गणित पर कविता | Maths Poem in Hindi

Maths Mathematics Ganit Poem Kavita Poetry in Hindi – इस आर्टिकल में गणित पर कविता, गणित की हास्य कविता और गणित के बाल गीत दिए हुए है. इन्हें जरूर पढ़े.

गणित किसी के लिए आसान तो किसी के लिए कठिन होता है, लेकिन ज्यादातर लोग इसे कठिन विषय ही मानते है. गणित पर कविता लिखना भी एक कठिन काम है. इस लेख में कुछ कवितायेँ इंटरनेट ले ली गई है तो कुछ को प्रेरणा लेकर बनाया गया है.

Maths Poem in Hindi

Maths Poem in Hindi
Maths Poem in Hindi | मैथ्स पोएम इन हिंदी | गणित की कविता

दो में दो जोड़ो हो जाएगा चार,
जीवन में तुम जरूर करना प्यार,
चार में चार जोड़ो हो जाएगा आठ,
असफलता ही पढ़ाता है जीवन का पाठ,
आठ में जोड़ो दो हो जाएगा दस,
समय पर नहीं चलता किसी का बस,
दस में जोड़ो दस हो जाएगा बीस,
पढ़ लो, डॉक्टर बनकर पाओगे ज्यादा फीस
बीस में जोड़ो तीस हो जाएगा पचास
यहीं पर यह कविता हो जाएगा खल्लास।


Srinivasa Ramanujan Poem in Hindi

अगर गणित की बात हो और उसमें भारत के महान गणितज्ञ श्रीनिवास रामानुजन का नाम ना आये तो एक अधूरापन सा लगता है. इस कविता के लेखक अरूण कुमार गर्ग है.

था एक छोटी उम्र का नौजवान,
श्रीनिवास रामानुजन है जिसका नाम,
भारत माँ की गोद में जन्मा
सदी का एक सुपुत्र महान।

बचपन में थी कुछ ऐसी लगन
संख्याओं में थी उसकी जान,
बड़ी-बड़ी समीकरणों को
पल में कर देता था आसान।

असम्भव को बना सम्भव
दर दिखाया वो नादान
हार्डी भी हो गया था अचंभित
देख उसके परिणाम।

जाने कैसे हल करता था
सरस्वती माँ का था उसपे अनोखा वरदान
छोटे से जीवन अंतराल में
गणित को दे गया एक नई पहचान।

हैरान थी दुनिया देख उसकी योग्यता
महान गणितज्ञ भी करते थे सलाम
उस जैसा ना था ना होगा कभी अरूण
दिखा दिया उसने करके ऐसा काम.
अरुण कुमार गर्ग


Mathematics Poem in Hindi

मेरा भूगोल हमेशा से कमज़ोर रहा है,
मैं नहीं जानती कौन सा “मौसम” उचित होता है,
उपजाने के लिए, प्रेम को।

इतिहास भी कुछ खास पसंद नहीं रहा है,
मैं नहीं जानती कितने “युद्धों” को जीतकर
अपना वर्चस्व स्थापित किया है, प्रेम ने।

मैंने नहीं पढ़ा है नागरिकशास्त्र,
मैं नहीं जानती क्या “नियम और कानून” हैं
अस्मिता बचाने के लिए, प्रेम की।

अर्थशास्त्र से तो मेरा दूर दूर का कोई नाता नहीं,
मुझे नहीं मालूम क्या “मोल भाव” करना पड़ता है
अपना बनाने के लिए, प्रेम को।

मेरा गणित भी हमेशा से कमज़ोर रहा है,
मैं नहीं जानती कितनी “दूरी” जरूरी है,
प्रेमियों रूपी समानांतर रेखाओं में, प्रेम में।
अंतरा ( Antra )


गणित पर कविता – गणित प्रेम

गणित के पन्नों में तू
इश्क खोजा करती है.
खुद सवाल बनकर
अपने आप से उलझा करती है.
मैं तो एक स्टेप बढ़कर
खुद सिंगल समीकरण हो जाता हूँ.
x ,के बीन y कहाँ निकाल पाता हूँ.
मेरी ग्राफ का क्या पता?
उसी लाइन से होकर
तेरी गली से गुजर जाता हूँ.
जोड़-घटा के प्रेम
शून्य सा कर जाता हूँ.
जहाँ से चला मैं
वहीं लुढ़क जाता हूँ.
अपने को हमेशा बराबर के बाहर पाता हूँ.
तेरी तस्वीर को सर्वंग्समता करता हूँ.
तुम खुद समरूप हो जाती है
ज्यामिति के बीन त्रिकोणमिति
कहाँ बन पाती है.
मैं भी तो तुम्हारी प्यार में
थीटा कोण पर झुक जाता हूँ.
तुम बेश हुआ करती हो
मै ह्यपोटेनुस हो जाता हूँ.
मैं उन्नयन कोण पर जाता हूँ.
तू अवनमन कोण चली जाती है.
मै तनहा हो जाता हूँ
तुम टेन से कट हो जाती है
ख़ामख़ा
तू मौसम की तरह बरष जाती है.
मल्टीपल मिलन
क्रॉस कर जाती है.
जब भाग न लगे तो
परिमेयकरण से साथ हो जाती है.
एक दूजे की चाहत
गणित के पन्नो में दफन हो जाती है.
हल तो सैकड़ो प्रश्न होते हैं
परन्तु जीवन का गणित कभी न हल हो पाता है.
पढ़ते-पढ़ते कितने सदी गुजर गए
कभी प्रेम-गणित पूरा न हो पाता है.
कुमार राकेश


जीवन का गणित कविता

गणित कविता
गणित कविता | Ganit Kavita | Mathematics Poem in Hindi

सूझ-बूझ से गणित को सरल बनाना पड़ता है
कभी जोड़ना पड़ता है तो कभी घटाना पड़ता है
गुणाकार और भागाकार खूब किया जाता है
मगर जीवन का शेष, अंत में शून्य ही आता है

जीवन एक वृत्त है और ख़ुशी उसका केंद्र बिंदु
जीवन को बड़ा बनाने के लिए खूब पैसा कमाते है
स्वास्थ्य की परवाह किये बिना जी जान लगाते है
हकीकत में हम खुशियों से बहुत दूर हो जाते है.

जीवन रुपी गणित के समस्या रुपी सवाल
हर किसी की जिंदगी में आते है,
इन समस्याओं से हम भाग नहीं पाते है
थोड़ी कोशिश करने पर इसका हल पाते है.


Mathematics Poetry in Hindi

अब मैं जीवन के इस मोड़ पर
रोजमर्रा के गणित से डरती हूँ
तुम्हारे और मेरे बीच होने वाले दौराहे
से वापिस मुड़ जाती हूँ
प्रेम में भी त्रिकोण से डरती हूँ
ज्यामिति की उन सब आड़ी तिरछी रेखाओं से
जो कभी मुझे किसी असीमित छोर पर न ले जाए
और कभी कभी अपने मन के
उलझे सुलझे आंकलन से भी डरती हूँ
सीधी लाइन भी समांतर हो जाती है
अब यह भी मुझे डराती है
सम्भावना के मूल्यांकन अब खुशी नहीं देते मुझे
मैं अब ग्राफ के जंजाल में कहाँ फंसती हूँ
किताबों के गणित में हमेशा प्रथम रही मैं
अपनी जिंदगी की द्वितीय श्रेणी में सफर करती हूँ
सुनो, यूँ तो सुलझा लेती हूँ मेट्रिक्स भी
पर वर्ग और वृत की सतहों में घिरती हूँ
हाँ, अब मैं जिंदगी के गणित से डरती हूँ.


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