अद्वितीय दानवीर कर्ण

Adviteey Daanaveer Karn Kahani in Hindiमहाभारत के महान योद्धा को दानवीर कर्ण के रूप में भी जाना जाता था. एक बार अर्जुन ने कृष्ण से पूछा, “कर्ण में ऐसा क्या जिससे वह महान एवं दानवीर हैं? इस दृष्टि से मैं उनके जैसा क्यों नहीं हूँ?

कृष्ण मुस्कुराने लगे और उन्होंने अर्जुन को शिक्षा देने का निर्णय लिया. वे किसी पर्वतमाला से होकर गुजर रहे थे. कृष्ण ने अपनी अंगुली के स्पर्श से उस पर्वत को सोने के पर्वत में बदल दिया. इसके बाद उन्होंने कहा, “अर्जुन तुम्हें इस स्वर्ण पर्वत को इस गाँव के लोगों को दे दिन चाहिए. केवल इतना ध्यान रखो कि पूरा सोना लोगों को मिल जाएँ.”

अर्जुन ने प्रसन्नतापूर्वक ग्रामीणों को बुलाया और कहा कि यह स्वर्ण दान करेंगे. इससे ग्रामीण काफी प्रसन्न हुए और वे अर्जुन की प्रशंसा करते हुए उस स्वर्ण पर्वत की ओर गये. अर्जुन बड़े गौरव के साथ अपना स्थान ग्रहण करके प्रत्येक ग्रामीण को स्वर्ण दिया. ऐसा दो दिनों तक चलता रहा. फिर भी स्वर्ण भण्डार समाप्त नहीं हुआ. अर्जुन थक गयें. उन्होंने कृष्ण से कहा कि वह विश्राम करना चाहते है क्योंकि अब और अधिक स्वर्ण दान करना संभव नहीं है.

उसके बाद कृष्ण ने कर्ण को बुलाया और उनसे स्वर्ण पर्वत का वितरण सुनिश्चित करने के लिए कहा.

विचार मंथन | Brain Storming

प्रश्न – कर्ण ने उस स्वर्ण पर्वत का वितरण कैसे किया?
उत्तर – कर्ण ने सिर्फ ग्रामीणों को बुलाया और उनसे स्वर्ण पर्वत ले जाने के लिए कहा. इसके बाद वह वहाँ से चले गये.

प्रश्न – इस कहानी से क्या शिक्षा मिलती है?
उत्तर – अर्जुन स्वर्ण दान करने के बाद भी इसके मोह में पड़े हुए थे. इसलिए उन्होंने स्वर्ण दान में स्वयं को शामिल कर लिया. उन्होंने अपने विवेक के अनुसार प्रत्येक ग्रामीण को स्वर्ण की उचित मात्रा दी. ग्रामीणों के मुख से अपनी प्रशंसा सुनकर भी वह बहुत खुश थे. दूसरी ओर कर्ण बिना किसी प्रशंसा अथवा आशीर्वाद की चाहत से लोगो को स्वर्ण पर्वत दे दिया. इस प्रकार उन्होंने ख़ुद को अद्वितीय दानवीर साबित कर दिया.

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