Quit India Movement in Hindi | भारत छोड़ो आन्दोलन की पूरी जानकारी

Quit India Movement in Hindi ( Bharat Chhodo Andolan in Hindi ) – भारत छोड़ो आन्दोलन क्या हैं? भारत छोड़ो आन्दोलन के कारण और इसके महत्व क्या थे? इस आन्दोलन की असफ़लता के क्या कारण थे? इन सबकी जानकारी के लिए इस पोस्ट को जरूर पढ़े.

भारत छोड़ो आन्दोलन क्या हैं? | What is Quit India Movement in Hindi | Bharat Chhodo Andolan Kya hain?

क्रिप्स मिशन की असफलता और देश में व्याप्त निराशा से चिंतित होकर गांधी जी ने अनुभव किया कि भारत को निराशा से निकलने और स्वतन्त्रता प्राप्त करने के लिए के और युद्ध लड़ना होगा. “हरिजन ( Harijan )” नामक पत्रिका के एक लेख में गाँधी जी ने लिखा कि – “भारत को ईश्वर के भरोसे छोड़कर चले जाओ और यदि तुम्हारे लिए यह बहुत बड़ी बात है तो उसे अराजकता में छोड़ दो परन्तु चले जाओ.” उन्होंने एक दुसरे लेख में लिखा कि भारत के लिए उसके परिणाम कुछ भी क्यों न हो भारत और ब्रिटेन की वास्तविक सुरक्षा समय रहते इंग्लैण्ड के भारत छोड़ देने में ही हैं, क्योंकि उस समय जापान तेजी से विजय प्राप्त करता हुआ म्यांमर और भारत की ओर बढ़ रहा था, वह कभी भी भारत पर आक्रमण कर सकता था. वह इसलिए कि भारत पर ब्रिटिश शासन था और उसकी शत्रुता भारत से नहीं इंग्लैंड से थी.

यदि ऐसे समय में कांग्रेस हाथ पर हाथ रखे रह जाती तो देश में कायरता का वातावरण बन जाता. अतः 5 जुलाई, 1942 ई. को गांधी जी ने उद्घोष किया – “अंग्रेजो भारत छोड़ो ( British Quit India ).” उन्होंने “हरिजन” नामक पत्रिका में लिखा कि अब समय आ गया है कि जब अंग्रेजों भारत छोड़ो वह भी भारतीयों के लिए, जापानियों के लिए नहीं. गांधी जी का यह लेख भारत छोड़ो भारत भर में गूँज उठा.

भारत छोड़ो आन्दोलन, द्वितीय विश्वयुद्ध के समय 9 अगस्त, 1942 में आरम्भ किया गया था, जिसका लक्ष्य अंग्रेजी शासन को समाप्त करके स्वतन्त्रता प्राप्त करना था. यह आन्दोलन महात्मा गांधी द्वारा अखिल भारतीय कांग्रेस समिति के मुंबई अधिवेशन में शुरू किया गया था. इस आन्दोलन का नेतृत्व महात्मा गांधी ( Mahatma Gandhi ) ने किया था. इस आन्दोलन के कारण अंग्रेजी सरकार की तख्त हिलने लगी और अंग्रेजों को यह एहसास हो गया कि अधिक समय तक भारत में नहीं रह सकते.

भारत छोड़ो आन्दोलन के कारण | Cause of Quit India Movement in Hindi | Bharat Chhodo Andolan Ke Karan

  1. क्रिप्स मिशन की असफ़लता – क्रिप्स वार्ता असफल होने के कारण एवं क्रिप्स प्रस्तावों को वापस लिए जाने और सर स्टैफर्ड क्रिप्स को इंग्लैण्ड बुलाये जाने से भारत में घोर निराशा के वातावरण का जन्म हुआ. क्रिप्स के इस कथन से कि “स्वीकार करो अथवा छोड़ दो” से यह स्पष्ट था कि ब्रिटिश सरकार भारत के संवैधानिक गतिरोध को दूर करने की इच्छुक नहीं हैं, वह केवल दिखावा कर रहीं हैं. यहीं नहीं, मिशन की असफ़लता का उत्तरदायित्व कांग्रेस पर डाला गया. अतः क्रिप्स प्रस्ताव का उद्देश्य अपने युद्ध सहयोगियों – अमेरिका और चीन को संतुष्ट करना था न कि भारत को. ऐसी परिस्थितियों में कांग्रेस ने जनता में फैली निराशा को दूर करने के लिए एवं स्वतन्त्रता प्राप्त करने के लिए एक नया आन्दोलन प्रारम्भ करने का निश्चय किया, जिसे हम “भारत छोड़ो” आन्दोलन के रूप में जानते हैं. – क्रिप्स मिशन या क्रिप्स प्रस्ताव की पूरी जानकारी 
  2. म्यांमार में भारतीयों के प्रति अमानवीय व्यवहार – म्यांमार पर जापान की विजय के बाद ही म्यांमार से जो भारतीय शरणार्थी आ रहे थे, उन्होंने यहाँ आकर बताया कि भारतीयों और यूरोपियनों के बीच भेदभाव पैदा किया गया हैं. भारतीयों को आने के लिए पृथक और कष्टदायक रास्ते दिए गये थे और उनके लिए अगल मार्ग दिए गये थे. इसके साथ-साथ भारतीय शरणार्थी से अपमानजनक व्यवहार किया जा रहा था कि वे घटिया जाति से सम्बन्धित हो. इस घटना ने भी गाँधी जी को आन्दोलन प्रारम्भ करने के लिए प्रेरित किया.
  3. शोचनीय आर्थिक स्थिति – इस समय वस्तुओं के मूल्य बहुत अधिक बढ़ गये थे. इससे जनता के आर्थिक कष्टों में भी वृद्धि होने से उनमे ब्रिटिश शासन के प्रति असंतोष की भावना बढ़ गयी थी. युद्ध की स्थिति और वस्तुओं के मूल्य बेतहाशा बढ़ते जाने के कारण लोगों का कागज के नोटों के प्रति विश्वास समाप्त होता जा रहा था. देश में चारों तरफ असंतोष बढ़ रहा था जिसके कारण गाँधी जी ने विवश होकर “भारत छोड़ो” आन्दोलन प्रारम्भ किये.
  4. पूर्वी बंगाल में आतंक का राज्य – उस समय पूर्वी बंगाल में भय और आतंक का राज्य था. सरकार ने वहाँ सैनिक उद्देश्य के लिए अनेक किसानों की भूमि पर अपना कब्जा क्र लिया था. इसी प्रकार उन सैकड़ों देशी नावों को नष्ट कर दिया गया जिनसे हजारों परिवार पलते थे. शासन के इन कार्यों से लोगों के दुःख बहुत बढ़ गये थे. इन कष्टों से दुःखी होकर गांधी जी ने ब्रिटिश सरकार के विरूद्ध अपना अन्तिम अस्त्र भारत छोड़ो आन्दोलन के रूप में प्रयोग करने का निश्चय किया.
  5. जापान के आक्रमण का भय –द्वितीय विश्व-युद्ध में जापान की सेनाएं निरंतर सिंगापुर, मलाया, म्यांमार में अंग्रेजो को पराजित करके भारत की ओर बढ़ रही थी. जापान की दुश्मनी इंग्लैण्ड से थी इसलिए “भारत छोड़ो” आन्दोलन करने का यह सबसे सही समय था. अंग्रेजो में इतना दम नही था कि भारतीयों के सहयोग के बिना जापान का मुकाबला कर सके.

भारत छोड़ो आन्दोलन की असफ़लता के कारण | Causes of Failure of the Quit India Movement in Hindi | Bharat Chhodo Andolan Ki Asfalta Ke Karan

महात्मा गांधी द्वारा अब तक किये गये आंदोलनो में “भारत छोड़ो आन्दोलन ( Bharat Chhodo Andolan )” सबसे बड़ा आन्दोलन था. यह भारतीय स्वाधीनता के लिए किया गया महानतम प्रयास था, लेकिन आन्दोलन का उद्देश्य पूर्ण न हो सका.

  • आन्दोलन की योजना एवं संगठन – ‘भारत छोड़ो आन्दोलन’ की असफ़लता का प्रमुख कारण यह माना जाता है कि गाँधी जी द्वारा स्वयं भारत छोड़ो आन्दोलन की रूपरेखा और कार्यक्रम स्पष्ट नहीं था.
  • सरकारी कर्मचारियों और उच्च वर्गों की अंग्रेजी सरकार के प्रति वफ़ादारी – “भारत छोड़ो आन्दोलन” की असफलता का मुख्य कारण था.
  • भारतीय राजनीतिक दलों और वर्गों का आन्दोलन विरोधी रवैया – भारतीय साम्यवादी दल और मुस्लिम लीग जैसे राजनीतिक दलों ने आन्दोलन को सहयोग देने के स्थान पर आन्दोलन का खुलकर विरोध किया. अकाली दल और हिन्दू महासभा तथा समाज के कुछ उच्च और दलित वर्गों का आन्दोलन के प्रति असहयोग का रवाया भी इस आन्दोलन की असफलता का कारण रहा.
  • आन्दोलन का हिंसात्मक – रूप ले लेना भी इस आन्दोलन के असफ़ल होने का एक कारण हैं.
  • आंदोलनकारियों की तुलना में शासन की कई गुना शक्ति और कठोरता – भारत छोड़ो आन्दोलन के समय आंदोलनकारियों की तुलना में शासन की शक्ति कई गुना अधिक थी. आंदोलनकारियों की न तो कोई गुप्तचर व्यवस्था थी और न ही एक स्थान से दुसरे स्थान संदेश तक भेजने के साधन नहीं थे. ब्रिटिश सरकार की आर्थिक ताकत अधिक होने के कारण भी यह आन्दोलन असफल रहा.

भारत छोड़ो आन्दोलन का महत्व | Importance of the Quit India Movement in Hindi | Bharat Chhodo Andolan Ka Mahatv

यद्यपि “भारत छोड़ो आन्दोलन” अपने मूल लक्ष्य को प्राप्त नहीं क्र सका लेकिन इस आन्दोलन ने भारत की जनता में एक ऐसी अपूर्व जागृति उत्पन्न कर दी जिससे ब्रिटेन के लिए भारत पर लम्बें समय तक शासन करना सम्भव नहीं रहा. इस आन्दोलन के दूरगामी महत्वपूर्ण परिणाम इस प्रकार हैं.

  • इन आन्दोलन ने भारतीय जनता को पूर्ण स्वतन्त्रता का दीप प्रज्वलित करने के प्रेरणा दी.
  • आन्दोलन ने देश की जनता में असाधारण जागृति उत्पन्न कर दी.
  • आन्दोलन के कारण जनता में सरकान का सामना करने के लिए उनमें साहस और शक्ति में वृद्धि हुई.
  • आन्दोलन का क्षेत्र और प्रभाव देशव्यापी था. ब्रिटिश सरकार को स्पष्ट हो गया कि दमन व अत्याचार असंतोष को नहीं रोक सकेंगे.
  • भारत छोड़ो आन्दोलन ने विदेशों में भी भारत की स्वतन्त्रता का वातावरण बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभायी. स्वयं ब्रिटिश जनमत को भारतीयों ने पाने पक्ष में किया.
  • इस आन्दोलन से उत्पन्न चेतना के परिणामस्वरूप सन् 1946 ई. में जल सेना का विद्रोह हुआ जिसने भारत में ब्रिटिश शासन पर और भयंकर चोट की.

भारत छोड़ो आन्दोलन से सम्बन्धित अन्य रोचक तथ्य | Interesting Facts related to Quit India Movement

  • सन् 1942 का भारत छोड़ो आंदोलन भारत के इतिहास में ‘अगस्त क्रांति ( August Kranti )‘ के नाम से भी जाना जाता रहा हैं.
  • सन् 1857 के पश्चात देश की आजादी के लिए चलाए जाने वाले सभी आंदोलनों में सन् 1942 का ‘भारत छोड़ो आंदेालन’ सबसे विशाल और सबसे तीव्र आंदोलन था.
  • 1942 ई. में वर्धा में कांग्रेस की बैठक हुई और गांधीजी तथा सरदार पटेल के प्रयास से “अहिंसक विद्रोह (Nonviolent Protest)” का कार्यक्रम पारित हुआ. पुनः 8 अगस्त, 1942 ई. को अबुल कलाम आजाद की अध्यक्षता में बम्बई कांग्रेस महासमिति की बैठक हुई जिसमें भारत छोड़ो प्रस्ताव को स्वीकृति दी गई.
  • सरकारी आंकड़ों के अनुसार इस जनान्दोलन में 940 लोग मारे गए थे और 1630 घायल हुए थे जबकि 60229 लोगों ने गिरफ्तारी दी थी.
  • वायसराय लिनलिथगो (Viceroy Linlithgow) ने इसका सारा दोष गाँधीजी पर मढ़ दिया. उसने कहा कि गाँधीजी ने हिंसा को निमंत्रण दिया है.
  • अंग्रेजो ने गांधी जी को अहमदनगर किले में नजरबंद कर दिया था.

भारत छोड़ो आन्दोलन की समाप्ति | End of Quit India Movement | Bharat Chhodo Andolan Ki Samapti

सन् 1944 ई. से भारत पुनः शान्ति पथ पर अग्रसर हो गया, किन्तु अब कांग्रेस के नेतृत्व का प्रभाव कम हो गया था और भारत छोड़ो आन्दोलन लगभग समाप्त हो चुका था.

Latest Articles