Meri Maa Kavita in Hindi – माँ का हृदय बड़ा ही विशाल होता हैं, इसी वजह से माँ अपने संतान को सबसे ज्यादा प्यार करती हैं. संतान के जीवन में माँ का स्थान कोई दूसरा नही ले सकता हैं. इस पोस्ट में एक बेहतरीन Maa Par Kavita दी गयी हैं. इस पोस्ट को जरूर पढ़े, अगर यह कविता आपको पसंद आता हैं तो अपने दोस्तों के साथ इसे शेयर जरूर करें.
मेरी माँ कविता | Meri Maa Kavita in Hindi
जब आंख खुली तो अम्मा की गोदी का एक सहारा था,
उसका नन्हा सा आंचल मुझको भूमण्डल से प्यारा था.
उसके चेहरे की झलक देख चेहरा फूलों सा खिलता था,
उसके स्तन की एक बूंद से मुझको जीवन मिलता था.
हाथों से बालों को नोंचा पैरों से खूब प्रहार किया,
फिर भी उस मां ने पुचकारा हमको जी भर के प्यार किया.
मैं उसका राजा बेटा था वो आंख का तारा कहती थी,
मैं बनूं बुढापे में उसका बस एक सहारा कहती थी.
उंगली को पकड. चलाया था पढने विद्यालय भेजा था,
मेरी नादानी को भी निज अन्तर में सदा सहेजा था.
मेरे सारे प्रश्नों का वो फौरन जवाब बन जाती थी,
मेरी राहों के कांटे चुन वो खुद गुलाब बन जाती थी.
मैं बडा हुआ तो कॉलेज से इक रोग प्यार का ले आया,
जिस दिल में मां की मूरत थी वो रामकली को दे आया.
शादी की पति से बाप बना अपने रिश्तों में झूल गया,
अब करवाचौथ मनाता हूं मां की ममता को भूल गया.
हम भूल गये उसकी ममता मेरे जीवन की थाती थी,
हम भूल गये अपना जीवन वो अमृत वाली छाती थी.
हम भूल गये वो खुद भूखी रह करके हमें खिलाती थी,
हमको सूखा बिस्तर देकर खुद गीले में सो जाती थी.
हम भूल गये उसने ही होठों को भाषा सिखलायी थी,
मेरी नीदों के लिए रात भर उसने लोरी गायी थी.
हम भूल गये हर गलती पर उसने डांटा समझाया था,
बच जाउं बुरी नजर से काला टीका सदा लगाया था.
हम बडे हुए तो ममता वाले सारे बन्धन तोड आए,
बंगले में कुत्ते पाल लिए मां को वृद्धाश्रम छोड आए.
उसके सपनों का महल गिरा कर कंकर-कंकर बीन लिए,
खुदग़र्जी में उसके सुहाग के आभूषण तक छीन लिए.
हम मां को घर के बंटवारे की अभिलाषा तक ले आए,
उसको पावन मंदिर से गाली की भाषा तक ले आए.
मां की ममता को देख मौत भी आगे से हट जाती है,
गर मां अपमानित होती, धरती की छाती फट जाती है.
घर को पूरा जीवन देकर बेचारी मां क्या पाती है,
रूखा सूखा खा लेती है पानी पीकर सो जाती है.
जो मां जैसी देवी घर के मंदिर में नहीं रख सकते हैं,
वो लाखों पुण्य भले कर लें इंसान नहीं बन सकते हैं.
मां जिसको भी जल दे दे वो पौधा संदल बन जाता है,
मां के चरणों को छूकर पानी गंगाजल बन जाता है.
मां के आंचल ने युगों-युगों से भगवानों को पाला है,
मां के चरणों में जन्नत है गिरिजाघर और शिवाला है
हर घर में मां की पूजा हो ऐसा संकल्प उठाता हूं,
मैं दुनियां की हर मां के चरणों में ये शीश झुकाता हूं.
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