अहमद फ़राज की बेहतरीन शायरी | Ahmad Faraz Shayari

मैंने आज़ाद किया अपनी वफ़ाओं से तुझे
बेवफ़ाई की सज़ा मुझको सुना दी जाए


मैंने माँगी थी उजाले की फ़क़त इक किरन फ़राज़
तुम से ये किसने कहा आग लगा दी जाए


इस तरह गौर से मत देख मेरा हाथ ऐ फ़राज़
इन लकीरों में हसरतों के सिवा कुछ भी नहीं


अभी कुछ और करिश्मे ग़ज़ल के देखते हैं
‘फ़राज़’ अब ज़रा लहजा बदल के देखते हैं.


दुख फ़साना नहीं कि तुझ से कहें
दिल भी माना नहीं कि तुझ से कहें


जिस से ये तबीअत बड़ी मुश्किल से लगी थी
देखा तो वो तस्वीर हर इक दिल से लगी थी .


जो ग़ैर थे वो इसी बात पर हमारे हुए
कि हम से दोस्त बहुत बे-ख़बर हमारे हुए


मिज़ाज हम से ज़ियादा जुदा न था उस का
जब अपने तौर यही थे तो क्या गिला उस का


पयाम आए हैं उस यार-ए-बेवफ़ा के मुझे
जिसे क़रार न आया कहीं भुला के मुझे


दिल को तिरी चाहत पे भरोसा भी बहुत है
और तुझ से बिछड़ जाने का डर भी नहीं जाता
पागल हुए जाते हो ‘फ़राज़’ उस से मिले क्या
इतनी सी ख़ुशी से कोई मर भी नहीं जाता

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