गधे पर कविता | Donkey Poem in Hindi – इस आर्टिकल में “ओमप्रकाश आदित्य जी” की कविता “इधर भी गधे है उधर भी गधे है” दी गई है. गधे पर पढ़ी और सुनी अबतक की मेरी सबसे बेहतरीन कविता है. इस कविता को आप जरूर पढ़े.
गधे पर कविता | Donkey Poem in Hindi
इस कविता को जब मैंने पहली बार Youtube पर सुना तो मुझे बड़ा ही अच्छा लगा. आपको जानकार यह आश्चर्य होगा कि इस कविता को मैंने 10 से 12 बार सुना। यह आपको सुनने में मजा तो आएगा। ओमप्रकाश आदित्य जी ने शब्दों का कितना बेहतरीन इस्तेमाल किया है. यह केवल एक साहित्य प्रेमी का ही हृदय समझ सकता है.
इधर भी गधे है उधर भी गधे है | ओमप्रकाश आदित्य जी | Gadhe Par Kavita
इधर भी गधे हैं, उधर भी गधे हैं
जिधर देखता हूं, गधे ही गधे हैं
गधे हँस रहे, आदमी रो रहा है
हिन्दोस्तां में ये क्या हो रहा है
जवानी का आलम गधों के लिये है
ये रसिया, ये बालम गधों के लिये है
ये दिल्ली, ये पालम गधों के लिये है
ये संसार सालम गधों के लिये है
पिलाए जा साकी, पिलाए जा डट के
तू विहस्की के मटके पै मटके पै मटके
मैं दुनियां को अब भूलना चाहता हूं
गधों की तरह झूमना चाहता हूं
घोडों को मिलती नहीं घास देखो
गधे खा रहे हैं च्यवनप्राश देखो
यहाँ आदमी की कहाँ कब बनी है
ये दुनियां गधों के लिये ही बनी है
जो गलियों में डोले वो कच्चा गधा है
जो कोठे पे बोले वो सच्चा गधा है
जो खेतों में दीखे वो फसली गधा है
जो माइक पे चीखे वो असली गधा है
मैं क्या बक गया हूं, ये क्या कह गया हूं
नशे की पिनक में कहां बह गया हूं
मुझे माफ करना मैं भटका हुआ था
वो ठर्रा था, भीतर जो अटका हुआ था
– ओमप्रकाश आदित्य जी
Dr Kumar Vishwas | Gadha | Om Prakash Aditya
ओमप्रकाश आदित्य जी की कविता “इधर भी गधे है उधर भी गधे है” डॉ. कुमार विश्वास की आवाज में सुने। इस कविता का आनंद थोड़ा और बढ़ जाएगा।
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