Spoken Proverbs and Saying by Old and Elders in Hindi – कहावत उस छोटे से वाक्य या लाइन को कहा जाता है जिसके माध्यम से बड़ी-बड़ी बातें कह दी जाती है. गाँव, घर में अक्सर बड़े-बुजुर्गों के द्वारा बहुत सारी कहावतें सुनने को मिलती है. इन कहावतों को स्कूल में नही पढाया जाता है. इसे ज्यादातर ग्रामीण क्षेत्रों के लोग बोलने में प्रयोग करते है. बहुत सारी ऐसी कहावतें होती है जो घर की महिलाओं के द्वारा प्रयोग की जाती है.
कई बार गाँव में बड़े बुजुर्गों की कहावत का अर्थ तो पढ़े लिखे लोग भी नहीं निकाल पाते है. और शर्म में हाँ में हाँ मिलाकर आगे बढ़ जाते है. गाँव के बच्चे जो शहर में पढ़ते है उन्हें इन देहाती और हास्य पूर्ण कहावतों को जरूर पढ़ना चाहिए.
बड़े बुजुर्गों की कहावत

चले हल न चले कुदारी,
बैठे भोजन दे मुरारी.
आलस्य व्यक्तियों के लिए यह मुहावरा प्रयोग में लाया जाता है. गाँव में जब घर के युवा कोई काम नही करते है और सुबह शाम मजे में भोजन करते रहते है. तो बड़े बुजुर्ग अक्सर इस कहावत को कहते है. जिसका अर्थ है कि “बिना मेहनत और परिश्रम किये, मुफ़्त में भोजन करना.“
कई बार इस कहावत का प्रयोग उन लोगो के लिए भी किया जाता है जो अपने कार्य को एक स्थान पर बैठकर या किसी ऑफिस में करते है. जो किसान नही है. जो हल और कुदाल नही चालते है. यहाँ पर इस कहावत का अर्थ यह है कि “बिना हल और कुदाल चलाये, ईश्वर आपको खाने के लिए देता है“.

अरके क धनिया,
भुइया रहबा कि कनिया.
यह कहावत फ़िजूल खर्च न करने के लिए कहा जाता है. घर में जब कोई युवा लड़का नया-नया कमाना शुरू करता है और अपने पैसों को बेवजह की चीजों पर खर्च करता है तो इस कहावत का प्रयोग घर के बड़े बुजुर्गों के द्वारा किया जाता है. यह एक प्रकार का व्यंग है. क्योंकि हमारे बाप-दादा फ़िजूल खर्च में विश्वास नही करते है और बचत को अपनी ताकत मानते है.
गाँव भर काकी,
केकरा ओर ताकी.
यह कहावत तक प्रयोग किया जाता है जब कोई व्यक्ति किसी एक व्यक्ति की मदत कर दे या कोई सामान दे दे. उसके बाद वही मदत या सामान कोई और माँगें तो घर के बड़े बुजुर्ग इस कहावत का प्रयोग करते है. जिसका अर्थ होता है कि “गाँव के सभी लोग दोस्त है अपने है पर मैं किस-किस की मदत करू“
चाल चले सादा,
निभायें बाप दादा.
कई बार युवा जब बिज़नस में कमाने लगते है तो वे अपने पैसे से चार पहिया गाड़ी ले लेते है. और दिन में कई बार बेवजह इधर-उधर लेकर जाते है और पैसा खर्च करते है. तब बड़े बुजुर्ग गुस्से में यही कहावत कहते है. इस कहावत का अर्थ होता है कि “साधारण जीवन उत्तम होता है.“
बिज़नस चल रहा है तो ठीक है अगर बिज़नस में घाटा लगा तो गाड़ी बेचनी पड़ेगी और साधारण जीवन जीना पड़ेगा. तब लोग हँसेंगे कि पहले गाड़ी चल रहा था अब बैलगाड़ी से चल रहा है. इसलिए बड़े बुजुर्ग फ़िजूल खर्ची से बचते थे और साधारण जीवन जीते थे.
थोड़ा-थोड़ा जोड़ो,
मुनाफ़ा कभी ना छोड़ो.
यह कहावत गाँव के बड़े बुजुर्ग बनियों के द्वारा अक्सर कहा जाता है. इस कहावत को अपने जीवन में सभी को उतार लेना चाहिए इसका मतलब होता है कि – “थोड़ा-थोड़ा बचत करना अच्छा होता है और खरीदना हो या बेचना मुनाफा को हमेशा देखना चाहिए.“
आज के युवा जो बिज़नस कर रहे है उन्हें इस कहावत को प्रिंट कराकर अपने ऑफिस या वर्क स्टेशन पर लगा देना चाहिए ताकि आप फ़िजूल खर्ची न करें. अपने कार्य और बिज़नस को नये उचाईयों पर ले जा सकें.
आज हमारी कल तुम्हारी,
देखा लोगन बारी-बारी.
जीवन में कुछ चीजें ऐसी होती है जो सबके जीवन में होती है. जैसे घर का बँटवारा, इंसान की मृत्यु, बीमार पड़ना. ऐसे अवसरों पर बड़े बुजुर्ग इस कहावत को कहते है.
राम मिलायें जोड़ी,
इक आन्हर इक कोढ़ी.
इंसान जैसा होता है उसके दोस्त और जीवनसाथी भी वैसे ही होते है. अगर कुछ प्रतिशत लोगो की बात छोड़ दें. अगर कोई व्यक्ति बुरा होता है तो उसके दोस्त भी बुरे लोग ही बनते है. या उसे कोई बुरी जीवन साथी मिलती है. तब बड़े बुजुर्ग इस कहावत को कहते है.
सफेद और काला कोट से दूरी,
सुखी जीवन में लिए बहुत जरूरी.
गाँव के बड़े बुजुर्ग का पाला जब किसी डॉक्टर या किसी वकील से पड़ता है तो वे इस प्रकार के कहावत का प्रयोग करते है. डॉक्टर सफेद कोट पहनते है और बीमारी होने पर ही लोग डॉक्टर के पास जाते है. ज्यादा पैसा खर्च होता है. झगड़ा होने पर लोग काले कोट वाले वकील के पास जाना पड़ता है. वो भी खूब पैसा खर्च करवाता है.
दोस्ती हो या दुश्मनी
सलामी दूर से अच्छी होती है.
गाँव के बुजुर्गों को बड़ा अनुभव होता है. दुश्मन से दूरी बनाकर तो रहनी चाहिए यह सभी जानते है लेकिन दोस्तों से दूरी क्यों बनाकर रहनी चहिये? आइयें बताते है अगर दोस्त बुरा है या किसी समय झगड़ा हो गया तो वह दोस्त आपका भेद किसी और को बता देगा. इसलिए दोस्तों से भी दूरी बनाकर रखनी चाहिए.
कई बार घर में दोस्त बनकर आने वाले व्यक्तियों की नजर घर की युवा लड़कियों पर भी होती है. इसलिए गाँव में लोग दुसरे के घर के पुरूष सदस्य को घर के अंदर नहीं जाने देते है.
जे माथ झुकाय के करे प्रणाम,
वही से माँगे शराफत के प्रमाण.
गाँव के बड़े बुजुर्ग सबके संस्कार और आचरण से पारिचित होते है. कई बार गाँव में लोग ईर्ष्या वश या किसी भ्रम वश ईमानदार व्यक्ति पर भी गलत आरोप लगाते है. तब बुजुर्ग इस कहावत का प्रयोग करते है.
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