मानवता पर कविता | Poem on Humanity in Hindi

Poem on Humanity in Hindi – मानव में मानवता होनी चाहिए, मानवता हमें हर मानव का सम्मान करना सिखाता है. इस आर्टिकल में मानवता पर कविता दी गई है. इस कविता को जरूर पढ़े.

हमारे समाज में विभिन्न जाति और धर्म के लोग रहते है. हम में कई प्रकार की भिन्नता है. लेकिन हम सभी मानव है. हम सब कहते है ईश्वर कण-कण में है तो फिर वह हर मानव भी है. तो मानव ही मानव का सम्मान क्यों नहीं कर पाता है? ईश्वर की पूजा करने मंदिर में जाते है. खुदा की इबादत करने मस्जिद में जाते है. लेकिन अपने परिवार, समाज और देश के लोगों से ही घृणा करते है. उन्हें अपमानित करते है. उनमें भी तो ईश्वर और खुदा है. आप कब अपने ज्ञान चक्षु को खोलकर इंसान के अंदर के ईश्वर और खुदा को देख पायेंगे.

Poem on Humanity in Hindi

मानव के अंदर जो प्रेम, त्याग, दया, करूणा, संतोष, विनम्रता होती है उसे ही मैं मानवता कहता हूँ. धर्म भी मानव को मानवता का पाठ पढ़ाता है. लेकिन स्वार्थ, लालच और कट्टर विचार कई बार हमें गलत मार्ग पर लेकर चले जाते है. जिसका परिणाम पूरे समाज को भुगतना पड़ता है. मानवता को जाने धर्म को जाने और जन कल्याण के लिए अपना हर कर्म करें. ईश्वर कण-कण में है. जब आप सृजन का कार्य करते है तो आप ईश्वर की सेवा करते है. जब आप विनाश या गलत कार्य करते है तब आप ईश्वर का अपमान करते है.

धर्म और मानवता पर कविता

Humanity Poem in Hindi
Poem on Humanity in Hindi | मानवता पर कविता | Humanity Poem in Hindi

मानव बड़ा ही बेशर्म हो गया है,
मानवता से बड़ा धर्म हो गया है,
धर्म के नाम पर जान लेने को तैयार है,
यह कैसा खुदा और ईश्वर से प्यार है.

धर्म के नाम पर खुद को भरमाया है हमने,
धर्म के नाम पर मन में स्वार्थ बसाया है हमने,
धर्म के नाम पर नफरत बढ़ाया है हमने,
धर्म के नाम पर लोगो को डराया है हमने,
उस धर्म को कैसे बड़ा कहूँ
जिसके नाम पर लहू बहाया है हमने.

ईश्वर और खुदा हमसे क्या चाहता है,
वह हमें नेक रास्ता बताता है,
लेकिन स्वार्थ में हमने अपनी
आँखे बंद कर ली है,
किसी बेगुनाह को मारकर
खून से अपनी हाथे रंग ली है.

ना जाने मानव मानवता की बातें कब करेगा,
ना जाने मानव ईश्वर के क्रोध से कब डरेगा,
ना जाने जीवन के सत्य को कब जान पायेगा,
अच्छे कर्म को अपना धर्म कब मान पायेगा.

छोटी सी बुराई मानवता पर कितनी भारी है,
हकीकत में गलती भी तो सारी हमारी है,
धर्म का चश्मा लगाकर नफरत की बीज बोते है,
हमें आपस में लड़ाकर वो चैन से सोते है.

मुझे तो लगता है ये राजनीति के हाथों बिके है,
तभी तो धर्म की गद्दी पर इतने दिन से टिके है,
इन्हें भी पता है मेहनत इनसे अब होगी नही,
सच्चे और अच्छे धर्म गुरू होंगे अब ढोंगी नही.

ईश्वर, खुदा, गॉड प्रेम में बसता है,
थोड़ा गौर से देखों हर एक में बसता है,
वो सत्य में है वो तुम्हारे त्याग में है
वो अयोध्या, मथुरा, काशी, काबा प्रयाग में है
वही तुम्हारी जीत और हार है, वही स्त्री का सम्मान है,
थोड़ा और गौर से देखो वो कण-कण में विद्यमान है.
– चक्रधारी पाण्डेय


मानवता पर कविता | Manavta Poem in Hindi

तुझे मानव मैं कैसे
किस मुँह से कह दूँ
मानवता ही नही तो
तू मानव कहां !
स्वार्थ-लालच के सागर में डूबा हुआ है
एक-दूजे से तू ऊबा हुआ है
तू जीकर भी मर रहा है यहाँ
इंसा की नजर में तू जिंदा कहाँ
तुझमें अपना ही सुख समाया हुआ है
औरों के प्रति घृणा बसाया हुआ है
दूसरे का दुख तू समझता कहाँ है ।
खुद को ही समझता समझदार है
ईश्वर का भी करता तिरस्कार है
आचरण तो तुम्हारा निकृष्ट है बहुत
असुरों की श्रेणी में विशिष्ट है बहुत
दिखावे का मृग बनता है तू
सीता सी नारी को छलता है तू
माया में पड़कर लूट रहा है जहां
फिर कैसे न कहूँ “तू मानव कहाँ” ।
अगले की खुशी तुझे भाती नहीं
रातभर तुझको नींद आती नहीं
मामा सकुनी बनकर आता है तू
आपस में झगड़े लगाता है तू
नेक भावों का तू पतन कर रहा
कुभावों का है जतन कर रहा
जानवर भी कर रहा हर तरफ निंदा है
तुझसे भला तो आसमान का परिंदा है
काँटे ही बोता रहा,गया तू जहाँ
मानव! तू अब मानव रहा ही कहाँ ।

कवि – वेद प्रकाश “वेदान्त”
प्रयागराज ,उत्तर प्रदेश
मोबाइल -7897363085


नोट – इस लेख और कविता का मुख्य उद्देश्य आपसी प्रेम और सौहार्द को बढ़ाना है. किसी धर्म या किसी के भावना, आस्था को आहत करना नही है.

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