Harappan Civilization in Hindi ( Sindhu Sabhyata ) – हड़प्पा सभ्यता या सिन्धु सभ्यता भारतीय संस्कृति की लम्बी एवं वैविध्यपूर्ण कहानी का प्रारम्भिक बिंदु है. वर्षो पहले तक यह माना जाता रहा है कि हमारी संस्कृति की शुरूआत वैदिक युग से होती है, परन्तु सन् 1921 ई. में दयाराम साहनी द्वारा सिन्धु सभ्यता ( Indus Civilization or Sindhu Sabhyata ) की खोज ने इस बात को झुठला दिया और हमारी सभ्यता एवं संस्कृति को 1000 वर्ष अधिक प्राचीन होने का गौरव प्रदान किया, हाल ही के शोधों के आधार पर इस सभ्यता का काल और पहले लगभग 3500 ई. पू. माना जाने लगा हैं.
नामकरण | Naming
सिन्धु सभ्यता ( Indus Civilization ) के निम्नलिखित नाम रखे जा सकते हैं.
- हड़प्पा सभ्यता : इस सभ्यता का सबसे उपयुक्त नाम हड़प्पा सभ्यता है, क्योंकि सबसे पहले हड़प्पा स्थल ही खोजा गया था.
- सिन्धु सभ्यता : हड़प्पा सभ्यता के प्रारम्भिक स्थल सिन्धु नदी के आस-पास अधिक केन्द्रित थे. अतः इसे सिन्धु सभ्यता कहा गया परन्तु बाद में अन्य क्षेत्रों से भी स्थलों की खोज होने से अब इसका सर्वाधिक उपयुक्त नाम यह नहीं रह गया.
- सिन्धु-सरस्वती सभ्यता : सन् 1947 ई. के भारत के विभाजन के समय तक इस सभ्यता से जुड़ी केवल 40 बस्तियों का ही पता चल पाया था, परन्तु अब लगभग 1400 बस्तियों का पता चल चूका है. जिसमें केवल 40 बस्तियाँ ही सिन्धु और उसकी सहायक नदियों के क्षेत्र में पाई गई है, जबकि 1100 बस्तियाँ (लगभग 80%) सिन्धु तथा गंगा के बीच के मैदान में स्थित हैं जहाँ कभी सरस्वती नदी बहती थी. अब यह सरस्वती नदी लुप्त हो गई हैं. इससे स्पष्ट है कि हड़प्पा सभ्यता का मुख्य क्षेत्र सिन्धु-घाटी नहीं बल्कि सरस्वती तथा उसकी सहायक नदियों का क्षेत्र था जो सिन्धु तथा गंगा के बीच में स्थित था. इसलिए कुछ विद्वान् इसे सिन्धु-सरस्वती सभ्यता कहते हैं और कुछ तो केवल “सरस्वती सभ्यता” ही कहना पसंद करते हैं.
- काँस्य युगीन सभ्यता : सिन्धुवासियों ने पहली बार ताँबे में टिन मिलाकर काँसा तैयार किया, अतः इसे कांस्य युगीन सभ्यता कहा जाता हैं.
- प्रथम नगरीय क्रान्ति : सिन्धु सभ्यता को प्रथम नगरीय क्रान्ति भी कहा जाता है, क्योंकि भारत में पहली बार नगरों का उदय इसी सभ्यता के समय हुआ.
हड़प्पा सभ्यता की पूरी जानकारी | Harappan Civilization Detail Information in Hindi
हड़प्पा संस्कृति का केंद्र स्थल पंजाब और सिन्धु में मुख्यतः सिन्धु घाटी में पड़ता हैं. यहीं से इसका विस्तार दक्षिण और पूरब की ओर हुआ. भारत के आजदी के पहले तक यहाँ सिर्फ 40 बस्तियों का ही पता चला पाया था, लेकिन पिछले 50 वर्षों में किये गये अनुसंधान कार्यों ने इस स्थिति को पूरी तरह बदल दिया. अब इस संस्कृति के भिन्न-भिन्न चरणों से लगभग 1400 बस्तियों की खोज की जा चुकी हैं. इनमें से 925 बस्तियाँ भारत में और 475 बस्तियाँ पाकिस्तान में है. इसमें भी केवल 40 बस्तियाँ ही सिन्धु और उसकी सहायक नदियों के क्षेत्र में पायी गई है. जबकि 1100 बस्तियाँ (लगभग 80%) सिन्धु तथा गंगा के बीच के मैदान में स्थित हैं जहाँ कभी सरस्वती नदी बहती थी. अब यह सरस्वती नदी लुप्त हो गई हैं तथा लगभग 250 बस्तियाँ भारत में सरस्वती नदी प्रणाली क्षेत्र से परे पाई गयी हैं, जिनमें से कुछ गुजरात में और थोड़ी सी महाराष्ट्र में हैं.
वर्तमान तीन देशों अफगानिस्तान, पाकिस्तान और भारत में इसका विस्तार मिलता हैं. हालाँकि पूरे अफगानिस्तान ( Afghanistan ) में इसका प्रसार नहीं था, परन्तु दो महत्वपूर्ण स्थलों मुण्डीगाक और शुर्तुगई में इस सभ्यता के प्रमाण मिले है.
पाकिस्तान ( Pakistan ) में मुख्यतः तीन क्षेत्रों दक्षिण बलूचिस्तान, सिन्धु और पंजाब प्रान्त में इस सभ्यता के प्रमाण मिले है. दक्षिण बलूचिस्तान में इसके प्रमुख स्थल सुतकागेंडोर, सोत्काकोह, डाबरकोट और बालाकोट थे. सिंध प्रान्त में मोहनजोदड़ो, चन्हूदड़ों, जुडेरजोदड़ों, आमरी, कोटिदीजी और अलीमुराद प्रमुख स्थल थे. पंजाब प्रांत में सबसे महत्वपूर्ण स्थल हड़प्पा था. इसके अतिरिक्त डेरा इस्माइल खान, जलीलपुर, रहमान ढेरी, गुमला और चकपुरवाने अन्य स्थल थे.
भारत ( India ) में जम्मू प्रान्त में मांडा, पंजाब में रोपड़, कोटलनिहंग खान, चक-86 बाड़ा, संघोल और डेरामजरा, हरियाणा में बनवाली. मिताथल, सिसवल, बखावली, राखीगढ़ी और बालू, उत्तरी राजस्थान में इसके दो दर्जन पुरास्थल मिले हैं, जिसमें गंगानगर जिलें में स्थित कालीबंगा सबसे महत्वपूर्ण हैं. वस्तुतः राजस्थान के समस्त सिन्धु सभ्यता स्थल गंगानगर जिलें में ही स्थित है. पश्चिमी उत्तर प्रदेश में मेरठ जिले में हिंडन नदी के तट पर आलमगीरपुर स्थित है जबकि सहारनपुर जिलें में बड़ागाँव तथा हुलास प्रमुख स्थल हैं. गुजरात के क्षेत्र को दो भागों कच्छ की खाड़ी और खम्भात खाड़ी में बांटा जा सकता हैं. खम्भात की खाड़ी के स्थलों में लोथल, रंगपुर, रोजदी, प्रभास, पाटन, भगतराव, नागेश्वर, कुंतासी, मेघम, शिकारपुर प्रमुख हैं.
हाल ही में महाराष्ट्र में अहमदनगर जिले में गोदावरी तट पर दैमाबाद से कुछ ठीकरे मिले है, जिन पर सिन्धु लिपि के अवशेष प्राप्त हुए है. यहीं से कांसे का एक रथ प्राप्त हुआ है जिसे नग्न पुरूष चला रहा है इसे हड़प्पा सभ्यता के काल से ही जोड़ा जाता है. अतः अब इतिहासकारों का एक बड़ा वर्ग दैमाबाद को ही इस सभ्यता का सबसे दक्षिणी स्थल मानने लगा है. इस प्रकार सिन्धु सभ्यता का फैलाव उत्तर में जम्मू से लेकर उत्तर पूर्व में मेरठ तक था. यह समूचा क्षेत्र त्रिभुज के आकार का है. इसका पूरा क्षेत्रफल लगभग 12,99,600 वर्ग किमी. है. इस सभ्यता का कुल भौगोलिक क्षेत्र मिस्र की सभ्यता से क्षेत्र से 20 गुना और मिस्र तथा मेसोपोटामिया के कुल सम्मिलत क्षेत्र से 12 गुना बड़ा हैं.
हड़प्पा कालीन प्रमुख नगर
वैसे तो हड़प्पा संस्कृति में लगभग 1500 स्थलों का पता लग चुका है, किन्तु उनमें केवल 7 को ही नगर की संज्ञा दी जा सकती है. ये प्रमुख नगर इस प्रकार हैं –
- हड़प्पा
- मोहनजोदड़ो
- चन्हूदड़ो
- लोथल
- कालीबंगा
- बनवाली
- धौलावीरा
हड़प्पा | Harappan in Hindi
हड़प्पा का पुरास्थल पाकिस्तान के पंजाब प्रान्त में मांटगोमरी जिले में (आधुनिक शाहीवाल) रावी नदी के बाएं तट पर स्थित था. इसका सर्वप्रथम उल्लेख 1826 ई. में चार्ल्स मेसन ने किया. हड़प्पा का दूसरा उल्लेख तब आया जब 1856 ई. में करांची से लाहौर रेलवे लाइन बिछाते समय जॉन ब्रंटन और विलयम ब्रंटन ने यहाँ से प्राप्त ईटों का उपयोग रोड़ों के रूप में किया. भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण के महानिदेशक जॉन मार्शल के निर्देश पर 1921 ई. में दयाराम साहनी ने इसकी खोज की.
हड़प्पा क्षेत्रफल की दृष्टि से सिन्धु सभ्यता का दूसरा सबसे बड़ा स्थल है. यह लगभग 150 हेक्टेयर के घेरे में बसा हुआ था. इसके दुर्ग के टीले को AB नाम दिया गया. दुर्ग के बाहर उत्तर दिशा में स्थित लगभग 6 मी. ऊँचे टीले को F नाम दिया गया. इसी टीले पर अन्नागार अजाज कूटने के वृत्ताकार चबूतरे और श्रमिक आवास के साक्ष्य मिले हैं. अन्नागार रावी नदी के तट पर स्थित था. हड़प्पा के F टीले में पकी हुई ईटों से निर्मित 18 वृत्ताकार चबूतरे मिले है. जिनका उपयोग अनाज पीसने के लिए होता था. इसी टीले पर श्रमिक आवास भी मिला है. इस आवास में 15 मकान दो पंक्तियों में बनाएं गये थे. इस बस्ती के समीप 16 भट्ठियाँ और धातु बनाने की एक मूषा ( Crucible ) मिली हैं. सम्भवतः इस बस्ती में ताम्रकर रहते थे.
हड़प्पा नगर क्षेत्र के दक्षिण दिशा में एक कब्रिस्तान मिला है, जिसे समाधि R-37 ( Cemetry R-37 ) नाम दिया गया हैं.
हड़प्पा में सन् 1934 ई. में अन्य समाधि मिली थी, जिसे समाधि H ( Cemetry H ) नाम दिया गया. इसका सम्बन्ध सिन्धु सभ्यता के बाद के काल से था.
मोहनजोदड़ो | Mohenjodaro in Hindi
यह पाकिस्तान के सिंध प्रांत के लरकाना जिले में सिन्धु नदी के दाहिने तट पर स्थित था. यह क्षेत्रफल की दृष्टि से सबसे बड़ा नगर था; जो 250 हेक्टेयर में बसा था. इसकी जनसंख्या सर्वाधिक थी. मोहनजोदड़ो का अर्थ है – प्रेतों का टीला. इसे “सिन्धु का बाग़” भी कहा जाता है. मोहनजोदड़ो की खोज 1922 ई. में राखलदास बनर्जी ने की.
मोहनजोदड़ो के दुर्ग टीले की स्तूप टीला भी कहते हैं, क्योंकि इस टीले पर कुषाण काल का एक स्तूप बना है. दुर्ग के टीले पर ही स्नानागार, अन्नागार, सभा भवन एवं पुरोहित आवास बने हुए थे.
चन्हूदड़ो | Chanhudaro in Hindi
यह सिन्धु नदी के बाएं तट पर स्थित था. इसकी खोज 1931 में एन. जी. मजूमदार ने की. चन्हूदड़ो में सिन्धु संस्कृति के बाद झूकर संस्कृति तथा झाँगर संस्कृति विकसित हुई. यह पर मनके बनाने का कारखाना भी खोजा गया. यहाँ से एक ऐसी मुद्रा मिली है जिस पर तीन घड़ियाल तथा दो मछलियों का अंकन है. यहीं से ईटों पर एक बिल्ली का पीछा करते हुए कुत्ते के पंजों का निशान है. यह एक मात्र ऐसा स्थल है जहाँ के वक्राकार ईटें मिली हैं. यहाँ से लिपिस्टिक, काजल, कंघा, उस्तस आदि के प्रमाण भी मिले है. चन्हूदड़ो एकमात्र ऐसा स्थल है जहाँ पर मिट्टी की पकी हुई पाइपनुमा नालियों का प्रयोग किया गया.
लोथल | Lothal in Hindi
इसे ‘लघु हड़प्पा‘ या ‘लघु मोहनजोदड़ो‘ भी कहा जाता है. इसकी खोज 1954 ई. में एस. आर. राव ने की. यह गुजरात के अहमदाबाद जिले में भोगवा नदी के किनारे स्थित है. लोथल की पूर्वी भाग में एक गोदीवाड़ा का साक्ष्य मिला है. इसकी लम्बाई 223 मीटर चौड़ा एक प्रवेशद्वार था. जिससे जहाज आते-जाते थे और दक्षिणी दीवार में अतिरिक्त जल का निकासद्वार था. इस प्रकार इस नगर में जल प्रबन्धन की सबसे उत्तम व्यवस्था थी.
लोथल में नगर क्षेत्र के बाहर उत्तरी-पश्चिमी किनारे पर समाधि क्षेत्र था, जहाँ से 20 समाधियाँ मिली हैं. लोथल से तीन युग्मित समाधियों के उदाहरण भी मिले हैं, जिससे यहाँ सती प्रथा का अनुमान लगाया जाता है. लोथल से एक अग्निकुंड का अवशेष भी मिला है. लोथल के दुर्ग क्षेत्र से 126 मीटर लम्बा एवं 30 मीटर चौड़ा एक भवन मिला है, जिसे प्रशासनिक भवन की संज्ञा दी गई. लोथल से भी चन्हूदड़ो की भांति मनके बनाने का कारखाना प्राप्त हुआ है. यहाँ से एक रंगाई कुंड मिला है, जो निचले नगर में स्थित था.
कालीबंगा | Kalibangan in Hindi
कालीबंगा का अर्थ है – काले रंग की चूड़ियाँ. 100 हेक्टेयर में बसे, राजस्थान के गंगानगर जिले में स्थित इस नगर की खोज सन् 1951 ई. में अमलानन्द घोष ने की. यह प्राचीन सरस्वती एवं दृष्द्वती नदियों के बीच स्थित था. सरस्वती का आधुनिक नाम घग्घर एवं दृष्द्वती का चौतंग हैं. सरस्वती नदी के किनारे घग्घर-हाकरा पाटपर सार्वधिक स्थलों का संकेन्द्रण था. कालीबंगा के पश्चिमी टीले पर सैन्धव सभ्यता के नीचे प्राक-सैन्धव संस्कृति के प्रमाण प्राप्त हुए हैं. इन प्रमाणों में हल से जूते हुए खेत का साक्ष्य सबसे महत्वपूर्ण है इसकी जुताई आड़ी-तिरछी की गई थी, जिससे दो फसलों के एक साथ बोये जाने का अनुमान लगाया जाता हैं.
कालीबंगा के दुर्ग टीले के दक्षिणी भाग में मिट्टी और कच्ची ईटों के बने हुए 5-6 चबूतरे मिले हैं, जिनके ऊपर कई अग्निकुंड या वेदिकाएं बनी हुई मिली हैं, जो कि आयताकार हैं.
बनवली | Banawali in Hindi
यह स्थल हरियाणा के हिसार जिलें में सरस्वती नदी के किनारे स्थित था. इसकी खोज 1974 ई. में आर. एस. विष्ट ने की. यहाँ की मिटटी का बना हल तथा बढ़िया किस्म का जौ प्राप्त हुआ है. बनवाली में सिन्धु सभ्यता की सबसे महत्वपूर्ण विशेषता जल-निकास प्रणाली का अभाव था. यहाँ से पाक हड़प्पा, हड़प्पा एवं हड़प्पोत्तर काल के प्रमाण प्राप्त हुए हैं. यहाँ के मकानों के साज समान से पता चलता है कि यह समृद्ध लोगों का नगर था. बनवाली के कई मकानों से अग्निदेवियाँ मिली हैं. इसके साथ अर्द्ध वृत्ताकार ढांचे हैं जिसके आधार पर कुछ विद्वान् यहाँ मंदिर होने की सम्भावना व्यक्त करते हैं.
धौलावीरा | Dholavira in Hindi
यह नगर गुजरात के कच्छ जिले के भचाऊ तालुका में खादिर नाम के एक द्वीप जिसे स्थानीय भाषा में बैठ कहते है, के उत्तरी-पश्चिमी कोने पर बसा हुआ एक छोटा सा गाँव है. 100 हेक्टेयर में बसे धौलावीरा के टीलों की खोज सन् 1967-68 ई. में श्री जे. पी. जोशी ने की. 1990 ई. से भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण के आर. एस. विष्ट के निर्देशन में उत्खनन कार्य अभी चल रहा हैं.
धौला का अर्थ सफ़ेद तथा वीरा का अर्थ कुआँ हैं. यहाँ के टीले पर एक पुराना कुआँ है, जिसके कारण इसका नाम धौलावीरा पड़ गया. धौलावीरा का नगर आयताकार बना था. इस नगर को तीन भागों किला, मध्यनगर एवं निचला नगर में विभाजित किया गया था. यह भारत में स्थित सिन्धु सभ्यता का दूसरा सबसे बड़ा नगर हैं.
नोट – यह लेख “एस. के. पांडे” के द्वारा लिखी किताब “प्राचीन भारत” से लिया गया हैं.
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