गांव की कहावतें | ग्रामीण कहावतें ( Village Rural Proverbs in Hindi ) – गाँव जहाँ शुद्ध हवा, शुद्ध वायु और अपने खेतों की उगाई शुद्ध खाद्य सामग्री मिलती है. गाँव में रहने वाले लोगो के पास पैसा थोड़ा काम होता है लेकिन वे अपने जीवन में बड़ा ही खुश रहते है. सिर्फ तीन चीजें है जो शहर में लोगो को रहने के लिए मजबूर करती है. पैसा कमाना पहली वजह है, बच्चों की अच्छी शिक्षा दूसरी वजह है और अच्छी स्वास्थ्य सुविधा तीसरी वजह है. लेकिन गावों में भी ये सुविधाएं धीरे-धीरे बढ़ रही है. शहर के बहुत सारे लोग गावों में जमीन ढूंढ रहे ताकि जीवन का कुछ समय शुद्ध वातावरण में जी सके.
गाँव के लोग सीधे-सादे और बड़े ही खुश मिजाज के होते है. शहर में रहने वालों के चेहरे पर ही उदासी और परेशानी दिखने लगते है और वो जबरदस्ती चेहरे पर मुस्कुराह लाते है. अगर आपका कोई घर या मकान गांव में हो तो जरूर कुछ दिन वहां गुजार कर जीवन के असली आनंद का अनुभव करे. गाँव की सुबह बड़ी ही प्यारी होती है.
गाँव के लोग किसी बड़ी बात को कम शब्दों में या किसी मुहावरें या कहावत के जरिये बड़ी आसानी से कह देते है. शायद आप ने इन मुहावरों को सुना नहीं होगा। आइयें पढ़ते है उन कहावतों को जिन्हे गाँव या ग्रामीण क्षेत्रों में इस्तेमाल किया जाता है.
गाँव की कहावतें
न आगे नाथ,
न पीछे पगहा।
अर्थ – जिस व्यक्ति का परिवार ना हो या जिस व्यक्ति के पत्नी और बच्चे ना हो.
इस कहावत का प्रयोग उन लोगो के लिए किया जाता है जिसका कोई परिवार ना हो या वो व्यक्ति अपने परिवार से कोई मतलब ना रखता हो. कई बार इस मुहावरें का प्रयोग ऐसे लोगो के लिए भी किया जाता है जिन लोगो के पत्नी और बच्चे नहीं होते है, लेकिन परिवार होता है.
जेकर जेतन जतन,
वोकर वतन पतन.
अर्थ – ज्यादा सुविधा देना हानिकारक होता है.
इस कहावत का प्रयोग गांव वाले लोग तब करते है जब किसी अमीर घर का लड़का बहुत सुख-सुविधाओं और अच्छा खान-पान होने के बावजूद भी बीमार होता रहता है. जबकि एक गरीब का बच्चा मिट्टी में खेलता है और समय से खाना भी नहीं पाता फिर भी स्वस्थ्य होता है. जरूरत से ज्यादा सुख सुविधाएं भी हानिकारक होती है.
ग्रामीण कहावतें
काम के ना काज के,
दुश्मन अनाज के.
अर्थ – आलसी व्यक्ति
इस कहावत का प्रयोग गाँव के लोग उनके लिए करते है जो लोग सुबह-शाम भोजन करते है और कोई काम नहीं करते है. ऐसे लोगो के लिए भी किया जाता है जो दिन भर खाते है और सोते है.
घर फूटे,
गंवार लूटे
अर्थ – घर के झगड़े का लाभ दुसरे उठाते है.
इस कहावत एक प्रयोग उन स्थानों पर किया जाता है जब एक ही घर के लोग आपस में लड़ते है और उसका लाभ उनके आस-पास रहने वाले लोग उठाते है. या घर में झगड़ा होने पर पुलिस आती है और दोनों से पैसा लेकर चली जाती है तब इस मुहावरें का प्रयोग करते है.
Village Proverbs in Hindi
त्रिया चरित्र न जानै कोय
खसम मारि कै सत्ती होय.
अर्थ – स्त्री को कोई नहीं जान सका है.
इस कहावत का प्रयोग लोग तब करते है जब कोई औरत कोई ऐसा गलत कार्य कर देती है जिसकों किसी की उम्मीद ना हो.
बाप पाद न पावे,
पूत शंख बजावे।
अर्थ – जब पुत्र किसी कार्य को पिता से अच्छा करने लगे तब इसका प्रयोग करते है
Gaanv Kee Kahavaten
सुखिया सुख के आगे,
दुखिया क दुःख का जाने।
अर्थ – अमीर व्यक्ति गरीब का दुःख नहीं समझ सकता।
इस कहावत का प्रयोग तब किया जाता है जब कोई अपने दुःख को किसी से कहता है और वह कोई मदत नहीं करता है. ऐसे लोगो के लिए भी प्रयोग किया जाता है जिन्हें दूसरों के दुःख, तकलीफ या मुसीबत से कोई लेना-देना नहीं होता है.
गुरु गुड ही रह गयेन,
चेला चीनी होई गयेन
अर्थ – शिष्य का गुरू से अधिक गुणवान होना।
इस कहावत का प्रयोग तब किया जाता है जब कोई व्यक्ति किसी को कोई सीख या शिक्षा देता है और वह व्यक्ति उस सीख या शिक्षा से छोटी या बड़ी सफलता प्राप्त कर लेता है. जो सफलता सीख या शिक्षा देने वाला व्यक्ति नहीं प्राप्त कर पाता है.
Rural Proverbs in Hindi
राम के लिखल रहल वन,
और कैकयी क अपयश।
अर्थ – भाग्य का लिखा स्वीकार करना
इस कहावत का प्रयोग तक किया जाता है किसी घटना के होने पर किसी को जिम्मेदार ना ठहराकर, उसे भाग्य का लिखा मान लेना।
मन मोर महुवा
चित्त भुसैले
अर्थ – मन ना लगना
जब किसी का पढ़ाया या किसी काम में मन नहीं लगता है तब इस मुहावरें का प्रयोग किया जाता है. बहुत बच्चें ऐसे होते है जो पढ़ाई के लिए किताब खोल लेते है और दिमाग में कुछ और ही सोचते है. ऐसे लड़को पर यह कहावत बड़ा ही सटीक बैठता है.
भोजपुरी कहावत
मोर भुखिया मोर माई जाने,
कठवत भर पिसान साने।
अर्थ – पुत्र को उसकी माँ से ज्यादा कोई प्यार नहीं कर सकता है.
एक माँ बिना देखे ही अपने बच्चे से प्रेम करने लगती है. जब बच्चा कुछ भी नहीं बोलता है तब भी उसकी जरूरतों को समझ लेती है. बच्चा बड़ा होकर अच्छा बने या बुरा लेकिन माँ का प्रेम कभी कम नहीं होता है.
खेलब ना खेले देब,
खेलिया देब बिगाड़।
अर्थ – ईर्ष्या के कारण झगड़ा करना
इस कहावत का प्रयोग ग्रामीण इलाको में काफी किया जाता है. गाँव में बहुत से लोग ऐसे होते है जो बेवजह या ईर्ष्या की वजह से झगड़ा करते है. उनके लिए इस मुहावरें का प्रयोग किया जाता है.
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