लक्ष्मी जी के साथ गणेश जी का पूजन क्यों होता है?

Laxmi Ganesh Relation in Hindi ( Lakshmi Ji Ke Saath Ganesh Ji Ka Poojan Kyon Hota Hain ) – सांसारिक समृद्धि के साथ सुख और शान्ति के लिए शास्त्रों में लक्ष्मी को प्रसन्न कर उनका आशीर्वाद प्राप्त करना सबसे महत्वपूर्ण है. लक्ष्मी का भौतिक जीवन में शांति और समृद्धि के साथ ऐसा सम्बन्ध है कि परिवार में आने वाली बहू को गृहलक्ष्मी का नाम दिया जाता है. मान्यता है जहाँ गृहलक्ष्मी प्रसन्न है उस परिवार में सब प्रसन्न रहते है. विश्वास किया जाता है “यत्र नारी पूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवता” जहाँ नारी की पूजा होती है वहाँ देवता वास करते हैं.

प्रत्येक संसारी की या स्वाभाविक इच्छा होती है कि वह जीवन में सुख एवं समृद्धि प्राप्त करें. इसके लिए वह अनेक प्रकार के प्रयास करता है किन्तु सफलता केवल विरलों को ही मिलती हैं. जिन्हें मिलती है वो वे इसे ईश्वर की कृपा मानते है और जिन्हें नहीं मिलती वे इसके लिए भाग्य को दोषी ठहराते है परन्तु क्या उन्होंने यह कभी सोचा है कि जीवन में सुख एवं समृद्धि के लिए ईश्वरीय कृपा के साथ-साथ स्वयं के प्रयत्न भी आवश्यक हैं.

जिस प्रकार बिना तत्वों के सही अनुपात के कोई भी यौगिक नहीं बन सकता, उसी प्रकार ईश्वरीय कृपा प्राप्त करने के लिए और सुख एवं समृद्धि प्राप्त करने के लिए नियमपूर्वक विधि-विधान के साथ नियमपूर्वक लक्ष्मी का पूजन करना पड़ता है. उचित साधनों का प्रयोग किये बिना लक्ष्मी या धन प्राप्ति सम्भव नहीं. धन और वैभव प्राप्त करने के लिए उचित देवताओं का उचित ढंग से उचित समय तक आह्वान करना पड़ता है. इसके लिए शास्त्र सम्मत पूजन विधान है. लक्ष्मी की पूजा किस प्रकार से हो, इसे लेकर अलग-अलग विचार है. सबसे अधिक मान्यता जिस विचार को प्राप्त है वह यह है कि लक्ष्मी की पूजा गणेश के साथ की जानी चाहिए क्योंकि वह विघ्नविनाशक है.

गणेश जी और लक्ष्मी जी का क्या रिश्ता है? | Ganesh Je Aur Laxmi Ji Ka Kya Rishta Hai?

Laxmi Ganesh Relation in Hindi – दीपावली के दिन लक्ष्मी-गणेश की पूजा का प्रचलन है. लक्ष्मी के विषय में इस सर्वप्रचलति मान्यता पर कभी किसी ने कुछ कहने या लिखने की आवश्यकता नहीं समझी. प्रचलित लक्ष्मी-गणेश पूजन जीवन में सुख और समृद्धि के लिए आवश्यक है, विष्णु लक्ष्मी के पति है, जबकि गणेश मानस पुत्र. पुत्र के साथ आह्वान करने पर लक्ष्मीजी आराधक के पास आती अवश्य हैं, जिस प्रकार माँ-बेटे के पास आती है, उसे स्नेह प्रदान करती है. उसका पालन-पोषण करती है और बड़ा होने पर उसे जीवन के संघर्ष के लिए आगे बढ़ने के लिए प्रेरित करती है, परन्तु उसका स्थायी सम्बन्ध तो अपने पति के साथ ही होता है.

नोट – यह पोस्ट पंडित शशिमोहन बहल की पुस्तक हमारे “धार्मिक रीति-रिवाज : परम्पराओं और मान्यताओं का वैज्ञानिक आधार” से लिया गया हैं.

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