असहयोग आन्दोलन 1920 | Non-Cooperation Movement in Hindi

Non-Cooperation Movement Causes Beginning End in Hindiप्रथम विश्वयुद्ध ( First World War ) समाप्त होने के बाद एक नये युग का आरम्भ हुआ जिसे हम “गाँधी युग ( Gandhi Yug )” कहते हैं. राजनीति में प्रवेश करने से पहले महात्मा गांधी ( Mahatma Gandhi ) जी दक्षिण अफ्रीका में सत्य, अहिंसा और सत्याग्रह का सफ़ल प्रयोग कर चुके थे. वे अपने राजनीतिक गुरू श्री गोपाल कृष्ण गोखले ( Gopal Krishna Gokhale ) की भांति अंग्रेजों को एक न्यायप्रिय जाति मानते थे, इसलिए उन्होंने प्रथम विश्व-युद्ध के दौरान भारतीय जनता से ब्रिटिश सरकार को धन-जन की सहायता की अपील करते हुए कहा था कि – “साम्राज्य की भागीदारी लक्ष्य है. हमें सामर्थ्य के अनुसार कष्ट उठाना चाहिए और साम्राज्य की रक्षा में अपनी जान तक दे देनी चाहिए. यदि साम्राज्य नष्ट हो जाएगा तो उसके साथ ही हमारी अभिलाषाएं भी नष्ट हो जायेंगी. अतः साम्राज्य की रक्षा के कार्य में सहयोग देना स्वराज्य प्राप्ति का सरलतम और सीधा मार्ग हैं.

इस प्रकार गांधी जी अपील पर भारतीय जनता ने ब्रिटिश साम्राज्य को भरपूर सहयोग प्रदान किया. इसी के प्रतिफल स्वरूप ब्रिटिश शासन ने सन् 1915 ई. में गांधी जी को ‘केसर-ए-हिन्द ( Kaisar-i-Hind )‘ की उपाधि से समानित कर उन्हें एक स्वर्ण पदक दिया गया. युद्ध समाप्त होने के बाद एक वर्ष के भीतर ही कुछ ऐसी घटनाएँ घटित हुई कि गाँधी जी सहित भारतीय जनता को यह अनुभव होने लगा कि प्रथम विश्व युद्ध के दौरान भारतीयों के प्रति अपनी दया की नीति अंग्रेजों की एक कूटनीति थी.

गांधी जी ने सन् 1917 में चम्पारन के किसानों को अंग्रेजों के अत्याचारों से मुक्ति दिलाई. 1918 ई. में उन्होंने अहमदाबाद के मिल मालिकों और मजदूरों के बीच समझौता कराने के लिए अनशन प्रारम्भ कर दिया, जिसमें उन्हें सफलता मिली और 1918 में खेड़ा संघर्ष में भी अपना सहयोग दिया जिसमे सफलता मिली.

असहयोग आन्दोलन के कारण | Causes of Non-cooperation Movement in Hindi

  1. प्रथम विश्वयुद्ध और अंगेजों की कूटनीति – अंग्रेजी सरकार भारत को स्वतंत्र करने का आश्वासन देकर प्रथम विश्व युद्ध में भारतीय जन-धन का प्रयोग किया और बाद में “भारतीय शासन अधिनियम” पारित कर दिया जो भारतीय जनता के आशाओं के बिपरीत था.
  2. रौलेट एक्ट – प्रथम विश्व युद्ध के बाद भी ब्रिटिश सरकार क्रांतिकारियों पर नियन्त्रण के नाम पर अपना दमन-चक्र निरंतर बनाये रखना चाहती थी, जबकि युद्ध की समाप्ति के बाद इसकी कोई आवश्यकता नहीं थी. रौलेट एक्ट को आसान शब्दों में इस प्रकार भी कहा जा सकता हैं कि इस अधिनियम ने अपील, वकील और दलील की व्यवस्था का अंत कर दिया. रौलेट एक्ट की पूरी जानकारी | Rowlatt Act in Hindi
  3. जलियावाला बाग़ हत्या काण्ड – जलियावाले बाग़ हत्याकाण्ड में हुए दस मिनट की लगातार फायरिंग में कई हजार लोगों की जाने गई जिसमे वृद्ध, महिलाये और बच्चे भी थे. इस हत्याकांड से भारतीयों का मन में अंग्रेजों के प्रति क्रोध था. जलियांवाला बाग़ हत्याकांड की पूरी जानकारी | Jallianwala Bagh Hatya Kand in Hindi
  4. हण्टर समिति प्रतिवेदन – ब्रिटिश शासन ने पंजाब राज्य की घटना से उत्पन्न भारतीय जनता के क्रोध को शांत करने के लिए एवं गांधी द्वारा दोषी अपराधियों के विरूद्ध कार्यवाही की मांग को देखते हुए हण्टर समिति नियुक्त की गई. इस समिति ने जनरल डायर के इस कुकृत्य को उचित ठहराया.
  5. खिलाफ़त आन्दोलन – युद्ध जीतने के बाद टर्की के मुसलमानों के साथ किये गये व्यवहार की वजह से भारतीय मुसलमान अंग्रेजों और अंग्रेजी शासन के खिलाफ हो गये. खिलाफत आन्दोलन की पूरी जानकारी 

असहयोग आन्दोलन का प्रारम्भ | Beginning of Non-cooperation Movement

गांधी जी ने ब्रिटिश सरकार के विरूद्ध सर्वप्रथम सन् 1920 ई. में असहयोग आन्दोलन चलाने का निर्णय लिया. महात्मा गांधी ने सर्वप्रथम अपनी उपाधि “केसर-ए-हिन्द” सरकार को वापस कर असहयोग आन्दोलन का सूत्रपात किया. उन्होंने वायसराय को यह लिखा कि – “मेरे हृदय में ऐसी सरकार के लिए कोई सम्मान और प्रेम नहीं रह सकता, जो अपनी अनैतिकता की रक्षा के लिए एक के बाद एक गलत कार्य करती चली आ रही हैं. मैंने इसलिए असहयोग का सुझाव रखा है जिससे वे लोग ऐसा करना चाहें, सरकार से सम्बन्ध विच्छेद क्र सकें और यदि वह अहिंसात्मक बना रहा तो सरकार को मार्ग बदलना होगा तथा अपनी भूलों को सुधारना होगा.” गाँधी जे के द्वारा पद त्याग कर देने पश्चात, सेठ जमनादास बजाज ने अपनी रायबहादुर उपाधि तथा मजिस्ट्रेट के पद से त्याग पत्र दे दिया. इसी क्रम में सी. आर. दास, मोतीलाल नेहरू, राजेन्द्र प्रसाद, पंडित जवाहरलाल नेहरू ( Jawaharlal Nehru ), लाला लाजपत राय ( Lala Lajpat Rai ), चितरंजन दास, आसफ अली आदि ने वकालत करना छोड़ दिया तथा सरकारी न्यायलयों का बहिष्कार किया. छात्रों ने अंग्रेजों द्वारा चलाई जा रही शिक्षण संस्थानों का बहिष्कार करके भारतीय शिक्षण संस्थानों में प्रवेश लेना प्रारम्भ कर दिया. विदेशी वस्त्रों का बहिष्कार किया गया और इन वस्त्रों की जगह-जगह होली जलाई गई. विदेशी वस्त्रों और शराब की दुकानों के बाहर प्रदर्शन किये गये.

असहयोग आन्दोलन का अंत | End of Non-cooperation Movement

5 फरवरी, 1922 ई. में भीड़ द्वारा गोरखपुर जिले में चौरी-चौरा नामक स्थान पर एक पुलिस चौकी में आग लगा दी गयी जिसमें 21 सिपाही मारे गये. इस घटना के परिणामस्वरूप 12 फ़रवरी, 1922 ई. को कांग्रेस कार्य समिति की बैठक आयोजित करके असहयोग आन्दोलन को स्थगित कर दिया गया.

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