संत रविदास की जीवनी | Sant Ravidas Biography in Hindi

Sant Ravidas Biography in Hindi – भारत के मध्य युगीन संत परम्परा में रविदास या कहें रैदास जी का महत्वपूर्ण स्थान रहा हैं. संत रैदास जी कबीर के समसामयिक थे. संत कवि रविदास का जन्म वाराणसी के पास एक गाँव में सन  1398 में माघ पूर्णिमा के दिन हुआ था.रविवार के दिन जन्म होने के कारण इनका नाम रविदास रखा गया. रविदास जी को रामानंद जी का शिष्य माना जाता हैं.

संत रविदास का जीवन परिचय

रैदास जी के जन्म के सम्बन्ध में उचित प्रमाणिक जानकारी मौजूद नही हैं कुछ विद्वान काशी में जन्मे रैदास का समय 1482-1527 ई. के बीच मानते हैं तो कुछ के अनुसार रैदास का जन्म काशी में  1398 में माघ पूर्णिमा के दिन हुआ माना जाता हैं. संत कवि रविदास जी का जन्म चर्मकार कुल में हुआ था.

इनके पिता का नाम रग्घू और माता का नाम घुरविनिया बताया जाता है. चर्मकार का कार्य उनका पैतृक व्यवसाय था और उन्होंने से सहर्ष स्वीकार किया. अपने कार्य को यह बहुत लगन और मेहनत से किया करते थे. उनकी समयानुपालन की प्रवृति तथा मधुर व्यवहार के कारण लोग इनसे बहुत प्रसन्न रहते थे.

संत एवं भक्त कवि रविदास

हिंदी साहित्य के इतिहास में मध्यकाल, भक्तिकाल के नाम से प्रख्यात हैं. इस काल में अनेक संत एवं भक्त कवि हुए जिन्होंने भारतीय समाज में व्याप्त अनेक कुरूतियो को समाप्त करने का प्रयास किया. इन महान संतो कवियों की श्रेणी में रैदास जी का प्रमुख स्थान रहा हैं उन्होंने जाति, वर्ग एवं धर्म के मध्य की दूरियों को मिटने और उन्हें कम करने का भरसक प्रयत्न किया.

रविदास जी भक्त, साधक और कवि थे उनके पदों में प्रभु भक्ति भावना, ध्यान साधना तथा आत्म निवेदन की भावना प्रमुख तोप में देखी जा सकती हैं. रैदास जी ने भक्ति के मार्ग को अपनाया था सत्संग द्वारा इन्होने अपने विचारो को जनता तक पहुचायाँ तथा अपने ज्ञान तथा उच्च विचारों से समाज को लाभान्वित किया.

प्रभुजी तुम चन्दन हम पानी, जाकी अंग अंग वास समानी.

प्रभुजी तुम धनबन हम मोरा, जैसे चितवत चन्द्र चकोर.

प्रभुजी तुम दीपक हम बाती, जाकी जोति बरे दिन राती.

प्रभुजी तुम मोती हम धागा, जैसे सोनहि मिलत सुहागा.

प्रभुजी तुम स्वामी हम दासा, ऐसी भक्ति करै रैदास.

उपर्युक्त पद में रविदास ने अपनी कल्पनाशीलता, अध्यात्मिक शक्ति तथा अपने चिंतन को सहज एवं सरल भाषा में व्यक्त किया हैं. रैदास जी के सहज –सरल भाषा में कहें गये इन उच्च भावों को समझना आम जन के लिए बहुत आसान  होता हैं.

रैदास जी के बारे में प्रचलित कहानी

उनके जीवन के घटनाओ से उनके गुणों का ज्ञान होता हैं. एक घटना के अनुसार गंगा-स्नान के लिए रैदास को शिष्यों में से एक ने उनसे भी चलने का आग्रह किया तो वे बोले, गंगा-स्नान के लिए मैं अवश्य जाता परन्तु मैंने किसी को आज ही जूते बनाकर देने का वचन दिया हैं और अगर मैं जूते नही दे सका तो वचन भंग हो जायेगा. अतः मन सही हैं तो इस कठौती के जल में ही गंगा-स्नान को पुण्य प्राप्त हो सकता हैं.कहा जाता हैं कि इस प्रकार के व्यवहार के बाद से ही कहावत प्रचलित हो गयी कि – “मन चंगा तो कठौती में गंगा”

रविदास जी के भक्ति गीतों एवं दोहों ने भारतीय समाज में समरसता एवं प्रेम भाव उत्पन्न करने का प्रयास किया हैं. हिन्दू एवं मुस्लिम में सौहार्द एवं सहिष्णुता उत्पन्न करने हेतु रविदास जी ने अथक प्रयास किये थे और इस तथ्य का प्रमाण उनके गीतों में देखा जा सकता हैं. वह कहते हैं कि यदि तुम तीर्थ यात्राए न भी करो तो भी ईश्वर को अपने ह्रदय में पा सकते हो.

का मथुरा का द्वारिका का काशी हरिद्वार,

रैदास खोजा दिल आपना तह मिलिया दिलदार.

रैदास जयंती महत्व

रविदास राम और कृष्ण भक्त परम्परा के कवि और संत माने जाते हैं. उनके प्रसिद्ध दोहे आज भी समाज में प्रचलित हैं जिन पर कई भजन बने हैं. संत रविदास जयंती देश भर में उत्साह एवं धूम-धाम के साथ मनाया जाता है. इस अवसर पर शोभा यात्रा निकली जाती हैं तथा शोभा यात्रा में बैंड बाजों के साथ भव्य झांकियां भी देखने को मिलती हैं इसके अतरिक्त रविदास जी के महत्व एवं उनके विचारो पर गोष्ठी और सतसंग का आयोजन भी होता हैं सभी लोग रविदास जी की जन्म तिथि पर श्रद्धा पुष्प अर्पित करते हैं.

ऐसे महान संतो के महान विचारो को जानकार लोगो के मन और विचार शुद्ध हो जाते हैं और जीवन को महानता के साथ जीने का सन्देश भी मिलता हैं.

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