Sanskar Kyon Aavashyak Hai? ( Why rites are necessary in Hindi? ) – यह सृष्टि प्रभु की सबसे बड़ी देन हैं. इसलिए हम प्रभु को सदैव स्मरण करते हैं. प्रेम और प्यार में यही अंतर है कि प्रभु से प्रेम किया जाता है लेकिन लोगों से प्यार. माता-पिता और दादा-दादी परमात्मा के समान हैं. बच्चों को अपने माता-पिता, गुरू, ईष्टजनों से ही संस्कार मिलते हैं. बच्चे तो गीली मिट्टी के समान होते हैं.
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माता-पिता उन्हें जिस सांचे में ढालते हैं, बच्चा उसी सांचे में ढल जाता हैं. इसलिए बच्चा सबसे पहले अपने माँ-बाप के प्रति ही कृतज्ञता व्यक्त करता है जिनके संस्कारों के फ़लस्वरूप वह विश्व में नाम कमाता है. एक कहावत है – “पूत कपूत तो क्या धन संचय और पूत सपूत तो क्या धन संचय” लिखने का अर्थ हैं. अगर पुत्र सपूत है तो धन संचय करने की आवश्यकता नहीं है, क्योंकि वह सारा धन नष्ट कर देगा. अगर सन्तान को कोई वस्तु देने की आवश्यकता है तो वह है संस्कार. सन्तान को अच्छे संस्कार दीजिये लेकिन चौंकाने वाली बात है कि कम ही अभिभावक हैं जो बच्चों को व्यावहारिक रूप में संस्कार देने का प्रयास कर रहे हैं, शेष अभिभावक विरासत में धन-सम्पत्ति, व्यापार देने पर ही विश्वास करते हैं. परिश्रम के बिना कुछ भी संभव नहीं हैं.
कुछ लोग सोचते हैं कि घर छोड़ देने से वे मुक्त हो जायेंगे लेकिन मेरे विचार से ऐसा सम्भव नहीं हैं. यह तो श्रम अपर अपने कर्तव्यों से भागने का एक उपाय हैं. इससे न तो शांति मिलेगी और न ही जीवन का कोई लक्ष्य पूरा होगा. आज अभिभावक आँखे बंद कर धन को एकत्रित करने में लगे हैं. वे साम, दाम, दंड और भेदरुपी चारों हाथों से धन इकट्ठा करने में लगे हैं, संस्कारों के नाम पर कुछ भी कहने को तैयार नहीं हैं. बस, पैसा, पैसा और पैसा ही उनके जीवन का उद्देश्य बन गया हैं. ऐसे अभिभावक सम्पत्ति को मुख्य और सन्तान को गौण मानते हैं. अगर आप चाहते है कि आपकी सन्तान बुरे व्यसनों से बचे तो आप भी बुरी आदतों से परहेज करें, आपकी सन्तान स्वयं ही इन बुरे रोगों से बची रहेगी.
सबसे पहले अभिभावक को दुर्गुणों से बचना चाहिए. बच्चे स्वयं ही दुर्गुणों से बच जायेंगे. महाभारत में नेत्र न होने के कारण धृतराष्ट्र अंधे तो थे ही, पुत्र के प्रति अंध प्रेम के कारण उनका अंधापन दुगना हो गया था. परिणाम हम सभी जानते हैं. सबकुछ नष्ट हो गया और जिस पुत्र से इतना मोह था वह तो गया ही, उसके साथ ही सौ पुत्र और भी चले गये.
अगर वह होते तो इस दुनिया को और बहुत कुछ दे सकते थे. इसका अर्थ यह नहीं है कि प्रेम मत करो, खूब करो लेकिन प्रेम को सही दिशा देने का प्रयत्न भी करो. इसलिए अच्छे संस्कार ही जीवन की सबसे बड़ी पूँजी हैं. सन्तान में अच्छे संस्कार भरने के लिए यह आवश्यक है कि हम कुछ बातों पर विशेष ध्यान दें. संभव हो तो अभिभावक अपने बच्चो को अपने साथ रखें, उनका सम्मान करें और उनके आदर्शों का पालन करें. ऐसे अभिभावकों की संतानों को संस्कार स्वतः ही विरासत में मिल जाता हैं. इसके अतिरिक्त जब माँ-बाप सन्तान की हर अच्छे काम की प्रशंसा करते हैं और बुरे कामों को करने से रोकते हैं तो इससे बच्चों में सही संस्कार का विकास होता हैं.
कई माता-पिता ऐसे होते हैं जो भावुकता में या अंध पुत्र प्रेम के कारण अपने बच्चों को गलत कार्य करने से भी नहीं रोकते. इसके दूरगामी परिणाम अच्छे नहीं होते. हमारे धर्म शास्त्रों न ऐसा न करने की प्रेरणा दी हैं और गुरूजनों ने ऐसे कार्यों को निषिद्ध की श्रेणी में रखा हैं.
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