर
देखो धँसी-धँसी ये आँखें, पिचके-पिचके गाल
कौन कहेगा, आजादी के बीते तेरह साल?


समाजिक समस्याओं को बयाँ करती बाबा नागार्जुन की रचनाएं

कई दिनों तक चूल्हा रोया, चक्की रही उदास
कई दिनों तक कानी कुतिया सोई उनके पास
कई दिनों तक लगी भीत पर छिपकलियों की गश्त
कई दिनों तक चूहों की भी हालत रही शिकस्त।

दाने आए घर के अंदर कई दिनों के बाद
धुआँ उठा आँगन से ऊपर कई दिनों के बाद
चमक उठी घर भर की आँखें कई दिनों के बाद
कौए ने खुजलाई पाँखें कई दिनों के बाद।

बाबा नागार्जुन की इस रचना का शीर्षक “अकाल और उसके बाद” है, जैसा कि नाम से ही स्पष्ट है कि अकाल के समय की और उसके बाद की विवेचना बड़े प्रभावी तरीके से की है.

सत्ता के अहंकार को आईना दिखाती बाबा नागार्जुन की रचनाएं

इन्दु जी, क्या हुआ आपको
बेटे को तार दिया, बोर दिया बाप को!
छात्रों के लहू का चस्का लगा आपको
काले चिकने माल का मस्का लगा आपको
किसी ने टोका तो ठस्का लगा आपको
अन्ट-शन्ट बक रही जनून में
शासन का नशा घुला ख़ून में
फूल से भी हल्का
समझ लिया आपने हत्या के पाप को
इन्दु जी, क्या हुआ आपको
बेटे को तार दिया, बोर दिया बाप को!


जब हमने महाप्राण निराला को गरीबी में मरने दिया तब बाबा नागार्जुन ने कहा –

बाल झबरे, दृष्टि पैनी, फटी लुंगी नग्न तन
किन्तु अन्तर्दीप्‍त था आकाश-सा उन्मुक्त मन
उसे मरने दिया हमने, रह गया घुटकर पवन
अब भले ही याद में करते रहें सौ-सौ हवन ।


बाबा नागार्जुन की प्रकाशित कविता संग्रह

  • युगधारा
  • सतरंगे पंखों वाली
  • प्यासी पथरायी आँखें
  • हजार-हजार बाहों वाली
  • तुमने कहा था
  • तालाब की मछलियाँ
  • इस गुब्बारे की छाया में
  • खिचड़ी विप्लव देखा हमने
  • पुरानी जूतियों का कोरस
  • अपने खेत में
  • भूल जाओ पुराने सपने
  • ऐसे भी हम क्या! ऐसे भी तुम क्या!!
  • आखिर ऐसा क्या कह दिया मैंने
  • रत्नगर्भ

उपन्यास

  • रतिनाथ की चाची
  • बलचनमा
  • नयी पौध
  • बाबा बटेसरनाथ
  • दुःखमोचन
  • वरूण के बेटे
  • जमनिया का बाबा
  • गरीबदास
  • उग्रतारा
  • कुंभीपाक
  • हीरक जयन्ती

बाबा नागार्जुन जी की शैली

नागार्जुन जी की शैली पर उनके व्यक्तित्व की अमिट छाप है. वे अपनी बात अपने ढंग से कहते है, इसलिए उनकी काव्य शैली किसी से मिल नहीं खाती। उनकी कवितायें प्रगति और प्रयोग के मणिकांचन संयोग के कारण एक प्रकार के सहज भाव सौंदर्य से दीप्त हो उठी है.

वे अपनी ओर से अपनी शैली में भाषा का न तो श्रृंगार करते दीख पड़ते है और न रस- परिपाक की योजना का अनुष्ठान करते है. उनके भाव स्वयं ही अपनी अभिव्यक्ति के अनुकूल अपनी भाषा के रूप-निर्माण कर उसमें रस की प्रतिष्ठा कर लेते हैं इसलिए उनकी शैली स्वाभाविक और पाठकों के हृदय तत्सम्बन्धी भावनाओं को उद्दीप्त करनेवाली होती है. उन्होंने अधिकांशतः मुक्तक काव्यों की ही रचना की है.

मुक्तक काव्य दो प्रकार के होते है – (1 ) भाव-मुक्तक और (2 ) प्रबंध मुक्तक।
भाव मुक्तक दो प्रकार के होते है – (i ) गेय और (ii ) सुपाठ्य। नागार्जुन जी की अधिकाँश भाव-मुक्तक सुपाठ्य हैं. उनके सुपाठ्य भाव-मुक्तक उनकी भावाभिव्यक्ति के अनुरूप कई प्रकार होते है. कुछ भाव मुक्तकों में प्रगति और प्रयोग का मणिकांचन संयोग है, कुछ में प्रगतिवादी स्वर मुखरित हो उठा है, कुछ में ग्राम्य एवं नागरिक जीवन का संघर्षमय परिस्थितियों का यथार्थ चित्रण है, कुछ में प्रणय-निवेदन है, कुछ में प्रकृति चित्रण है और कुछ में शिष्ट-गंभीर हास्य तथा सूक्ष्म तीखे व्यंग की सृष्टि है. अपने मुक्तकों में उन्होंने मात्रिक छंदों को स्थान देने के साथ अतुकांत छंदों को भी स्थान दिया है. “युगधारा” में उनकी काव्य-शैली की समस्त विशेषताएं देखी जा सकती है. उनकी काव्य-शैली में न तो अलंकारों के प्रयोग के प्रति विशेष आग्रह है और न रस-परिपाक के प्रति। फिर भी अलंकारों उपमा, उत्प्रेक्षा, अनुप्रास आदि के अनेक उदाहरण मिलते है. रसों में श्रृंगार, करूणा, हास्य, वीर, रौद्र, शांत आदि की सृष्टि स्वाभाविक ढंग से हुई है. नागार्जुन जी ने अपने काव्य विषय को तत्सम्बन्धी प्रतीकों के माध्यम से उभरने में अच्छी सफलता प्राप्त की है. उन्होंने अपने स्वतंत्र व्यक्तित्व की भाँति अपनी काव्य-शैली को भी स्वतंत्र रखने की चेष्टा की है.

बाबा नागार्जुन जी की भाषा

नागार्जुन जी की भाषा अधिकांशतः लोक भाषा के अधिक निकट है. इसलिए उनकी भाषा सहज, सरल, बोधगम्य, स्पष्ट, स्वाभाविक और मार्मिक प्रभाव डालनेवाली है. कुछ थोड़ी-सी कविताओं में संस्कृत के किलष्ट तत्सम, विसतन्तु, मदिरारूण, उन्माद आदि शब्दों का प्रयोग अधिक मात्रा में अवश्य किया गया है, किन्तु ऐसे शब्दों के प्रयोग से उनकी भाव अभिव्यक्ति में बाधा नहीं पड़ती है.

संस्कृत, पाली और प्राकृत भाषाओं के ज्ञाता होकर भी उनमें पांडित्य-प्रदर्शनकी लालसा नहीं है. जिन कविताओं में सस्कृत की किलष्ट -तत्समों की अधिकताहै उनमें भी पांडित्य-प्रदर्शन के प्रति उनका आग्रह न होकर भाव अभिव्यक्ति के अनुरूप भाषा की प्रतिष्ठा करने का स्वाभाविक प्रयास है. उन्होंने अपनी भाषा में तद्भव तथा ग्रामीण शब्दों का भी यत्र-तत्र प्रयोग किया है. किन्तु ऐसे शब्द उनकी भाव अभिव्यक्ति में बाधक न होकर उसमें एक विविध प्रकार की मिठास उतपन्न करते हैं. कुछ कविताओं को छोड़कर उन्होंने अपनी शेष कविताओं में लोक-मुख को वाणी दी है. उनकी भाषा में न तो शब्दों की तोड़-मरोड़ है और न उस पर मैथिली का प्रभाव है.

बाबा नागार्जुन की मृत्यु

5 नवम्बर, 1998 में बाबा नागार्जुन का स्वर्गवास हो गया लेकिन आज भी उनकी रचनाएं युवाओं के लिए प्रेरणा है कि उन्हें हमेशा सच के साथ खड़ा होना चाहिए. देश के राजनीतिक और सामजिक समस्याओं पर बिना डरे बोलना चाहिए। आज भी बाबा नागार्जुन को याद करके करोड़ो आँखे नम होती है.

FAQs

Q – नागार्जुन का जन्म कहाँ हुआ था?

A – बाबा नागार्जुन का जन्म ग्राम – सतलखा, जिला – मधुबनी, बिहार, भारत में हुआ था.

Q – नागार्जुन का जन्म कब हुआ?

A – 30 जून, 1911

Q – नागार्जुन मैथिली में किस नाम से रचना करते थे?

A – बाबा नागार्जुन मैथिली में “यात्री” नाम से रचना करते थे.

Q – नागार्जुन की मृत्यु कब हुई?

A – 5 नवंबर, 1998

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