The Arya Samaj in Hindi – आर्य समाज आन्दोलन का प्रसार प्रायः पाश्चात्य प्रभावों की प्रतिक्रिया के रूप में हुआ. यह एक हिन्दू सुधार आन्दोलन है जिसकी स्थापना “स्वामी दयानन्द सरस्वती ( Swami Dayananda Saraswati )” ने 1875 में बम्बई में आर्य समाज की स्थापना की. आर्य समाज में शुद्ध वैदिक परम्परा में विश्वास करते थे तथा मूर्ति पूजा, अवतारवाद, बलि, झूठे कर्मकाण्ड व अंधविश्वासों को अस्वीकार करते थे. इसमें छुआछूत व जातिगत भेदभाव का विरोध किया तथा स्त्रियों व शूद्रों को भी यज्ञोपवीत (जनेऊ) धारण करने व वेद पढ़ने का अधिकार दिया था. स्वामी दयानन्द सरस्वती द्वारा रचित “सत्यार्थ प्रकाश ( Satyarth Prakash )” नामक ग्रन्थ आर्य समाज का मूल ग्रन्थ है.आर्य समाज का आदर्श वाक्य है: कृण्वन्तो विश्वमार्यम्, जिसका अर्थ है – विश्व को आर्य बनाते चलो.
आर्य समाज के सिद्धांत | Principles of Arya Samaj in Hindi
“आर्य ( Arya )” शब्द का अर्थ है श्रेष्ठ (Best) और प्रगतिशील (Progressive). हम इस प्रकार भी कह सकते है कि आर्य समाज का अर्थ हुआ श्रेष्ठ और प्रगतिशीलों का समाज, जो वेदों के अनुकूल चलने का प्रयास करते हैं और अन्य लोगों को भी चलने के लिए प्रेरित करते है. इनके आदर्श मर्यादा पुरूषोत्तम राम और योगिराज कृष्ण हैं. महर्षि दयानन्द ने उसी वेद मत को फिर से स्थापित करने के लिए आर्य समाज की स्थापना की. आर्य समाज के सिद्धांत और नियम वेदों पर आधारित हैं. आर्य समाज की मान्यताओं के अनुसार फलित ज्योतिष, जादू-टोना, जन्मपत्री, श्राद्ध, तर्पण, व्रत, भूत-प्रेत, देवी जागरण, मूर्ति पूजा और तीर्थ यात्रा मनगढ़ंत हैं, वेद विरुद्ध हैं.
आर्य समाज के दस नियम | Ten rules of Arya Samaj in Hindi
- सब सत्य विद्या और जो पदार्थ विद्या से जाने जाते हैं, उन सबका आदि मूल परमेश्वर है.
- ईश्वर सच्चिदानंद स्वरूप, निराकार, सर्वशक्तिमान, न्यायकारी, दयालु, अजन्मा, अनंत, निर्विकार, अनादि, अनुपम, सर्वाधार, सर्वेश्वर, सर्वव्यापक, सर्वांतर्यामी, अजर, अमर, अभय, नित्य, पवित्र और सृष्टिकर्ता है. उसी की उपासना करने योग्य है.
- वेद सब सत्य विद्याओं का पुस्तक है. वेद का पढ़ना-पढ़ाना और सुनना-सुनाना सब आर्यों का परम धर्म है.
- सत्य के ग्रहण करने और असत्य को त्यागने में सर्वदा उद्यत रहना चाहिए.
- सब काम धर्मानुसार अर्थात सत्य और असत्य को विचार करके करने चाहिए.
- संसार का उपकार करना इस समाज का मुख्य उद्देश्य है, अर्थात शारीरिक, आत्मिक और सामाजिक उन्नति करना.
- सबसे प्रीतिपूर्वक, धर्मानुसार, यथायोग्य बरतना चाहिए.
- अविद्या का नाश और विद्या की वृद्धि करनी चाहिए.
- प्रत्येक को अपनी ही उन्नति से संतुष्ट न रहना चाहिये, किंतु सब की उन्नति में अपनी उन्नति समझनी चाहिये.
- सब मनुष्यों को सामाजिक, सर्वहितकारी, नियम पालने में परतंत्र रहना चाहिएऔर प्रत्येक हितकारी नियम पालने में स्वतंत्र हैं.
प्रसिद्ध आर्य समाजी | Famous Arya Samajee
प्रसिद्ध आर्यसमाजियों में स्वामी दयानन्द सरस्वती, स्वामी श्रद्धानन्द, महात्मा हंसराज, लाला लाजपत राय, भाई परमानन्द, पंडित गुरुदत्त, स्वामी आनन्दबोध सरस्वती, स्वामी अछूतानन्द, चौधरी चरण सिंह, पंडित वन्देमातरम रामचन्द्र राव, बाबा रामदेव आदि आते हैं.
आर्य समाज का योगदान | Contribution of Arya Samaj
- आर्य समाज एक समाज सुधार, शिक्षा और राष्ट्रीयता का आन्दोलन था और है. भारत के 85 प्रतिशत स्वतन्त्रता संग्राम सेनानी, आर्य समाज ने पैदा किया. स्वदेशी आन्दोलन का मूल सूत्रधार आर्यसमाज ही हैं.
- धर्म परिवर्तन कर चुके लोगो को पुनः हिन्दू बनने की प्रेरणा देकर शुद्धि आन्दोलन चलाया. लगभग 60 हजार मलकाने राजपूतों को और उन हिन्दुओ को, जिन्हें माप्पिला विद्रोह के दिनों में (1923) अथवा (1947) में भारत विभाजन के समय बलपूर्वक मुसलमान बना लिया गया था, उन्हें पुनः हिन्दू धर्म में लौटने का अवसर दिया.
- स्वामी दयानन्द ने हिंदी भाषा में सत्यार्थ प्रकाश पुस्तक तथा अनेक वेदभाष्यों की रचना की. एक अंग्रेज ने तो “सत्यार्थ प्रकाश” को ब्रिटिश के जड़े खोखली करने वाला किताब बताया था.
- सन् 1886 में लाहौर में स्वामी दयानन्द के अनुयायी लाला हंसराज ने दयानन्द एंग्लो वैदिक कॉलेज के स्थापना की थी.
- सन् 1901 में स्वामी श्रद्धानन्द ने कांगड़ी में गुरुकुल विद्यालय की स्थापना की.
- आज विदेशों तथा योग जगत में नमस्ते शब्द का प्रयोग बहुत साधारण बात है. एक जमाने में इसका प्रचलन नहीं था – हिन्दू लोग भी ऐसा नहीं करते थे. आर्यसमाजियो ने एक-दूसरे को अभिवादन करने का ये तरीका प्रचलित किया। ये अब भारतीयों की पहचान बन चुका है.
महिलाओं की स्थिति सुधार में आर्य समाज का योगदान | Contribution of Arya Samaj to improve women’s status
आर्य समाज ने स्त्रियों की स्थिति सुधारन के लिया अनेक महत्वपूर्ण कार्य किये हैं. इनके अनुसार पुत्र तथा पुत्री समान है. बाल-विवाह , शाश्वत वैधव्य, विधवा को हेय मानना, परदा प्रथा, दहेज़, बहु-विवाह, वेश्यागमन, देवदासियां इत्यादि सामाजिक बुराईयों का आर्य समाज ने विरोध किया और लोगो को जागरूक किया ताकि इन बुराइयों से बाख सके.
आर्य समाज का सामाजिक समानता में योगदान | Contributions to Arya Samaj’s social equality
आर्य समाज वर्ण व्यवस्था जन्म से नहीं मानते थे कर्म से मानते थे, अर्थात केवल व्यवसाय के अनुसार ही कोई व्यक्ति, ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य तथा शूद्र हो सकता हैं. परन्तु ये चारों वर्ण समान हैं और इनमें कोई अस्पृश्य नहीं. इस प्रकार आर्य समाज ने हिन्दू समाज में समानता की उस भावना को जाग्रत किया जो आज हमें अपने संविधान में देखने को मिलता हैं.
सत्यार्थ प्रकाश में क्या हैं? | What is in the Satyaarth Prakaash?
स्वामी दयानन्द सरस्वती द्वारा रचित “सत्यार्थ प्रकाश” ग्रन्थ में वेदों के बारें में आम भाषा में बताया गया हैं जिसे आम जन भी पढ़ सके और अपने जीवन को सुखमय तरीके से जी सके. इस किताब में उन्होंने सभी धर्मो में व्याप्त कुरीतियों को भी लिखा हैं, जिसे खत्म करके एक सशक्त और सुदृढ़ समाज की स्थापना की जा सकती हैं. हर एक विद्यार्थी और देश से प्रेम करने वाले व्यक्ति को एक बार अपने जीवन में “सत्यार्थ प्रकाश” जरूर पढ़ना चाहिए. यदि आप के आस-पास यह संस्थान है तो आपको यह किताब सम्भवतः मुफ़्त मिल जाए.
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