Army Day Poem Kavita Poetry Image in Hindi – इस आर्टिकल में सेना दिवस ( आर्मी डे ) पर कविता पोएम पोएट्री आदि दिए हुए है. इन्हें जरूर पढ़े.
भारत देश की सेना ( आर्मी ) को मेरा शत-शत नमन है जिन्होंने कड़ाके की ठंड में और गर्मी की चिलचिलाती धूप में सरहद पर खड़े रहकर देश की सुरक्षा की है. मुसीबत पड़ने पर देश की सेना अपने जान की बाजी लगा देती है. उन शेरों और जाँबाजों का चरण बंदन करता हूँ. आर्मी डे पर बेहतरीन कविता पढ़े.
Army Day Lyrics Song in Hindi
यह खूबसूरत गीत कलम के बाहुबली मनोज मुंतशिर ने लिखा है. इस गीत के लिए उनकी जितनी भी तारीफ़ की जाएँ वो कम है. इस गाने को मैंने इतनी बार सुना है कि मुझे गिनती नहीं याद होगी। जब-जब इस गीत को सुनता या पढ़ता हूँ. तब-तब मेरा रोम-रोम उत्साह, उमंग और देशभक्ति से भर जाता है.
तलवारों पे सर वार दिए
अंगारों में जिस्म जलाया है
तब जाके के कहीं हमने सर पे
यह केसरी रंग सजाया है.
ऐ मेरी ज़मीन अफ़सोस नहीं
जो तेरे लिए सौ दर्द सहे
महफ़ूज़ रहे तेरी आन सदा
चाहे जान मेरी ये रहे ना रहे
ऐ मेरी ज़मीन महबूब मेरी
मेरी नस नस में तेरा इश्क़ बहे
फीका ना पड़े कभी रंग तेरा
जिस्मों से निकल के ख़ून कहे
तेरी मिट्टी में मिल जावाँ
गुल बनके मैं खिल जावाँ
इतनी सी है दिल की आरज़ू
तेरी नदियों में बह जावाँ
तेरे खेतों में लहरावाँ
इतनी सी है दिल की आरज़ू
सरसों से भरे खलिहान मेरे
जहाँ झूम के भंगड़ा पा ना सका
आबाद रहे वो गाँव मेरा
जहाँ लौट के वापस जा ना सका
हो वतना वे, मेरे वतना वे
तेरा मेरा प्यार निराला था
कुर्बान हुआ तेरी अस्मत पे
मैं कितना नसीबों वाला था
तेरी मिट्टी में मिल जावाँ
गुल बनके मैं खिल जावाँ
इतनी सी है दिल की आरज़ू
तेरी नदियों में बह जावाँ
तेरे खेतों में लहरावाँ
इतनी सी है दिल की आरज़ू
ओ हीर मेरी तू हँसती रहे
तेरी आँख घड़ी भर नम ना हो
मैं मरता था जिस मुखड़े पे
कभी उसका उजाला कम ना हो
ओ माई मेरी क्या फ़िक़र तुझे
क्यूँ आँख से दरिया बहता है
तू कहती थी तेरा चाँद हूँ मैं
और चाँद हमेशा रहता है
तेरी मिट्टी में मिल जावाँ
गुल बनके मैं खिल जावाँ
इतनी सी है दिल की आरज़ू
तेरी नदियों में बह जावाँ
तेरे खेतों में लहरावाँ
इतनी सी है दिल की आरज़ू
– मनोज मुंतशिर ( Manoj Muntashir )
Army Day Poetry in Hindi
जला अस्थियाँ बारी-बारी
चिटकाई जिनमें चिंगारी,
जो चढ़ गये पुण्यवेदी पर
लिए बिना गर्दन का मोल
कलम, आज उनकी जय बोल।
जो अगणित लघु दीप हमारे
तूफानों में एक किनारे,
जल-जलाकर बुझ गए किसी दिन
माँगा नहीं स्नेह मुँह खोल
कलम, आज उनकी जय बोल।
पीकर जिनकी लाल शिखाएँ
उगल रही सौ लपट दिशाएं,
जिनके सिंहनाद से सहमी
धरती रही अभी तक डोल
कलम, आज उनकी जय बोल।
अंधा चकाचौंध का मारा
क्या जाने इतिहास बेचारा,
साखी हैं उनकी महिमा के
सूर्य चन्द्र भूगोल खगोल
कलम, आज उनकी जय बोल।
रामधारी सिंह “दिनकर”
Army Day Poem in Hindi
युद्ध में जख्मी सैनिक साथी से कहता है:
‘साथी घर जाकर मत कहना, संकेतो में बतला देना;
यदि हाल मेरी माता पूछे तो, जलता दीप बुझा देना!
इतने पर भी न समझे तो दो आंसू तुम छलका देना!!
यदि हाल मेरी बहना पूछे तो, सूनी कलाई दिखला देना!
इतने पर भी न समझे तो, राखी तोड़ दिखा देना !!
यदि हाल मेरी पत्नी पूछे तो, मस्तक तुम झुका लेना!
इतने पर भी न समझे तो, मांग का सिन्दूर मिटा देना!!
यदि हाल मेरे पापा पूछे तो, हाथों को सहला देना!
इतने पर भी न समझे तो, लाठी तोड़ दिखा देना!!
यदि हाल मेरा बेटा पूछे तो, सर उसका सहला देना!
इतने पर भी न समझे तो, सीने से उसको लगा लेना!!
यदि हाल मेरा भाई पूछे तो, खाली राह दिखा देना!
इतने पर भी न समझे तो, सैनिक धर्म बता देना!!
सेना दिवस पर कविता
बुझा है जिस आँगन का चिराग
उस घर की दीवारें भी रोयी होंगी,
खोया है जिन माँओ ने लाल अपना
न जाने वो माँये कैसे सोयी होंगी।
कतरा-कतरा बहे खून का अब
आखिर हिसाब देगा कौन
क्यों न भड़के मेरे सीने में भी आग
आखिर कब तक कोई रहेगा मौन.
छलनी किया जिन दहशतगर्दों ने सीना
अब उन्हें उनकी औकात दिखानी होगी
भूलना नहीं कर्ज देश के जवानों का
बात ये दुश्मन के घर में घुसकर सिखानी होगी।
– संजय वर्मा
Army Day Kavita | सेना दिवस पर कविता
न हाथ एक शस्त्र हो,
न हाथ एक अस्त्र हो,
न अन्न वीर वस्त्र हो,
हटो नहीं, डरो नहीं,
बढ़े चलो, बढ़े चलो
रहे समक्ष हिम-शिखर,
तुम्हारा प्रण उठे निखर,
भले ही जाए जन बिखर,
रुको नहीं, झुको नहीं,
बढ़े चलो, बढ़े चलो
घटा घिरी अटूट हो,
अधर में कालकूट हो,
वही सुधा का घूंट हो,
जिये चलो, मरे चलो,
बढ़े चलो, बढ़े चलो
गगन उगलता आग हो,
छिड़ा मरण का राग हो,
लहू का अपने फाग हो,
अड़ो वहीं, गड़ो वहीं,
बढ़े चलो, बढ़े चलो
चलो नई मिसाल हो,
जलो नई मिसाल हो,
बढो़ नया कमाल हो,
झुको नही, रूको नही,
बढ़े चलो, बढ़े चलो
अशेष रक्त तोल दो,
स्वतंत्रता का मोल दो,
कड़ी युगों की खोल दो,
डरो नही, मरो नहीं,
बढ़े चलो, बढ़े चलो
– सोहनलाल द्विवेदी
आर्मी डे पोएम कविता
सरहदों पर खड़े रहकर ठंड
बारिश ताप सब सहते है
देश की सेवा के लिए जवान
एक पैरों पर खड़े रहते है
लद्दाख चीन की बर्फ़ीली गुफाओं
में हिफाजत में मशगूल रहते है
तो कभी नभ को चीर
हमारी ढाल बनते है
हर दर्द सहकर भी
देश की सुरक्षा करते है
धरती माँ के लिए अपनी ये
जान भी निछावर कर देते है
हर भारतीय सिपाही हम देशवासियों
के दिल के करीब रहते है
हम इन वीर जवानों को
शत-शत नमन करते है.
– सोनिया शर्मा
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