Ahmad Faraz Shayari and Biography in Hindi – अहमद फ़राज को आधुनिक उर्दू के सर्वश्रेष्ठ रचनाकारों में गिना जाता हैं. लोग इनकी ग़जलों और शायरी के दीवाने हैं. Ahmad Faraz की जीवनी और शायरी को जानने के लिए इस पोस्ट को जरूर पढ़े.
मैं दीवाना सही पर बात सुन ऐ हमनशीं मेरी
कि सबसे हाले-दिल कहता फिरूँ आदत नहीं मेरी
अहमद फ़राज की जीवनी | Ahmad Faraz Biography
मशहूर नाम – अहमद फ़राज ( Ahmad Faraz )
असली नाम – सैयद अहमद शाह
उपनाम -फ़राज
जन्म – 14 जनवरी 1931
जन्म स्थान – कोहाट, उत्तर पश्चिमी सीमान्त प्रांत, पाकिस्तान
मृत्यु – 25 अगस्त 2008
मृत्यु स्थान – इस्लामाबाद, पाकिस्तान
शिक्षा – स्नातकोत्तर (कला-उर्दु), स्नातकोत्तर (कला-फारसी)
व्यवसाय – अध्यापक और उर्दू कवि
राष्ट्रीयता – पाकिस्तानी
लेखन शैली – उर्दू गजल
लेखन विषय – प्रेम
अहमद फ़राज पेशावर विश्वविद्यालय में फ़ारसी और उर्दू विषय का अध्ययन किया था. बाद में वे वहीं प्राध्यापक भी हो गये थे. लेखन के शुरूआती दिनों में वे इकबाल की रचनाओं से प्रभावित रहे. फिर बाद में प्रगतिवादी कविता को पसंद करने लगे. कुछ ऐसी ग़जलें लिखकर मुशायरों में पढ़ी जिनके कारण उन्हें जेल भी जाना पड़ा.
अहमद फ़राज के बारें में कुछ अन्य महत्वपूर्ण जानकरियाँ | Few More Interesting Facts about Ahmad Faraz
– फ़राज को क्रिकेट का भी शौक था पर शायरी का शौक इस कदर छाया की अपने समय के ग़ालिब कहलायें.
– 1976 में, पाकिस्तान एकेडमी ऑफ लेटर्स के डायरेक्टर जनरल और बाद में उसी एकेडमी के चेयरमैन भी बने.
– पाकिस्तान सरकार ने 2004 में, उन्हें हिलाल-ए-इम्तियाज़ पुरस्कार से अलंकृत किया.
– सरकार की नीतियों से असंतुष्ट होने के कारण 2006 में यह पुस्कार लौटा दिया.
– किडनी फ़ैल होने की वजह से 25 अगस्त, 2008 को उनका निधन हो गया.
अहमद फ़राज शायरी | Ahmad Faraz Shayari
अब के हम बिछड़े तो शायद कभी ख़्वाबों में मिलें
जिस तरह सूखे हुए फूल किताबों में मिलें
Ahmad Faraz Best Shayari
आँख से दूर न हो दिल से उतर जाएगा
वक़्त का क्या है गुज़रता है गुज़र जाएगा
बंदगी हम ने छोड़ दी है ‘फ़राज़’
क्या करें लोग जब ख़ुदा हो जाएँ
ज़िंदगी से यही गिला है मुझे
तू बहुत देर से मिला है मुझे
रंजिश ही सही दिल ही दुखाने के लिए आ
आ फिर से मुझे छोड़ के जाने के लिए आ
इस से पहले कि बे-वफ़ा हो जाएँ
क्यूँ न ऐ दोस्त हम जुदा हो जाएँ
हुआ है तुझ से बिछड़ने के बाद ये मालूम
कि तू नहीं था तेरे साथ एक दुनिया थी
और ‘फ़राज़’ चाहिएँ कितनी मोहब्बतें तुझे
माओं ने तेरे नाम पर बच्चों का नाम रख दिया
अब और क्या किसी से मरासिम बढ़ाएँ हम
ये भी बहुत है तुझ को अगर भूल जाएँ हम
इस क़दर मुसलसल थीं शिद्दतें जुदाई की
आज पहली बार उस से मैं ने बेवफ़ाई की
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