What are happiness and sorrow in Hindi ( Sukh-Duhkh Kya Hain? ) – विश्व में प्रत्येक जीव सुख की खोज में हैं. प्रभु ने हितार्थ अनेक प्रकार के पदार्थों की रचना की हैं. जिनका रसास्वादन हम इन्द्रियों के माध्यम से करते हैं. यहीं कारण है कि नाना प्रकार के दुःख प्राप्त होने के पश्चात भी कोई मरना नहीं चाहता, क्योंकि वह दुःख के पश्चात निश्चित सुख की आशा में रहता हैं.
वैदिक संस्कृति संसारगत ऐश्वर्यों को जीवन यात्रा में साधन मानती है. आज तो मनुष्य ने पाने सुख के लिए आश्चर्यजनक आविष्कार कर लिए है. ये सुख, विषतुल्य व जीवन यात्रा में बाधक तब बन जाते हैं, जब ये साधन न रहकर साध्य बन जाते हैं. मनुष्य इन क्षणिक सुखो को ही जीवन लक्ष्य मान इनमें रम जाता है, विषयासक्त हो जाता हैं. आत्मा इस शरीर रुपी रथ जिसमें बुद्धि कोचवान, मन लगाम, और इन्द्रियां घोड़े है पर अपना नियंत्रण खोकर, विषयों रूप, रस, गंध, स्पर्श तथा सबके सेवक बन जाते हैं. हम यह भूल जाते हैं कि सुख तो क्षणिक है. यह वह मेहमान है जो आज आया है कल चला जाएगा.
पीड़ा का होना, स्वतन्त्रता का न होना, अभिलाषाओं की पूर्ति न होना, जन्म मरण के बंधन में पड़ना दुःख हैं. दुखों का मूल कारण क्लेश है. संसार के अनित्य पदार्थों को नित्य मानना, दुःख देने वाले विषयों को सुखदायी मानना तथा मन, अहंकार को ही आत्मा मानना, अपवित्र को पवित्र मानना, राग, द्वेष, लोभ, मोह, मत्सर, आदि ही दुष्कर्मों के करने वाले तथा दुखों के कारण बनते हैं. पाप ही दुःख का मूल कारण हैं. इसी से चित्त में कुवासनाए उत्पन्न होती हैं. अतएव मनुष्य को चाहिए कि परमात्मा में लीं होकर मन को वश में करे. इस प्रकार वर्तमान जीवन में दुष्कर्म न कर अगले जन्मों में दुःख को न प्राप्त हो.
दुःख तीन प्रकार के होते हैं. | Duhkh Teen Prakaar Ke Hote Hain.
- अध्यात्मिक ( मानसिक तथा शारीरिक )
- अधिभौतिक
- अधिदैविक
महर्षि पातंजलि ने योगदर्शन में चार प्रकार के दुःख बताये हैं. परिणाम दुःख ( Parinaam Duhkh ), ताप दुःख ( Taap Duhkh ), संस्कार दुःख ( Sanskaar Duhkh ) तथा गुणवृत्ति विरोध दुःख ( Gunavrtti Virodh Duhkh ). इन दुखों से ज्ञान द्वारा छूटने का प्रयास करना चाहिए.
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