आह्वान करने से क्या देवता आते हैं? | Aahvaan Karane Se Kya Devata Aate Hain?

Aahvaan Karane Se Kya Devata Aate Hain? – सूर्यादि हमारी पृथ्वी से लाखों-योजन दूर हैं और लाखों गुना बड़े हैं, फिर ये डेढ़ हाथ लम्बे-चौड़े बने यज्ञकुंड अथवा पूजा स्थल पर इतनी दूर से कैसे आ सकते हैं? कई अति बुद्धिवादी लोग इस प्रकार की शंका करते हैं.

फोटोग्राफी कैमरे के एक इंच छोटे शीशे में दिल्ली का लालकिला, पूरी कुतुबमीनार और लाखों जनसमूह कैसे आ जाता हैं? कभी आपने विचार किया कि आँखों के लघुतम काले तिल में सूर्य-चाँद, पूरा आकाश नक्षत्रवली कैसे समा जाते हैं? वैसे ही यज्ञमंडप के छोटे-से कुण्ड या पूजा-स्थल पर ग्रह और नक्षत्र भी आ सकते हैं.

समस्त कर्मकाण्ड “भावनावाद” के सिद्धांत पर आधारित है. वेदमंत्रो के उच्चारण से शब्दों की ध्वनितरंगे ईथर किरणों के माध्यम से सीधे उस ग्रह को आंदोलित करती हैं, जिसको लक्ष्य करके मन्त्र पढ़े गये. सर्वव्यापक परमात्मा के प्रबंधानुसार उस ग्रह का चेतनातत्व वहाँ पहुँच कर अपना कार्य कर जाता हैं. क्योंकि सूक्ष्म रूप से ग्रह अंश वहाँ उपस्थित मानव-पिण्ड में पहले से ही विद्यमान है. अतः यंत्रों के आकर्षण से यह तत्व वहाँ प्रकट हो जाता हैं.

एक छोटा-सा दृष्टांत माचिस का ही ले सकते हैं. माचिस की तीली से अग्नि सूक्ष्म ( अदृश्य ) रूप में विद्यमान रहती हैं. केवल घर्षण करने से तत्काल अग्नि प्रकट हो जाती हैं. इसी प्रकार काष्ठ में और पत्थर या धातुओं में भी ‘अग्नि‘ पहले से ही स्थित होती हैं और घर्षण या टकराव आदि से अग्नि पस्फुलिंग प्रकट हो जाते हैं. वैसे ही मन्त्रों के आकर्षण-घर्षण से विशुद्ध रूप से अग्नि प्रकट होती हैं. ‘अग्नि मंथन‘ प्रक्रिया में लाखों लोग ऐसा प्रत्यक्ष देखते हैं. ऐसी ही ग्रहों या देवता के चेतन तत्व को भी जाग्रत किया जाता हैं.

नोट – यह लेख “हिन्दू रीति-रिवाजों का शास्त्रीय एवं वैज्ञानिक आधार” नामक किताब से लिया गया हैं, इसके लेखक डॉ. सच्चिदानन्द शुक्ल हैं. यह एक बेहतरीन किताब हैं. इस किताब को जरूर पढ़े.

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